गरीबों को जूठे पतलों को खाते देख कर व्यथित हो कर अध्यापन छोड़ समाजवाद लाने के लिए सडक में उतरे है डा रमाइंद्र
देवसिंह रावत,
भले ही पूरी दुनिया में सोवियत संघ के बिखरने के बाद साम्यवाद का सूर्यास्त हो रहा हो और पूंजीवाद पूरे संसार के साम्यवाद को निगलने के बाद लोकशाही को पूरी तरह अपने आगोश में ले चूका हो। पूंजीवाद के निर्मम शिकंजे में जकडे विश्व को देखने के बाबजूद भी भारत सहित पूरी दुनिया में समाजवाद लाकर दबे कुचले, उपेक्षितों व वंचितों का शासन स्थापित करने के लिए डा रमाइन्द्र विगत 21 सालों से भूख हड़ताल कर समाजवाद लाने के लिए अपना पूरा जीवन कुर्वान कर अलख जगाये हुए है।
डा रमाइंद्र केवल रात 9 बजे ही खाना खा कर अनशन तोड़ते हैं। फिर दूसरे दिन सुबह से लेकर रात तक उनकी भूख हडताल विगत 21 साल से जारी है।
लम्बे समय तक राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर के बाद इन दिनों शहीदी पार्क में विश्व में समाजवाद स्थापित करने के लिए संघर्ष जारी रखे हुए है। वे भारतीय भाषा आंदोलन सहित हर जनहित व न्याय के साथ खडे रहते है। वंचित व उपेक्षितों की दयनीय स्थिति ने देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे डा रमाइंद्र को इतना विचलित कर दिया कि सबकुछ छोड़ कर वे 1997 से समाजवाद लाने के लिए लोकशाही के कुरूक्षेत्र राष्ट्रीय धरना स्थल,जंतर मंतर पर समाजवाद के लिए समर्पित हो गये। हाथों में प्लास्टिक के दो बडे थेले लिये डा रमाइंद्र को देश की राजधानी की सड़कों में अपने ही धुन में मस्त जाते देखा जा सकता है। रास्ते में जैसे उनके जानकार कोई मिलते हैं तो रमाइंद्र बडी गर्मजोशी से जय समाजवाद कह कर मिलते है।
अपने जीवन के बारे में प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र को जानकारी देते हुए डा रमांइन्द्र ने बताया कि बिहार के लखीसराय जनपद के किउल बस्ती संसार पोखर गांव में जन्में व पढें डा रमाइन्द्र के पिता स्व. बैजनाथ आजाद लखीसराय नोटिफाइड क्षेत्र के पूर्व चेयरमेन थे। बचपन में रमाइन्द्र ने गरीबों को जूठे पतलों को चाटते देखा, यही घटना उनको व्यथित कर दिया। उनको लगा की हर इंसान को संसाधनों व सम्मान में बराबरी होनी चाहिए। अमीरी व गरीबी की यही गहरी खाई से इंसानों की हो रही दुर्दशा को देख कर ही उनको समाजवाद की आवाज बुलंद करने के लिए विवश किया।
छात्र जीवन में ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले रामइंद्र 1974-75 में सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में 21 माह के लिए भागलपुर के मुंगेर जेल में बंद रहे। रामइंद्र ने बेगुसराय से साहित्यरत्न की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होने मेरठ विश्वविद्यालय के शम्भु दयाल महा विद्यालय से एम ए हिंदी की शिक्षा ग्रहण की। 1985 में दिल्ली विश्व विद्यालय में बोध दर्शन में एमफिल की दीक्षा ग्रहण की। 1995 से 1991 तक उन्होने पीएचडी की उपाधी ग्रहण किया। 1993 से 1997 तक हिंदी के प्रसिद्ध समालोचक प्रो. नामवर सिंह के मार्गदर्शन में जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय में रिसर्च एसोसिएट सहायक प्रोफेसर के रूप में अध्यापन किया। गाजियाबाद व दिल्ली में अध्ययन के दौंरान रमाइंद्र ने कभी गार्ड की नौकरी कर, टयूशन पढ़ा कर व समाचार पत्रों में लेख लिखकर अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होने जवाहर लाल नेहरू विवि में अध्यापन करने से पहले कुछ समय के लिए राजकीय सीनियर सेकंडरी स्कूल(एडल्ट) झील दिल्ली व गाजियाबाद में भी अध्यापन कार्य किया।
जवाहर लाल नेहरू विवि में अध्यापन करने वाले डा रमाइंद्र आज अगर अध्यापन का ही कार्य जारी रखते तो उनको लाख रूपये तक वेतन मिलता। परन्तु सब छोड़कर वे आज सड़क की जिंदगी जी रहे हैं। उनका मिशन है दुनिया में समाजवाद स्थापित करने के लिए। अपने मिशन में पागलपन की हद तक समर्पित डा रमाइंद्र न किसी से बदजुबानी करते है। जिससे मिलते हैं उनको वह समाजवाद लाने का संकल्प दोहराते है। हाॅ उनकी बदहाल स्थिति को देख कर भले उनको लोग नजरांदाज कर प्रताड़ित करते हों परन्तु डा रमाइंद्र को जब पूछा गया कि जब पूरे विश्व में पूंजीवांदी तंत्र ने अपना शिकंजा कसा हुआ है तो आप समाजवाद को कैसे स्थापित करेंगे? इस पर डा रमाइंद्र यही कहते हैं कि दुनिया के वंचित, उपेक्षित, दबे व कुचले लोग जब जागेंगे तभी विश्व में समाजवाद आयेगा। नक्सलियों के बारे में पूछे जाने पर डा रमाइंद्र का कहना है कि नक्सली भी दिशाभ्रमित है। रमाइंद्र का कहना है कि दुनिया में क्रांति जनजागृति से होगी या सशस्त्र क्रांति से होती है। परन्तु डा रमांइंद्र शायद भूल गये कि इस क्रांति के लिए संगठन की जरूरत होती है। डा रमांइंद्र को पूरा विश्वास है कि चाहे देह इस मिशन से पहले ही अंत हो जाय परन्तु उनका संघर्ष रूपि कृतृत्व दुनिया का मार्ग प्रशस्त करेगी। उनका विश्वास है कि हम होगे कामयाब एक दिन………….। दुनिया में आयेगा समाजवाद एक दिन। पर डा रमाइंद्र भले ही दुनिया में मचे धर्म के अंध वर्चस्व की जंग में जहां मानवता को ही कोई स्थान नहीं है तो वहां समाजवाद कैसे साकार हो पायेगा? पर इतना बेहतर है कि डा रमाइंद्र दुनिया के उस वंचित, उपेक्षित, दबे कुचले लोगों की खुशहाली के लिए वर्षो से संघर्षरत हो कर समर्पित है। उनके इस समर्पण के लिए शतः शतः नमन्।