उत्तराखंड

गैरसैंण राजधानी घोषित करने के बजाय पंचतारा सुविधाये न होने से दो दिन में ही समाप्त हुआ विधानसभा सत्र

सेना देश की रक्षा के लिए वर्फवारी में भी चाबीसों घण्टे सीमा पर डटी रहती पर उत्तराखण्डी जनसेवक 3 दिन भी बिना पंचतारा सुविधाओं के जी नहीं सके।

गैरसैंण(प्याउ)। जहां देश की सेना भारी वर्फवारी में भी सीमाओं में 24 घण्टे तैनात रहती है। वहीं उत्तराखण्ड के भाग्य विधाता बने पंचतारा सुविधाओं में जीने के लिए अभ्यस्त प्रदेश की सरकार व विपक्षी, पंचतारा सुविधाओं से वंचित गैरसैंण में एक सप्ताह के लिए चल रहे शीतकालीन सत्र को दो दिन तक ही चला पाये।
उत्तराखण्ड विधानसभा का 7 दिसम्बर से 13 दिसम्बर तक चलने वाला शीतकालीन सत्र दो दिन के कार्यवाही के बाद 8 दिसम्बर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से प्रदेश की जनता हैरान व निराश है। वहीं एक सप्ताह के शीतकालीन सत्र के दो दिन में ही समाप्त किये जाने के पीछे जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत तर्क दे रहे हैं कि विपक्ष के साथी भी सदन जल्द खत्म करने के पक्ष में थे। वे खुद एक दिन और सत्र बढ़ाने के पक्ष में थे, पर बिजनेस खत्म हो चुका था और शनिवार को प्रश्नकाल होना संभव नहीं था। वहीं नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेश का कहना था कि मौसम को देखते हुए यहां सत्र कराया ही नहीं जाना चाहिए था। फिर भी सरकार को शनिवार तक सत्र चलाना चाहिए था। मगर, वह गंभीर नहीं थी। दो दिन में सत्र खत्म करने से यह साफ हो गया।
प्रदेश की जनता को आशा थी कि प्रदेश की पहली बार अभूतपूर्व बहुमत वाली त्रिवेन्द्र सरकार राजधानी गैरसैंण न बनने से उजड़ रहे प्रदेश को बचाने के लिए इस सत्र में जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसैंण को राजधानी घोषित करने का काम करेंगे। प्रदेश में देहरादून में कुण्डली मार के बेठे नेता व नौकरशाहों की पंचतारा सुविधाओं की लत के कारण पूरे पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन पटरी से उतर चूका है। इससे यहां पर विनाशकारी पलायन हो रहा है।  
इस बिकराल समस्या का स्थाई समाधान करने के लिए प्रदेश की वर्तमान सरकार रत्तीभर भी गंभीर नहीं है। सरकार की लापरवाही का नजरिया यह है कि जिस विधानसभा भवन में सदन की कार्यवाही चली वहां पर दरवाजे व खिडकी तक लगाने तक का भी भान सरकार को नहीं रहा। यहां पर कड़ाके की ठंड के बीच मंत्री और विधायकों को सरकार की इस लापरवाही के प्रतीक ठण्डी थप्पेडे सहनी पड़ी।
इसी थप्पेडों व पंचतारा सुविधाओं के वंचित गैरसैंण में देहरादून के पंचतारा सुविधाओं के बीच में जीने के लिए अभ्यस्त ये नेता व नौकरशाहों ने अपनी स्थिति संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत को अवगत की। प्रकाश पंत ने मुख्यमंत्री आदि से विचार कर विधानसभाध्यक्ष से बातचीत कर ंइस शीतकालीन सत्र को 8 दिसम्बर की सांय 5.41 बजे ही  सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की घोषणा की। इससे सभी जनप्रतिनिधियों के चेहरे में मुस्कान फैल गयी।
एक सप्ताह के लिए चलने वाले सत्र के बारे में बताया गया कि तमाम विधायी कार्य पूरे हो गये । शीतकालीन सत्र के पहले दिन 7 दिसम्बर को त्रिवेंद्र सरकार ने अनुपूरक बजट और तबादला कानून पारित कराकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। दो दिन के भीतर 12 विधेयक पारित किए गए। एक सप्ताह तक चलने वाला यह सदन केवल दो दिन में ही समाप्त हो गया। इसमें केवल 9घंटे 35 मिनट कार्य हुआ। पहले दिन गुरुवार को सुबह 11 बजे से शुरू हुआ सत्र भोजनावकाश के बाद शाम 5.15 बजे तक चला।वहीं दूसरे दिन शुक्रवार को पूर्वाहन 11 बजे से भोजनावकाश तक चला और शाम 5.41 बजे स्पीकर प्रेमचंद अग्रवाल ने सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया।
उल्लेखनीय है कि इस सत्र में  विधानसभा की दो नई समितियां बनाने का भी निर्णय लिया गया। इन समितियों में सात-सात सदस्य होंगे। इन सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को देने का निर्णय लिया गया। पलायन पर प्रभावी रोक लगाने के लिए पलायन प्रभावी नियंत्रण समिति और पर्यावरणीय संतुलन को पर्यावरणीय संतुलन एवं संरक्षण समिति बनेगी।
सरकार की इस कार्यवाही का विरोध करते हुए कांग्रेसी नेता व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविद सिंह कुंजवाल ने 8 महिने की इस सरकार पर गैरसैंण में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के प्रति घोर लापरवाही बरतने का अरोप लगाया। श्री कुंजवाल ने कहा जो काम उनके कार्यकाल में हुए थे उसके बाद रत्तीभर भी काम इस सरकार ने नहीं किया। अब जजो बजट सरकार ने अनुपूरक बजट के नाम पर मात्र 10 करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया है। यह राशि ऊंट के मुंह में जीरा है। कांग्रेस ने गैरसैंण का स्थायी राजधानी के रूप में विकास किया था। परन्तु भाजपा सरकार इसकी घोर उपेक्षा कर रही है।  यह जनभावनाओं के साथ प्रदेश के हितों के साथ खिलवाड़ है। एक तरफ सरकार पलायन के नाम पर आंसू बहा रही है। समितियां बना रही है। परन्तु जिस राजधानी गैरसैंण न बनाने के कारण यह सब हो रहा है उसके प्रति सरकार का नजरिया घोेर गैरजिम्मेदारना है।

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