उत्तराखण्ड राज्य गठन की जनभावनाये है राजधानी गैरसैंण, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के दोषियों को सजा दिलाने व भ्रष्टाचार रहित सुशासन
मुजफ्फरनगर काण्ड-94 काण्ड के गुनाहगारों को सजा दिलानेे के लिए आयोग बनाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाये मुख्यमंत्री
2 अक्टूबर को मुख्यमंत्री जिस समय शहीद स्थल रामपुर तिराहे में श्रद्धांजलि दे रहे थे उसी समय संसद की चैखट पर उत्तराखण्डी 23 साल बाद भी गुनाहगारों को सजा न दिये जाने पर काला दिवस मना रहे थे।
देवसिंह रावत
काश संघ के आशीर्वाद से उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए संघ के स्वयं सेवक रहे त्रिवेन्द्र रावत, संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा विजया दशमी 2017 को दी गयी सीख का सम्मान रखते तो उत्तराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षायें साकार हो जाती। संघ प्रमुख ने विजयी दशमी के दिन संघ मुख्यालय में दिये गये ऐतिहासिक संबोधन में देश के हुक्मरानों को दो टूक शब्दों में कहा था कि उन्हे जनभावनाओं का सम्मान करना चाहिए। जनमत का सम्मान होना चाहिए।
देवभूमि कही जाने वाले उत्तराखण्ड का शर्मनाक पतन यहां पर 17 साल की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों ने जनविरोधी कृत्य करके किया। उससे जनता बेहद निराश व आक्रोशित है। परन्तु सुशासन, भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने के साथ राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के नाम पर सत्ता परिवर्तन जितनी बार यहां हुआ सत्ता पाते ही यहां के सत्तासीनों ने जनभावनाओं को रौंदने का ही काम किया।
ऐसा ही नजारा देखने को मिला इसी 2 अक्टूबर को । 2 अक्टूबर को जहां उत्तराखण्डी समाज दिल्ली में संसद की चैखट जंतर मंतर पर मुजफ्फरनगर काण्ड 94 के गुनाहगारों को 23 साल बाद भी सजा न दिये जाने से आहत हो कर राज्य गठन के अग्रणी आंदोलनकारी संगठनों व राजधानी क्षेत्र के जागरूक सामाजिक संगठन काला दिवस मना रहे थे।
वहीं दूसरी तरफ उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत, शहीद स्थल रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर पहुंच कर उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की पुण्य स्मृति में पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि देने के बाबजूद इस काण्ड के गुनाहगारों को सजा देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह एक आयोग के गठन का ऐलान करने का साहस नहीं जुटा पाये।
जंतर मंतर पर आंदोलनकारी व उत्तराखण्ड के समाजसेवी मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के जिन दोषियों को सीबीआई व इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराये गये गुनाहगारों को सजा देने के बजाय शर्मनाक संरक्षण देने के लिए उप्र, केन्द्र व उत्तराखण्ड की सत्ता में आसीन सरकारों को धिक्कार रही थी। परन्तु सब कुछ जानने व समझने के बाबजूद अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की तरह ही मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी इस काण्ड के दोषियों को दण्डित करने के लिए गुजरात दंगों व 1984 के दंगों के दोषियों को दण्डित करने के लिए बनाये गये आयोग सा गठन करने का साहस तक नहीं कर पाये। आखिर देश की न्याय पालिका दोषियों को सजा क्यों नहीं दे पायी। वे कोन है जो गुनाहगारों को सजा देने के बजाय देश की संस्कृति, न्याय व सम्मान को रौंदते हुए संरक्षण दे रहे है। आखिर क्या मजबूरी है कि भाजपा भी सपा, बसपा व कांग्रेस की तरह इस काण्ड पर गुनाहगारों को दण्डित कराने से कतरा रही है।
रामपुर तिराहे स्थित शहीद स्मारक में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने क्षेत्र वासियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि रामपुर तिराहा कांड राज्य आंदोलन को एक ऐसे मोड़ पर ले आया था जिसने तत्कालीन सरकारों को हिलाकर रख दिया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि उस वक्त उत्तराखंडवासियों का संकल्प था कि चाहे जो कुछ भी हो राज्य का निर्माण करके रहेंगे। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में हमारे नौजवानों ने अपने जीवन की आहुति दी थी, इस आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया था। आज हम उनको यहां पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि राज्य सरकार, आंदोलनकारियों की आकांक्षाओं के अनुरूप प्रदेश का विकास करने के लिए प्रतिबद्ध है।
ऐसा भी नहीं कि केवल मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ही जनभावनाओं को नजरांदाज कर रहे हो। दुर्भाग्य यह है उत्तराखण्ड के जितने भी मुख्यमंत्री हुए उन्होने निर्ममता से राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को रौंदने का काम किया। राज्य गठन जनांदोलन से पहले ही प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने पर न केवल आंदोलनकारी व प्रबुद्ध जन एकमत थे अपितु उप्र की सरकार ने भी गैरसैंण राजधानी बनाने पर अपनी मोहर लगायी। प्रदेश की जनता ने यहां पर हिमालयी राज्यों की तरह ही भू कानून बनाने, हक हकूकों की रक्षा करते हुए व भ्रष्टाचार रहित विकासोनुमुख सुशासन के लिए राज्य का गठन किया था। भारतीय संस्कृति की उदगमस्थली उत्तराखण्ड को आदर्श राज्य बनाने के लिए जनता ने मुलायम व राव के दमन का मुंहतोड़ जवाब दिया था। परन्तु राज्य गठन के बाद प्रदेश की अब तक की भाजपा व कांग्रेस की सरकारों ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए गैरसैंण राजधानी बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा देने, भू कानून बनाने, भ्रष्टाचारियों व अपराधियों को शासन प्रशासन से दूर रखने करना तो रहा दूर मात्र दलीय मठाधीशों व अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति में जनांकांक्षाओं को देहरादून से पंचतारा सरकार थोपने लगे इससे प्रदेश पतन के गर्त में चले गये और पूरे सीमांत जनपदों व पर्वतीय जनपदों से खौपनाक पलायन हो गया।
आज प्रदेश जनभावनाओं को रौंदने वाली नौकरशाही के शिकंजे में जकडा हुआ है। प्रदेश के हुक्मरानों को इतनी भी होश नहीं है कि जनता में उनके मुंह लगे नौकरशाहों की क्या छवि है। ईमानदार नौकरशाहों को दरकिनारे करके मात्र बंदरबांट करने में माहिरों को क्यों वरियता दी जाती है। क्या प्रदेश देश व जनता खुशहाली के होता है या दिल्ली में बैठे अपने राजनैतिक आकाओं व निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए।
गैरसैंण राजधानी न बनाये जाने से पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन सबकुछ देहरादून व इसके आसपास कुण्डली मार के बैठ गये है। नेताओं व नौकरशाहों की सम्पतियां देहरादून में बढ़ती ही जा रही है।
ऐसे में जनभावनाओं का सम्मान करने की संघ प्रमुख की सीख को आत्मसात करके ही न केवल उत्तराखण्ड में अपितु देश में रामराज्य स्थापित कर भारत को विश्वगुरू व महाशक्ति बनाया जा सकता है। परन्तु करेगा कौन सत्तासीन हांेते ही जनता को ठेंगा दिखाने वाले राजनेता अब अपने जनसेवा के वसूलों को भी ठेगा दिखाने लगे है। आखिर नेताओं व नौकरशाही के सनक से देश प्रदेश क्यो बर्बाद किया जाये। ऐसा नहीं ऐसी भूले भाजपा पहली बार कर रही है। यहां पर निरंतर भूल पर भूल की जाती रही। कांग्रेस की तरह भाजपा के मठाधीश भी प्रदेश को अपने उपनिवेश की तरह दोहन करने में लगे रहते है। आखिर लोकमत का सम्मान लोकशाही में नहीं होगा तो कहां होगा?