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भारतीय भाषा आंदोलन ने दी भारतीय भाषा आंदोलन के संरक्षक वरिष्ठ डा बलदेव वंशी को श्रद्धांजलि

भारतीय भाषा आंदोलन के संरक्षक अग्रणी साहित्यकार डा बलदेव वंशी के आकस्मिक निधन

देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए संसद की चैखट जंतर मंतर से शहीदी पार्क में विगत 57 महीने से निरंतर आजादी की जंग छेड़ने वाले भारतीय भाषा आदंोलन ने भारतीय भाषा आंदोलन के संरक्षक अग्रणी साहित्यकार डा बलदेव वंशी के आकस्मिक निधन होने पर उनको भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए देश को अग्रेजी से गुलामी से मुक्त कराकर भारतीय भाषाओं को लागू कराने का संकल्प लिया।
कई दर्जन पुस्तकों के लेखक व अनैक सम्मानों से सम्मानित देश के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.बलदेव वंशी आठवें में दिल्ली में संघ लोक सेवा आयोग के प्रवेश द्वार पर भारतीय भाषाओं को उनका हक दिलाने के लिए चलाए गए विश्व के सबसे लंबे धरने से जुडने के बाद से लेकर देश से अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति के लिए संसद की चैखट पर  2013 से 2018 तक चल रहे  भारतीय भाषा आंदोलन से संरक्षक के रूप से जुडे रहे।
डा बलदेव वंशी के निधन की सूचना भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत को भारतीय भाषा आंदोलन से जुडे वरिष्ठ पत्रकार हबीब अख्तर ने प्रेस क्लब आफ इंडिया में दी। यह सूचना मिलते ही भारतीय भाषा आंदोलनकारियों में शोक छा गया। भारतीय भाषा आंदोलनकारियों ने 10 जनवरी को अपने दिवंगत संरक्षक को भाव भीनी श्रद्धांजलि दी। श्रद्धांजलि देने वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला,महासचिव अभिराज शर्मा, कोषाध्यक्ष सुनील कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हब्बीब अख्तर, अनिल पंत, पदम सिंह बिष्ट, स्वामी श्रीओम, अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के पूर्व छात्र नेता आलमदार अब्बास, आशा शुक्ला, सुनीता चैधरी, पदमसिंह बिष्ट, मोहन सिंह रावत, मोहन जोशी, मोहन सिंह रावत, वेदानंद सहित आदि प्रमुख थे।
डा बलदेव वंशी का 7 जनवरी को उस समय निधन हो गया जब वे दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर आयोजित संगोष्ठी से हिस्सा लेकर लौटे थे। सेक्टर-49 सैनिक कॉलोनी में स्थित आवास पर पहुंचने पर उन्होंने सीने में दर्द का जिक्र किया, उन्हें अस्पताल ले जाया गया, अस्पताल पंहुचने से पहले उनका निधन हो गया था।  दिल्ली विश्व विद्यालय से सेवा निवृत के बाद दिवंगत डा बलदेव वंशी अपने परिवार के साथ फरिदाबाद में रह रहे थे। वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया। स्वर्गाश्रम सैनिक कॉलोनी मोड़ पर उनके अंतिम संस्कार के समय बड़ी संख्या में साहित्यकार, शिक्षाविद्,  पत्रकार मौजूद थे।
जंतर मंतर से भारतीय भाषा आंदोलन सहित सभी आंदोलनकारियों को हटाये जाने के बाद भारतीय भाषा आंदोलन विगत नवम्बर माह से शहीदी पार्क में आजादी की जंग जारी रखे हुए है।

उल्लेखनीय है कि डा बलदेव वंशी अस्वस्थ होने के बाबजूद हर माह जंतर मंतर पर चल रहे भारतीय भाषा आंदोलन में सम्मलित होते रहते थे। साहित्य सृजन, खासकर संत साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर होने के साथ-साथ भाषा आंदोलन के लिए चले धरने में डॉ.बलदेव वंशी का नाम प्रथम पंक्ति में शुमार किया जाएगा। संघ लोक सेवा आयोग के  प्रवेश द्वार पर धरने में डॉ.वंशी के साथ अटल बिहारी वाजपेयी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चतुरानंद मिश्र,  लालकृष्ण आडवाणी और राम विलास पासवान जैसे राजनेताओं सहित 4 दर्जन से अधिक देश के शीर्ष नेताओं ने भागेदारी निभाई थी। धरने के संयोजक पुष्पेंद्र चैहान व राजकरण के नेतृत्व में संचालित हो रहा थ। इसमें देश के वरिष्ठ पत्रकारो ने भी भाग लिया।
पाकिस्तान के मुल्तान शहर में 1 जून, 1938 को जन्मे डॉ.बलदेव वंशी ने कई कहानियां, कविताएं और लेख लिखे, साथ ही संत साहित्य अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में साहित्यक चेतना जागृत करने वाली एक जीवंत मशाल रहे।

कबीर सहित संत साहित्य के शीर्ष साहित्यकार रहे डा बलदेव वंशी भारतीय भाषा आंदोलन के संघर्ष पर भी एक पुस्तक लिख रहे थे। कबीर शिखर सम्मान, मलूक रत्न सम्मान, दादू शिखर सम्मान सहित दर्जनों विभिन्न सम्मानों से नवाजे गए डॉ.बलदेव वंशी को अप्रैल-2016 में राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन में महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार प्रदान किया था।
उनके चर्चित रचनाओं में दादू ग्रंथावली, सन्त मलूकदास ग्रंथावली, सन्त मीराबाई, सन्त सहजो कवितावलियाँ।  डॉ.वंशी के “लोकनायक युगे युगे’ नामक नाटक को गुलबर्गा विश्वविद्यालय, कर्नाटक ने बीए प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में शामिल किया है। डा बलदेव वंशी देश के एकमात्र शीर्ष साहित्यकार रहे जो निरंतर सडक से लेकर गोष्ठियों व रचनाओं में भारतीय भाषाओं के लिए ताउम्र संघर्ष करते रहे। उनके निधन पर भारतीय भाषा आंदोलन ने उनकी पावन स्मृति को शतः शतः नमन् किया।

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