शिवलाल, गोपाल उप्रेती, व स्व. नैनसिंह रावत के परिजनों की उद्यमी प्रवृति से प्रेरणा ले युवा
राजधानी गैरसैंण के बिना उत्तराखण्ड में हो रहा देहरादूनी विकास भी प्रदेश को बदहाली की गर्त में धकेलने वाला है
देवसिंह रावत
हम सरकारी विकास के बजट की बंदरबाट करने वाले बटमारों की तरह हरामखोर नहीं है
अपितु अपनी मेहनत की दो रोटी खाने में विश्वास करने वाले उत्तराखंडी कर्मवीर हैं।
रोड़ पर फल बेचकर मानों यही संदेश दे रहे हैं यह किसान।
अपने बाग के अमरुद आदि फलों को बेचकर आज लोगों को भी आत्मनिर्भर बनने की सीख देते हुए सीमांत जनपद चमोली के जैटी( -सुनला)का कर्मवीर किसान शिवलाल
इसी सप्ताह में देहरादून होते हुए अपने गांव कोठुली-चमोली जा रहा था। सुनला से उपर अपने गांव की तरफ जीप से जाते हुए मुझे कंडारा के नीचे सड़क के किनारे एक व्यक्ति को फल बेचते देख कर सुखद आश्चर्य हुआ। यह किसी के लिए सामान्य घटना हो सकती है परन्तु मै उस सामान्य व्यक्ति की व्यवसायी व कर्मवीरता को देख कर गदगद था।
मुझे सड़क के किनारे वह भी अपने गांव के आसपास अपने खेत खलिहान के फसल बेचते हुए एक कर्मवीर दिखा तो दिल में बहुत खुशी हुई। हरिद्वार से श्रीनगर तक या गर्मपानी, नैनीताल आदि ऐसे पहले से मोटरमार्गो से जुडे क्षेत्रों में तो ऐसे नजारे पहले भी देखे। पर सुदूर सीमान्त पर्वतीय क्षेत्र में ऐसे व्यवसायिक नजारा अपने क्षेत्र में देख कर बहुत खुशी हुई । बहुत ही अनुकरणीय कार्य है जेंटी के शिवलाल जी का। नहीं तो मैने देखा हमारे लोग या तो ताछ या धूर्त राजनेताओं के चारण बनने या गप्प बाजी या शराब इत्यादि में समय बर्बाद करते है।
यह व्यवसायिक दृष्टिकोण ही उत्तराखण्ड को हिमाचल की तरह आत्मनिर्भर व खुशहाल बना सकता है। उत्तराखण्ड में देहरादून या कस्बाई शहरों में ही नहीं अपितु सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में भी बाहरी घुसपेटिये व असामाजिक तत्व भी सब्जी, फल, चाय, फेरीवालों या अन्य कामगार के रूप में उत्तराखण्ड में काबिज हो चूके है, जो भविष्य में ही नहीं अपितु वर्तमान में भी उत्तराखण्ड की शांति को भंग कर रहे है। इन कामों को हमारे युवा बहुत ही आराम से कर सकते हैं। परन्तु इस फिरंगी शिक्षा ने हमारे युवाओं को न केवल खेत खलिहान से अपितु अपनी मूल प्रवृति कर्मवीर, ईमानदारी व ज्ञान ग्राही से दूर कर दिया है। ऐसे में हमारे प्रदेश में अगर शिवलाल जी जैसे कर्मवीर व उद्यमी इंसान हो तो प्रदेश का दिशा व दशा ही बदल सकता है। इसके लिए प्रदेश के हुक्मरानों का प्रदेश के हितों के प्रति ईमानदार होना जरूरी है। दुर्भाग्य से उत्तराखण्ड के पास हिमाचल की दिशा व दशा बदलने वाले परमार व वीरभद्र की तरह के प्रदेश के हक हकूकों व विकास के लिए काम करने वाला नेता है ही नहीं। केवल दलों के प्यादे व निहित स्वार्थ के लिए राजनीति करने वाले जंतु है।
इसके लिए हिमाचल की तरह उत्तराखण्ड सरकार का संरक्षण व नीति बहुत ही जरूरी है। क्योंकि उत्तराखण्ड को हिमाचल की तरह ही समृद्ध राज्य बनाने के लिए रानीखेत के गोपाल उप्रेती व चकरोता के स्व. नैनसिंह रावत जी के परिजन सहित कई कर्मवीर उद्यमी सेव आदि फलों के उद्य़ान लगा कर प्रदेश सरकार व जनता को दिशा देने का अनुकरणीय काम कर रहे है। गोपाल ने पूरे भारत को सेव के उद्यान के लिए दिशा देने वाले चिरबटिया क्षेत्र अल्मोड़ा में प्रदेश के युवाओं के लिए आत्मनिर्भर होने का विशाल बाग लगा कर एक अनुकरणीय कार्य किया है। स्व. नैनसिंह रावत का क्षेत्र तो हिमाचल से लगा हुआ था। उनका परिवार हर माह दशकों से लाखों रूपये के सेव बेच कर आत्मनिर्भर बना हुआ हैं।
परन्तु पूरे प्रदेश को समृद्ध बनाने के लिए सरकार की समग्र नीति व नियत की नितांत जरूरत है। सरकार वह भी उत्तराखण्ड की सरकार भी हिमाचल की तरह प्रदेश के हितों को अपने निहित स्वार्थ, पदलोलुपता व दलीय आकाओं के लिए दाव न लगाने वाली चाहिए। इसके लिए उत्तराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, चहुमुखी विकास व लोकशाही के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाने की हिम्मत जुटाने वाली सरकार चाहिए। राजधानी गैरसैंण के बिना प्रदेश का विकास भी प्रदेश को बदहाली की गर्त में धकेलने वाला होगा। क्योंकि पंचतारा व विकास में सेंघमारी का प्रतीक बन चूका देहरादूनी शासन प्रदेश के सीमान्त व पर्वतीय क्षेत्रों से शिक्षा,चिकित्सा, रोजगार व शासन से वंचित करने का पर्याय बन चूका है।