उत्तराखण्डी भोज के बाद उत्तराखण्डी जेेवरों, परिधान, ऐपण व गंगा दशहरा पत्रक शुभकर का करेंगे प्रचार
नई दिल्ली (प्याउ)। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दिल्ली में उत्तराखण्डी भोज का आयोजन किया। इसमें बड़ी संख्या में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उत्तराखण्डी, समाजसेवियों, कलाकारों, पत्रकारों, साहित्यकारों, कांग्रेस, उक्रांद, आप, भाजपा सहित राजनैतिक दलों से जुडे एक हजार से अधिक लोगों ने 7 जनवरी की दोपहरी में उत्तराखण्डी भोज का लुफ्त उठाया। इसका आयोजन उन्होने अपने करीबी राज्यसभा सांसद महेन्द्र सिंह महरा के दिल्ली आवास फिरोजशाह रोड़ में किया। राजनेता द्वारा भोज का आयोजन हो और उस पर टीका टिप्पणी न हो, यह नहीं हो सकता। विरोधियों ने चाहे इस आयोजन पर निशाना साधा परन्तु विरोध को दर किनारे करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने फेसबुक में अपने इस अभियान के बारे में लिखा कि
दिल्ली में मैंने नींबू सन्नी से लेकर हरिद्वार के जैविक गुड़ और गन्ना, रुद्रपुर के मक्खन व अमरूद, गढ़वाल के अरसा, अल्मोड़ा की बाल मिठाई, रायता व खजूर, भटवाणी टिहरी की, पालक का कापा, मुनस्यारी के गहत, राजमा की दाल, पहाड़ी मूली का टपक्या, पहाड़ी नमक दैणधुसी,पौड़ी के माल्टा,रमाणी के नारंगी, पिथौरागढ़ के नींबू, मोहनरी की ककड़ी, लोबाज और शौनोल की गडेरी, जोशीमठ के आलू, रानीखेत की राई, पुरोला के लाल चावल, कपकोट के सफेद चावल, कौसानी की चाय, रामपुर के गन्ने की रसावल का भोज आयोजित किया। मैं दिल्ली के बाद चंडीगढ़, लखनऊ, बरेली तक इस मिशन को लेकर जाऊंगा। दूसरे चरण में उत्तराखंडी जेवरों, वस्त्रों तथा ऐपण तथा गंगा दशहरा पत्रक के शुभंकर के रूप में प्रचार-प्रसार में ध्यान दूंगा। आप सबका सहयोग चाहिए।
इस दावत पर हो रहे कटाक्ष करने वालों को जवाब देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने फेसबुक में इस भोज के आयोजन पर खुद ही प्रकाश डालते हुए कहा कि चुनाव हारने के बाद मैंने पहले उत्तराखंड के प्रत्येक हिस्से के व्यंजनों, उत्तराखंडी आम, जामुन, भुट्टे, काफल, बेडु, आड़ू की देहरादून में दावतें दी, इसका उद्देश्य उत्तराखंड के उत्पादों का प्रचार करना रहा है, हम अपने इन दुर्लभ उत्पादों का मूल्य नहीं समझ रहे हैं, इनको आगे बढ़ाकर हम अपनी आर्थिक स्थिति को भी सुधार सकते हैं।
अपने इस मुहिम का उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए श्री रावत ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने अपने 3 वर्षों के कार्यकाल में उत्तराखंडी व्यंजनों, जैविक उत्पादों, उत्तराखंडी संस्कृति व शिल्प को आगे बढ़ाने के लिए कई पहलें प्रारंभ की है, इनमें से कुछ पहलें दम तोड़ने लगी है, मैं इस स्थिति से दुखी हूं।
अब देखना है कि उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दिल्ली के बाद चंडीगढ़, लखनऊ, बरेली में भी कब उत्तराखण्डी भोज का आयोजन करते है। पर इतना साफ है जो लोग कभी गांव में कोदा, झंगोरा को खाना अपनी शान के खिलाफ समझते थे वे अब महानगरों में कोदा, झंगोरा आदि उत्तराखण्डी खाद्यान्नों के प्रति इस प्रकार के आयोजनों के बाद इनको बड़ी शान से खाते देखा गया। यदि उत्तराखण्डी खाद्यान्नों को महानगरों में रहने वाले उत्तराखण्डी अपने घर परिवार में सप्ताह में एकांद बार भी खाने लगे तो उत्तराखण्ड के खेत खलिहानों के साथ गांव आबाद होने में देर नहीं लगेगी। इस प्रकार के आयोजनों से प्रदेश सरकार को भी सीख लेनी चाहिए। इससे उत्तराखण्डी खाद्यान्नों के साथ गांवों के भी भले दिन लौट आयेंगे।