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2019 की चुनावी जंग में चुनौती दे रही कांग्रेस पर अंकुश लगाने के लिए मोदी ने संधान किया बोफोर्सास्त्र

2019 के चुनावी जंग को फतह करने के लिए मोदी दल ने बजटास्त्र के शंखनाद के बाद संधान किया बोफोर्सास्त्र

लालू की तरह कांग्रेस नेतृत्व पर अंकुश लगाने के लिए बोफोर्स कांड पर उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ ़ 13 साल बाद सर्वोच्च न्यायालय पंहुची केंद्रीय जांच व्यूरो
देवसिंह रावत

2014 में कांग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों को धूल चटाने वाले नरेन्द्र मोदी की भाजपा ने 2019 के चुनावी समर में फतह करने के लिए 1 फरवरी 2018 को ही संसद में बजटास्त्र की रणभेरी बजाकर बेहाल हुए राजनैतिक दलों को हडकंप मचा दिया। बजटास्त्र के दंश से अभी विपक्ष उबर भी नहीं पाया था कि तभी दो ही दिन के अंदर ही मोदी सरकार ने 2019 के चुनावी समर में मजबूत अवरोधक बन रही राहुल गांधी की नेतृत्व वाली कांग्रेस को निश्तेज करने के लिए बोफोर्सास्त्र का संधान कर दिया।
कांग्रेस की प्रचण्ड चुनौती से गुजरात चुनाव में पसीने पसीने हुई मोदी नेतृत्व वाली भाजपा ने 2019 में ऐसी असहज स्थिति से निपटने के लिए कांग्रेस को चैतरफा घेरने की रणनीति पर काम प्रारम्भ कर दिया है।
इसी के तहत मोदी सरकार की मंशा को अमलीजामा पहनाते हुए केन्द्रीय जांच व्यूरों ने कांग्रेस नेतृत्व की सबसे कमजोर नस समझी जाने वाली बाफोर्स पर पांव रखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय के 13 साल पहले सभी आरोपियों को बरी किये जाने के फैसले को चुनौती देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटा दिया। केन्द्रीय जांच व्यूरों के इस कदम की मंशा को भांपते ही कांग्रेस असहज स्थिति में है। मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा जिस प्रकार से कांग्रेस मुक्त भारत का उद्घोष करके हर हाल में पूरे देश के चुनावों में जीतने के लिए काम कर रही है, उससे कांग्रेसी नेताओं का असहज होना स्वाभाविक है। क्योंकि मोदी सरकार जिस प्रकार से अपने विरोधियों को हर हाल में अपनी राह से हटाने का काम करती है उससे मोदी सरकार के इस कदम को इसी नजरिये से देख रहे है। खासकर जिस प्रकार से मोदी के नेतृत्व में मोदी की सत्ता को चुनौती देने की हुंकार भरने वाले नीतीश कुमार व लालू यादव के गठजोड़ को तोड़ कर नीतीश को भाजपा के साथ गठजोड़ करके ही अभयदान दिया और लालू पर कई वर्षो पुराने मुकदमें में लपेट कर न केवल लालू को अपितु उसके पूरे परिवार पर अंकुश लगा दिया है।
लालू ही नहीं देश के तमाम विरोधियों को एक एक करके मोदी दल ने कमजोर करने का काम किया। वहीं भाजपा ने विरोधी दलों के मजबूत विवादस्थ नेताओं को आईना दिखा कर या तो उनको भाजपा में सम्मलित करवा कर अभयदान दे दिया है या उन पर कानून का फंदा कस दिया है।
मोदी दल की इसी मंशा को भांपकर देश में नया विकल्प देने की हुंकार भरने वाले अरविंद केजरीवाल ने जुबान बंद कर रखी है।
कांग्रेस ने जिस प्रकार से गुजरात में भाजपा का पदच्युत करने के लिए जातिवादी चक्रव्यूह  गुजरात में बनाया उसको देशभक्त जनता ने भले ही न सराहा हो परन्तु भाजपा को हर हाल में हराने वाली जमात की पहली पसंद कांग्रेस बन गयी है। इससे कांग्रेस से विमुख हो चूके समाज के कई वर्ग 2019 में होने वाले लोकसभा के चुनावी समर में कांग्रेस के पीछे मजबूती से लामबद हो सकते है। इससे मोदी की ताजपोशी की राह में अवरोध खडे हो सकते है। इसी को भांप कर मोदी दल ने रणनीति के तहत कांग्रेस की हवा निकालने के उदेश्य से बाफोर्स का भूत फिर बाहर निकालने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि भारत और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1437 करोड़ रुपये मूल्य के 155एमएम के कुल 400 बोफोर्स तोपो (हॉवित्सजर गन) खरीदने का सौदा 24 मार्च 1986 को हुआ था। इसके बाद 16 अप्रैल 1987 को स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि कंपनी ने इस रक्षा सौदे को पाने के लिए भारत में उच्च पदस्थ राजनीतिज्ञों और रक्षा अधिकारियों को दलाली दी है।  इसकी जांच केन्द्रीय जांच व्यूरो से कराने का आदेश दिया था। 22 जनवरी, 1990 को इस मामले में  केन्द्रीय जांच व्यूरो ने प्राथमिकी दर्ज की ।  केन्द्रीय जांच व्यूरो ने 64 करोड़ रूपये की दलाली के लिए बिन चड्ढा और हिन्दुजा भाइयों को मामले में मुख्य आरोपी बनाया था। दलाली के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व गांधी परिवार से जुडे इटली के ओतावियो क्वात्रोच्ची पर भी आरोप लगे। देश में कांग्रेस की चूलें हिला कर बेताज कर दिया।
इस प्रकरण पर गुनाहगारों को सजा दिलाने की हुंकार भर कर सत्तासीन हुए विश्व नाथ प्रताप सिंह भी इस प्रकरण के गुनाहगारों को सजा दिलाने में असफल रहे। इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में 31 मई, 2005 को हिन्दुजा बंधुओं समेत सभी आरोपियों को बरी कर दिया था।
बोफोर्स प्रकरण का संधान का लक्ष्य स्पष्ट है कांग्रेस पर अंकुश लगाना। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का मामला अभी मोदी सरकार के ऐजेण्डे में नहीं है। नहीं तो मध्य प्रदेश व्यापकं सहित अनैक भ्रष्टाचारी मामलों के आरोपियों को मोदी सरकार शिकंजे में डाल चूकी होती। इसका मकसद जनता की नजरों में कांग्रेस की पुन्न बन रही छवि को तार तार करना है। लगता है मोदी सरकार भी इस कहावत पर यकीन करती है कि प्रेम व युद्ध में सब जायज होता है। चुनावी मशीनों के आरोपों के बाण में राजस्थान में हुए उपचुनाव में वे कूंद कर चूके है। मोदी इस बात को भी बखुबी से समझते है कि जब धरा रहेगी तभी धारा भी बची रहेगी। लगता है मोदी अपने दस साल के कार्यकाल में इस देश में अपने सपनों के भारत की तस्वीर उतारना चाहते है।

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