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विश्व अदालत में ब्रिटेन को पटकनी दे कर भी भारत बेशर्मी से बना हुआ है 71 साल से अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम

सबसे बड़ी विश्व अदालत में बजा भारत का डंका, ब्रिटेन को दिखाया बाहर का रास्ता
प्यारा उत्तराखण्ड डाट काम

(www.pyarauttarakhand.com)
भले ही इसी पखवाडे अंतरराष्घ्ट्रीय न्यायालय हेग में भारत ने ब्रिटेन को करारी मात देते हुए भारतीय न्यायधीश दलवीर भंडारी की जीत ने ब्रिटेन को 71 साल बाद बाहर का रास्ता दिखा कर इतिहास रचा हो। परन्तु अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी भारतीय हुक्मरानों की अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी की गुलामी ढोने की देश को शर्मसार करने वाले कृत्य से पूरे विश्व में भारत की जग हंसाई हो रही है।

भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने आक्रोश प्रकट किया कि अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी भारत में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन सहित पूरी व्यवस्था उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का ही गुलाम बना हुआ है, जिन्होने शताब्दियों तक भारत को गुलाम बना कर, लाखों माॅ भारती के सपूतों की निर्मम हत्या करने व भारत को निर्ममता से लूटा।
देश के माथे पर लगे इसी बदनुमा कलंक से मुक्ति के लिए भारतीय भाषा आंदोलन ने विगत 56 माह से संसद की चैखट जंतर मंतर से लेकर शहीदी पार्क तक आजादी की जंग छेडी हुई है। देश की सरकारों को दर्जनों ज्ञापन देने के बाबजूद भारत की निर्लज्ज सरकारों ने देश हित की प्रथम मांग को मानने के बजाय देश के सम्मान, लोकशाही  की रक्षा करने वाले आंदोलनकारियों पर पुलिसिया कहर ढाते हुए 30 अक्टूबर को धरना ही उजाड़ने का निंदनीय अलोकतांत्रिक कृत्य किया। 30 अक्टूबर से एक महिने होने को है अभी तक भारत सरकार देश में लोकशाही के ध्वजवाहकों के लिए कोई आंदोलन स्थल तक घोषित किया है।
सरकार की इस अलोकत्रातिक कृत्य का भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, महासचिव अभिराज शर्मा, धरना प्रभारी रामजी शुक्ला, कोषाध्यक्ष सुनील कुमार, स्वामी श्रीओम, पत्रकार अनिल पंत, आशा शुक्ला, ने कडी भत्र्सना की। इसके साथ सरकार की इस अलौकतांत्रिक कृत्य की कड़ी भत्र्सना करने वालों में गौ रक्षा आंदोलन के मुसद्दी लाल, समाजवाद आंदोलन के ध्वजवाहक वर्षाे से अनशनकारी डा रमाइन्द्र कुमार सहित अन्य आंदोलनकारी प्रमुख है।

वहीं दूसरी तरफ अंतर्राष्टीय स्तर पर एक ऐतिहासिक घटना में भारी उलट फेर करते हुए भारत ने सुरक्षा परिषद के सदस्यों के बर्चस्व को खुली चुनौती देते हुए उनके सम्राज्य की चूलें हिला दी। हेग में न्यायधीश के पद के लिए हुए चुनाव में 11 राउंड में भारत ने दो तिहाई मतों से अपना पलड़ा भारी रखा, लेकिन सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन के पक्षधर रहे, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में भारत को बार-बार मिले बहुमत ने ब्रिटेन को चुनाव से बाहर हो जाने को विवश कर दिया। जिससे दूसरी बार दलवीर भंडारी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पदासीन हो गए।
वीटो की शक्ति रखने वाले पांच स्थाई सदस्यों ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका पर भारत का दबदबा कायम कर दिया है। उन्होंने कहा कि दूसरे विश्व महायुद्ध के बाद विजेता शक्तियों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सदस्यता हासिल कर वीटो की शक्ति के मालिक बन गए। तब से अब तक विश्व में बड़े परिवर्तन होने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद में कोई सुधार और विस्तार न होने से पूरा ढांचा अप्रासंगिक हो गया है।

महासभा में भारत के लिए मिला समर्थन संगठन में सुधार और विस्तार का संकेत है लेकिन विश्व की शक्तियां इस तथ्य को पचा नहीं पा रही है। 5 स्थायी सदस्यों में से फ्रांस, भारत की दावेदारी का समर्थन करता है। भारत का प्रतिस्पर्धी चीन का कहना है कि संघ के सुधार का अनुकूल समय नहीं है और अमेरिका सदस्यता देने पर सहमत होते हुए वीटो विहीन सदस्यता का पक्षधर है।
इसके बाबजूद भारतीय हुक्मरान देश के सर पर से  71 साल में नाच रहा अंग्रेजी गुलामी के भूत को उतारने के लिए तैयार नहीं है। ऐसी शर्मनाक गुलामी विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलती है। भारतीयों को ऐसा लगता है कि संसार में ज्ञान विज्ञान, विकास व सम्मान की एकमात्र भाषा अंग्रेजी है। जबकि चीन, जापान, रूस, जर्मनी, फ्रांस, इटली, इंडोनेशिया, कोरिया, टर्की, इजराइल सहित पूरे विश्व के विकसित व सम्मानित अग्रणी देश अपने अपने देश की भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व सम्मान दे कर अपने देश का परचम पूरे विश्व में लहरा रहे है। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ध्वजवाहक होने वाली संघ पोषित भाजपा व आजादी का संग्राम लड़ने की हुंकार भरने वाली कांग्रेस के साथ सर्वहारा की बात करने वाले वामपंथियों के शासन देश में होने के बाबजूद सभी अंग्रेजी की गुलामी को ढौने की अंधी प्रतियोगिता ही करते रहे। इन बेशर्मो को 71 साल बाद भी तनिक सी भी लज्जा नहीं आ रही है। इसी के खिलाफ भारतीय भाषा आंदोलन आजादी की जंग छेडे हुए है।

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