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राजधानी गैरसैंण बनाने व उत्तराखण्ड फिल्म उद्योग के विकास सहित 7 सूत्री मांगों को लेकर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को दिया ज्ञापन
उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारियों व उत्तराखण्ड की अनैक सामाजिक संगठनों ने नई दिल्ली स्थिति उत्तराखण्ड के स्थानिक आयुक्त दिल्ली के द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को भेजा ज्ञापन
नई दिल्ली(प्याउ)।
उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के वरिष्ठ आंदोलनकारियों व उत्तराखण्ड की अनैक सामाजिक संगठनों ने 6 दिसम्बर को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से विधानसभा के शीतकालीन सत्र में ही राजधानी गैरसैंण घोषित करने, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा देने, आंदोलनकारियों के चिन्हिकरण करने, उत्तराखण्डी फिल्मों के विकास की नीति बनाने की पुरजोर मांग की।
6 दिसम्बर को उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के वरिश्ठ आंदोलनकारियों व सामाजिक संगठनों के अग्रणी समाजसेवियों के इस शिष्ट मण्डल में वरिष्ठ आंदोलनकारी देवसिंह रावत, अनिल पंत, शशि मोहन कोटनाला, रोशनी चमोली, जयेंद्र सिंह भण्डारी, पंकज पैंनूली,प्रताप थलवाल ,सत्य प्रकाश नोटियाल, देवकी शर्मा, सुषमा नेगी,अमर चंद्र जेड ए अंसारी आदि सम्मलित थे।
- 6 दिसम्बर को उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के वरिश्ठ आंदोलनकारियों व सामाजिक संगठनों के अग्रणी समाजसेवियों के एक शिष्टमंडल मण्डल ने नई दिल्ली स्थिति उत्तराखण्ड के स्थानिक आयुक्त के द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को भेजे गये ज्ञापन मे मांग की है कि
(1)जनांकांक्षाओं व राज्य गठन आंदोलन की मूल भावना का सम्मान करते हुए सरकार अविलम्ब स्थाई राजधानी गैरसैंण में घोषित करे। अब तक की सरकारें देहरादून में ही राजधानी थोपने का षडयंत कर रही है। जिसके कारण वह उत्तराखण्ड जिसने उत्तराखण्ड राज्य का लम्बां ऐतिहासिक संघर्ष किया था, वह बर्बादी के कगार पर है। उत्तराखण्ड के उन पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, शासन व विकास से वंचित हो कर केवल देहरादून व उसके आसपास के मैदानी जनपदों में कुण्डली मार कर प्रदेश को पतन के गर्त में धकेल रहा है। राज्य गठन आंदोलन से पहले राज्य की जनता ने राजधानी गैरसैंण पर गहन चितन मनन करने के बाद इसको घोषित किया था। इस पर पूर्ववर्ती उप्र की सरकार ने भी अपनी मुहर लगायी थी। लोकशाही में जनभावनाओं का सम्मान करना हर सरकार का प्रथम दायित्व होता है।
अपने निहित स्वार्थ के लिए गैरसैंण रूपि जनहितों व जनभावनाओं को रौंदना न केवल उत्तराखण्ड द्रोह है अपितु यह बाबा मोहन सिंह रावत जैसे महान शहीदों की शहादत का घोर अपमान है। यह उत्तराखण्ड की लोकशाही, सम्मान, हक हकूकों व भविष्य की निर्मम हत्या है। गैरसैंण राजधानी बनाने के मार्ग में अवरोध खडा करके देहरादून में थोपे रहने वाला कृत्य उत्तराखण्डद्रोही राव -मुलायम जैसा ही कृत्य है।
जो लोग राजधानी गैरसैंण बनाने के बजाय देहरादून को राजधानी बनाने का शडयंत्र के तहत ही गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की बात कह रहे है। यह राज्य गठन आंदोलनकारियों, शहीदों व उत्तराखण्ड की लोकशाही का घोर अपमान है।
ज्ञापन में त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा शीतकाल में भी गैरसैंण में शीतलकालिन सत्र के आयोजन करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि आपकी सरकार ने गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन सत्र का आयोजन करने का ऐलान करके का जा सराहनीय कार्य किया। उसके लिए आपको व आपकी सरकार को बधाई। इससे साफ हो गया कि गैरसैंण में राजधानी हो सकती है। यही राज्य गठन आदंोलनकारियों व शहीदों की शहादत का सम्मान होगा। पलायन पर अंकुश लगाने का सबसे बडी पहल होगी।
(2) इस अवसर पर मुख्यमंत्री का ध्यान प्र्रदेश के फिल्म उद्योग की दुर्दशा की तरफ भी दिलाते हुए ज्ञापन में कहा गया कि आपका ध्यान उत्तराखण्ड के प्रमुख धार्मिक शहर रिशिकेश मके रामा सिनेमा हाल द्वारा जनता की भारी मांग के बाबजूद उत्तराखण्डी भाषा (गढ़वाली, कुमाऊनी व जौनसारी )की फिल्मों का प्रदर्षन न करने की हटधर्मिता से उत्तराखण्डी समाज आहत व अपमानित महसूस कर रहा है। उत्तराखण्डी फिल्म निर्माताओं द्वारा कई बार इसकी पुरजोर मांग सिनेमा हाल से की गयी परन्तु उसने न केवल मांग को ठुकराई अपितु अपमानित भी किया। इससे क्षेत्र की जनता में ही नहीं पूरे उत्तराखण्डी समाज में गहरा रौष है। सरकार तुरंत ऐसा कृत्य करने वालों को दण्डित करे।
मान्यवर महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रदेष के फिल्म उद्योग को संरक्षण देने की स्पष्ट नीतियां सरकार ने बनायी है।महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में प्रदेश की बोली भाषाई फिल्मों का प्रदर्शन करना हर सिनेमा /थियेटर हाल को करना अनिवार्य है। इसके अभाव में प्रदेश की फिल्मों को न संरक्षण मिलेगा व नहीं इसका विकास होगा। अफसोस है कि बार बार आग्रह करने के बाबजूद उत्तराखण्ड की 17 सालों की सरकार ने अभी तक इस दिशा में कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई। जिससे फिल्म उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। केवल सरकारें अभी तक आश्वासन ही देती रही, इस मामले में कोई शासनादेश तक नहीं निकाल पायी।
हमें आशा है कि आपकी सरकार प्रदेश की फिल्म उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए (क)उत्तराखण्डी भाषा की फिल्मों को मनोरंजन कर मुक्त किया जाय। (ख)उत्तराखण्डी भाशाई फिल्मों के प्रोत्साहन व संरक्षण के लिए प्रदेश के हर सिनेमा हाल में अनिवार्य प्रर्दशन करने का नियम बनाये। इस नियम का उलंघन करने वाले सिनेमा हाल का पंजीयकन रद्द किया जाय। (ड) उत्तराखण्डी फिल्म उद्योग के प्रोत्साहन व संवर्धन के लिए तुरंत कल्याणकारी फिल्म नीति बनायी जाय।
इसी से राज्य का चहुमुखी विकास होगा। आंदोलन के मुख्य संगठनों की तरफ से आपसे पुरजोर अनुरोध करती है कि आप की सरकार निम्न मांगों को स्वीकार कर प्रदेश को विकास के पथ पर अग्रसर करे।
(क) अविलम्ब राजधानी गैरसैंण बनाओं (ख) उप्र के साथ 17 साल से लंबित पडे परिसम्पतियां के बंटवारे को षीघ्र करने (ग)मुजफ्फरनगर काण्ड-94 सहित राज्य गठन जनांदोलन को अमानवीय ढंग से रौंदने के गुनाहगारों को गुजरात दंगों व 84 के दंगों के तर्ज पर एक मजबूत सर्व अधिकार सम्पन्न आयोग का गठन कर दोषियों को सजा दिलाने का काम करे।
(घ) हिमाचल सहित हिमालयी राज्यो की तरह भू कानून लागू करने (ड़) झारखण्ड व पूर्वात्तर राज्यों की तरह जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन को रद्र करे (च) उत्तराखण्ड फिल्म उधोग को संरक्षण देने (छ) दिल्ली के चयन किये गये आंदोलनकारियों का चिन्हीकरण शीघ्र करे।इस अवसर पर दो ज्ञापन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के लिए स्थानिक आयुक्त के द्वारा भेजा गया। जिसको लेने के लिए स्थानिक आयुक्त कार्यालय में मुख्य स्थानिक आयुक्त ओम प्रकाश की अनुपस्थिति में मृत्युंजय कुमार को सौंपा गया। गैरसैंण राजधानी बनाने सहित 7 सूत्रीमांगों को लेकर दिये ज्ञापन में हस्ताक्षर करने वाले शिष्ट मण्डल में वरिष्ठ आंदोलनकारी देवसिंह रावत, अनिल पंत, शशि मोहन कोटनाला, रोशनी चमोली, जयेंद्र सिंह भण्डारी, देवकी शर्मा, सुषमा नेगी,अमर चंद्र जेड ए अंसारी आदि सम्मलित थे।वहीं फिल्म विकास नीति की मांग वाले सामाजिक संगठनों की तरफ से दिये गये ज्ञापन में शिष्ट मण्डल में वरिष्ठ आंदोलनकारी देवसिंह रावत, अनिल पंत, शशि मोहन कोटनाला, रोशनी चमोली, जयेंद्र सिंह भण्डारी, पंकज पैंनूली, प्रताप थलवाल ,सत्य प्रकाश नोटियाल, देवकी शर्मा, सुषमा नेगी,अमर चंद्र जेड ए अंसारी आदि सम्मलित थे।