कांग्रेसी चक्रव्यूह व युवा तिकड़ी ( हार्दिक, अल्पेश व जिग्नेश ) के प्रहारो में दरक सकता है मोदी-शाह की भाजपा का अभेद गुजरात किला
जातिवादी तिकडमी राजनीति से न गुजरात का भला होगा व नहीं देश का भला
कांग्रेसी चक्रव्यूह में घिरी भाजपा की आशाओं पर पानी फेर सकती है हार्हिक, अल्पेश व जिग्नेश की युवा तिकडी
देवसिंह रावत
गुजरात चुनाव की रणभेरी बजाने में भले ही चुनाव आयोग देर कर रहा हो, पर साफ हो गया कि गुजरात चुनाव के परिणाम भी 18 दिसम्बर को हिमाचल विधानसभा चुनाव परिणाम के साथ घोषित होंगे। परन्तु गुजरात में विधानसभा चुनाव 2017 की विसात बिछ चूकी है। जिस प्रकार से 4 मार्च 1998 से गुजरात में सत्तासीन हुई भाजपा को 2017 का चुनाव भाजपा की छटी बार विजयी होने की आश पर पानी फेरने वाला हो सकता है। बिना मोदी के गुजरात में भाजपा को सत्ता को बचाये रखना बेहद कठिन लग रहा है। खासकर मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों से व्यापारी वर्ग, बेरोजगारी से युवा वर्ग के साथ गुजरात में युवा तिकडी ( पटेल समुदाय यानी पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, पिछडे वर्ग के युवा नेता -अल्पेश ठाकोर, व युवा दलित नेता जिग्नेश ) के कारण भाजपा की आशाओं में एक प्रकार से बज्रपात सा होता लग रहा है। भाजपा के खिलाफ गुजरात के माहौल को देख कर चुनाव से पहले चुनावी विशेषज्ञों को लग रहा है कि कांग्रेस इस चुनाव में भाजपा को छटी बार ताजपोशी पर ग्रहण लगा सकती है। परन्तु जबसे गुजरात की राजनीति को विगत 3 सालों से उद्देलित करने वाले जातिवादी युवा नेताओं का खुला संग कांग्रेस के साथ दिखाई दे रहा है उससे देश व प्रदेश के हितों के लिए चिंतित आम जनता को कांग्रेस का यह दाव गले नहीं उतर रहा है। ऐसे में साफ लग रहा है गुजरात में कांग्रेस की जीती सी जंग पर जातिवादी तिकडम का ग्रहण लग गया है।
गुजरात में जिस प्रकार लोग भाजपा से नाखुश है, उसको सबक सिखाने के लिए लोगों के पास कांग्रेस ही है। आप व अन्य दल गुजरात में भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। ऐसी स्थिति में गुजरात में जनता के पास कांग्रेस ही स्वाभाविक विकल्प है। परन्तु जिस प्रकार से कांग्रेस ने प्रदेश में जातिवादी राजनीति के ध्वजवाहकों हार्दिक पटेल, हल्पेश व जिग्नेश का खुला समर्थन करके उनसे समर्थन मांगा है। उससे लोगों को भाजपा के इन आरोपों में सच्चाई नजर आ रही है कि इन जातिवादी राजनीति को हवा देने के पीछे कहीं न कहीं कांग्रेस ही है।
खासकर पाटीदार जैसे गुजरात के सबसे समृद्ध व मजबूत समाज के लिए आंदोलन का आरक्षण का आंदोलन लोगों के गले नहीं उतर रहा है। युवाओं के लिए रोजगार बढ़ाने की बात हो सकती है। आज के युग में जब जातिवाद को खात्मे की बात कर रहे है, उस समय में गुजरात को पुन्न जातिवाद की गर्त में धकेलना किसी भी समझदार इंसान के गले नहीं उतरेगी। गुजरात ही नहीं देश का आम आदमी जानता है कि सरकार रोजगार पर्याप्त संख्या में सृजन नहीं कर रही है परन्तु समाज को भ्रमित करने के लिए आरक्षण का दुदभि बजा रहे है।
ऐसी मांगों को कोई भी जिम्मेदार राजनैतिक दल व बुद्धिजीवी समर्थन नहीं कर सकता है। परन्तु कांग्रेस जातिवादी क्षत्रपों को हवा देना कहीं भी प्रदेश व देश की राजनीति के लिए उचित नहीं है।
4 मार्च 1998 में जब केशुभाई पटेल ने सत्ता संभाली तब से 7 अक्टूबर 2001 से 22 मई 2014 तक नरेन्द्र मोदी तब तक मुख्यमंत्री रहे जब वे प्रधानमंत्री बन गये। उसके बाद गुजरात में आनंदी बेन पटेल आसीन हुई। अब 7 अगस्त 2016 से विजय रूपानी आसीन है। यानी बीस वर्षो से भाजपा का शासन गुजरात में है।
मोदी सरकार की नोटबंदी व जीएसटी आदि आर्थिक नीतियों की वजह से गुजरात के व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा है। वे भाजपा से बेहद नाराज है। यहां तक कहा जा रहा है कि हमारी भूल कमल का फूल। लिहाजा, उनका रुझान भी भाजपा से हटकर कांग्रेस की तरफ हो सकता है। 2014 के आम चुनावों में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी। इसके साथ ही भाजपा की झोली में अकेले 60 फीसदी वोट गए थे लेकिन मौजूदा दौर में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपने गृह राज्य का दौरा बार-बार करना पड़ रहा है ताकि अपने गढ़ को वो बचा सकें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक महीने में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं।
गुजरात में 15 प्रतिशज जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला भाजपा का समर्थक माना जाने वाला पाटीदार समाज हार्दिक पटेल के आंदोलन से भाजपा से नाराज माना जा रहा है। वहीं ओबीसी समाज में अल्पेश ठाकोर व दलित नेता जिग्नेश की युवा तिकड़ी ने कांग्रेस के पक्ष में खडे होने से भाजपा की आशाओं पर ग्रहण लगने के आसार नजर आने लगे है।
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से गुजरात के व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ा है। लिहाजा, उनका रुझान भी भाजपा से हटकर कांग्रेस की तरफ हो सकता है।
2014 के आम चुनावों में गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी। इसके साथ ही भाजपा की झोली में अकेले 60 फीसदी वोट गए थे लेकिन मौजूदा दौर में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में कमी आई है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी को अपने गृह राज्य का दौरा बार-बार करना पड़ रहा है ताकि अपने गढ़ को वो बचा सकें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक महीने में तीन बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं।
गुजरात की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज कराने वाले पटेल समुदाय। भाजपा का सबसे बडा समर्थक समुह है। परन्तु हार्दिक पटेल द्वारा पटेलों को आरक्षण देने की मांग के कारण गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में 80 सीटोें पर निर्णायक भूमिका निभाने वाले पटेल समुदाय पूरी तरह लामबद है। वर्तमान विधानसभा में भाजपा में ही 44 विधायक पटेल समुदाय से है। पटेल समुदाय को आदंोलित कराकर हार्दिक पटेल ने भाजपा की एक प्रकार से चूलें हिला दी।
भाजपा की रणनीतिकार भी इस बार का चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं मान रहे है। खासकर जिस प्रकार से पाटीदार, दलित व आदिवासी आदंोलन से गुजरात का जनमानस उद्देलित हुआ उससे गुजरात की परंपरागत चुनावी समीकरणों पर कहीं न कहीं बहुत प्रभाव डालेगा। गुजरात चुनाव में छन कर आ रही उसके मुबाबित भाजपा के लिए वहां पर जातिवादी आंदोलन ने गहरा नुकसान कर दिया है। कई चुनावी विशेषज्ञ गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा को 60 विधानसभा सीटों पर ही सिमटते नजर आ रही है।
भाजपा की कमजोर स्थिति के कारण ही कांग्रेस से इस्तीफा दे चूके गुजरात के दिग्गज नेता बघेला ने भाजपा का दामन थामने से परहेज किया। भाजपा की कमजोर स्थिति का आंकलन करके ही गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी पटेल ने विधानसभा चुनाव में उतरने से मना कर दिया।
गुजरात में भाजपा की कमजोर स्थिति होने के कारण ही गुजरात विधानसभा चुनाव का ऐलान गत सप्ताह हिमाचल विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ नहीं की जा सकी। इसका मुख्य कारण यह है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की कमजोर स्थिति से उबारने के लिए मोदी व गुजरात सरकार निरंतर अनैक लोक लुभावनी घोषणा करने में लगी हुई है। मोदी व शाह चुनावी राजनीति के देश में इस समय सबसे बडे दिग्गज स्थापित हो चूके है। ऐसे में प्रधानमंत्री रहते हुए अपने गृह राज्य गुजरात में प्रदेश की सत्ता विरोधी कांग्रेस की झोली में जाने देंगें इसकी कल्पना उनके विरोधी भी नहीं कर सकते है। इसलिए मोदी व उनके सिपाहेसलार शाह के बारे में विख्यात है कि वह चुनाव जीतने के लिए साम दाम दण्ड भेद सभी दाव को चलते है। हर हाल में चुनाव जीतने के लिए जाने जाते है। इसलिए गुजरात का चुनाव भाजपा यों ही हार जायेगी ऐसा नहीं।
गुजरात के चुनाव पर ही 2019 का लोकसभा चुनाव में फतह की नींव है। गुजरात में अभी तक भाजपा को कांग्रेस से कम से कम 10 प्रतिशत से अधिक की बढ़त है। भाजपा के पास 40 से 48 प्रतिशत मतों का साथ रहा। इस प्रकार गुजरात का विधानसभा चुनाव कांटे की टक्क्र वाला होगा। परन्तु इस चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत घटने के साथ कांग्रेस का मत प्रतिशत बढना तय है। सत्ता में जो भी रहे उन्हें जातिवादी युवा तिकडी की लक्ष्मण रेखाओं पार पाना टेढ़ी खीर ही साबित होगी।