आजाद देश को अपने नाम व भाषाओं से वंचित कर विदेशी भाषा का गुलाम बनाना सबसे बड़ा देशद्रोह है-भारतीय भाषा आंदोलन
लाखों भारतीयों के कातिल, लूटेरे व भारत को गुलाम बनाने वाले अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का देश 71 साल से गुलाम क्यों?
देश को अंग्रेजी का गुलाम बनाना सबसे बड़ा देशद्रोह, जघन्य अपराध, भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों का हनन है।
नई दिल्ली(प्याउ)। किसी भी आजाद देश को अपने नाम व भाषाओं से वंचित कर विदेशी भाषा का गुलाम बनाये रखना देशद्रोह है। यह दो टूक ऐलान किया भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने । भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष श्री रावत ने आश्चर्य प्रकट किया कि लाखों सपूतों ने जिस आजादी को हासिल करने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान देकर शताब्दियों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए अंग्रेजो को भारत से खदेड़ने का संघर्ष किया था। वह आजादी 1947 में अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी देश को हासिल नहीं हुई।
देश के हुक्मरानों ने गुलामी के अंध मोह में देश को पुन्न उसी महारानी विक्टोरिया के सम्राज्य को संचालित करने वाली अंग्रेजी का गुलाम बना दिया है। अंग्रेजों के जाने के 71 साल होने को है। देश ने गांधी के नाम पर राज करने वाले कांग्रेसियों, जयप्रकाश के नाम पर राज करने वाले जनता पार्टी व सर्वहारा की बात करने वाले वामपंथियों के समर्थन वाली व भारतीयता के ध्वजवाहक होने की बात करने वाले संघ पोषित भाजपा का शासन देखा। परन्तु देश को अपनी भाषाओं का राज आज तक भी नहीं मिला। देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन ही नहीं मान सम्मान भी केवल व केवल अंग्रेजी भाषा को है। देश में अंग्रेजी का ही राज चल रहा है। इसी गुलामी से देश को मुक्ति दिलाने के लिए भारतीय भाषा आंदोलन ने संसद की चौखट पर ऐतिहासिक आजादी की जंग छेड़ी हुई है। देश में आजादी के सूर्योदय के लिए। माॅं भारती के सपूत देश के माथे से इसी गुलामी के कलंक को मिटाने के लिए विगत 56 माह से सरकार के दमन, समाज, व समाचार जगत की घोर असहयोग के बाबजूद बिना चंदा के आजादी की इस जंग की मशाल को रोशन किये हुए है।
भारतीय भाषा आंदोलन के प्रमुख ने देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कराके भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित कराने की मांग को लेकर भारतीय भाषा आंदोलन संसद की चौखट ,जंतर मंतर से लेकर शहीदी पार्क पर विगत 56 माह से आजादी की जंग छेड़े हुए है। श्री रावत ने कहा कि कुछ लोगों में यह भ्रम है कि हम अंग्रेजी हटा कर हिंदी थोपने के मांग कर रहे है। हकीकत यह है कि भारतीय भाषा आंदोलन हिंदी थोपने की नहीं अपितु भारतीय भाषाओं को लागू करने व अंग्रेजी की गुलामी दूर करने की मांग करता है। हमारी मांग है जिस राज्य की जो भाषा है उसमें न्याय, शिक्षा, रोजगार दो। अंग्रेजी की अनिवार्यता बद करो। जब यूरोपीय संघ चार भाषाओं में संचालित हो सकता है। संयुक्त राष्ट्र भी अनैक भाषाओं में संचालित हो सकता है। आज तकनीकी युग में भारत में क्या भारतीय भाषाओं में संचालित हो सकता है। हम तमिलनाडू में तमिल में, बंगाल में बंगाली में, उडिसा में उडिया में, महाराष्ट्र में मराठी में, असम में असमी में, आदि में न्याय मिले। वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चों की प्रतिभा का विकास उसकी मातृभाषा में होता है उसको शिक्षा, न्याय, रोजगार व शासन उसी भाषा में दो। आखिर लोकतंत्र जनता की भाषा में नहीं होने से लोकतंत्र कहां जिंदा रहता है।
अंग्रेजी शिक्षा थोपने के कारण पूरा देश लूटतंत्र में तब्दील हो गया। आज फिरंगी शिक्षा व्यवस्था के कारण अंग्रेजों को लूटवृति ही इस तंत्र में हावी है। इस शिक्षा व्यवस्था के कारण आज अधिकांश उच्च वर्ग चाहे भारतीय प्रशासनिक सेवा में हो या पुलिस सेवा या अन्य वर्ग, इंजीनियर हो या डाक्टर या स्वयं सेवी संस्थायें या तथाकथित जनप्रतिनिधी बने डकैत प्रायः अंग्रेजों की मूलवृति लूट खसोट पर ही लगी है। इसीलिए भारत जो अपनी भाषाओं के राज में विश्व गुरू,वीरों का देश व सोने की चिडिया था वह 71 साल से चल रही अंग्रेजी की गुलामी की व्यवस्था में संसार का सबसे भ्रष्ट्रतम देश, असहाय, गरीब व कायर देश बन गया है।
जबकि अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में तथाकथित शिक्षा की साक्षरता का स्तर बहुत ही ऊंचा है। देश के लोगों का मूल चरित्र जमीदोज हो गया। हम अंग्रेजी पढ़ने व बोलने का भी विरोध नहीं कर रहे है। एक भाषा की तौर पर इंसान जानवरों की भी भाषा सीख सकता है। सदियों से भाषाविद् ऐसा करते रहे। परन्तु पूरे देश को अपनी भाषाओं से वंचित करके उन्हीं लूटेरे अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का देश गुलाम बलात बनाया जाय, जिन्होने इस भारत के लाखों देशभक्तों को कत्ल किया, लाखाों लोगों का दमन किया। अरबों खरबों की सम्पति को लूट कर बिट्रेन का विकास किया। ऐसे लूटेरों की भाषा अंग्रेजी को संसार में एक मात्र ज्ञान विज्ञान व विकास की भाषा मानने वाले देशद्रोही हुक्मरानों ने ‘अंग्रेजी का राज भारत में बलात थोप कर’ आज इस देश के नाम व संस्कृति को मिटा कर अंग्रेजों का गुलाम बनाये रखने के अंग्रेजी सम्राज्ञी के ‘राष्ट्र मण्डल’ के षडयंत्र के प्यादे बने है। इन जयचंदों ने पूरे विश्व से भारत का नाम मिटा कर इसे अंग्रेजों द्वारा बलात थोपा गया इंडिया नाम व उनकी भाषा अंग्रेजी का गुलाम बना रखा है। यह किसी देश द्रोह से कम नहीं है। सबसे हैरानी की बात है इस देशद्रोह का कहार बनते हुए न तो वंदे मातरम् व भारत माता की जय कहने वाले तथाकथित राष्ट्रवादियों -भाजपाईयों की आत्मा उनको धिक्कारती है व नहीं सम्राज्यवादियों का विरोध करके सर्वहारा की बात करने वाले तथाकथित वामपंथी की जुबान ही खुलती। दुनिया को कह दो गांधी अब अंग्रेजी नहीं जानता की बात करने वाले कांग्रेसी तो सत्तामोह में इतने अंधे हो गये थे कि उनको फिरंगियों की जय हे गाने के अलावा कुछ और नहीं सुझता है।
इनको भारत पर 71 साल से थोपी गयी अंग्रेजी की गुलामी नहीं दिखाई देती। न्याय पालिका अंग्रेजी की गुलामी ढोने वाले कहारों से भरी है। वे विरोध कर सकते है। परन्तु ये लोकशाही मुटठी भर कहारों के रहमों करम पर कुर्वान नहीं की जा सकती। देश की जनता को देश की भाषा में न्याय मिले। जिन मठाधीशों, नौकरशाहों, चिकित्सकों, इंजीनियरों व नेताओं को भारतीय भाषा से परहेज है उनको महारानी की चाकरी करने के लिए जाने से किसने रोका। परन्तु भारत की आत्मा को रौंदने का काम न करे। कोई भी स्वाभिमानी देश गुलामी के कलंक को इतनी बैशर्मी से नहीं ढो सकता। भारत द्रोही फिरंगी भाषा को भारत में थोपे रखने वाले आस्तीन के सांप बने हुक्मरानों को नहीं दिखाई देता कि विश्व में रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इंटली, जापान, कोरिया, इजराइल, इंडोनेशिया व टर्की सहित सभी विकसित देश, अपनी भाषाओं में ही शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन चला कर पूरे विश्व में अपने विकास के कीर्तिमान स्थापित किये हुए है। विश्व के सबसे बडी लोकशाही, सबसे प्राचीन समृद्ध संस्कृति होने के साथ संसार में महाशक्ति होने की हुंकार भरने वाला देश भारत अपने नाम व भाषाओं को जमीदोज कर उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी की गुलामी ढ़ो रहा है जिसने शताब्दियों तक भारत को लूटा, लाखों भारतीयों का कत्लेआम करके गुलाम बनाये रखा। यह सबसे बड़ा देशद्रोह, भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों का हनन है। यह देश के प्रति सबसे बड़ा जघन्य अपराध है। परन्तु देश में ऐसी गुलामी है कि किसी नेता, नौकरशाह, न्यायविद्, बुद्धिजीवी, साहित्यकार, संत, पत्रकार को यह गुलामी दिखाई नहीं देती। उनकी आत्मा उनको नहीं धिक्कार रही है। उनको लज्जा तक नहीं आती।
पर अब भारत जाग गया है, भारतीय भाषा आंदोलन विगत 56 माह से संसद की चौखट, जंतर मंतर से लेकर शहीदी पार्क में देश को अंग्रेजी की गुलामी से भारत को आजाद करके भारतीय भाषायें लागू कराने के लिए आजादी की जंग छेड़ी हुई है। दल दलों के कहार बनी देश की राजनीति में देशभक्त अब माॅ भारती को आजाद कराने के लिए लाखों सपूतों की शहादत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करा कर दंम लेंगे।