अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए 71 साल बाद भी देश के हुक्मरानों ने बलात देश को बनाया है अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का गुलाम। इसी अंग्रेजी राज के कारण पुलिस प्रशासन आज भी लगता है देश में अंग्रेजों का ही राज है। इसीलिए ढ़ाते है भारतीयों पर अमानवीय दमन।
देवसिंह रावत,
25 सितम्बर को दिन भर जंतर मंतर दिल्ली में ही नहीं देश के अनेक शहरों में काशी में छात्राओं पर हुए बर्बर दमन के विरोध में प्रदर्शन हुए। काशी में छात्राओं की समस्याओं का निदान समय पर न करने के बजाय विश्व विद्यालय प्रशासन द्वारा पुलिसिया दमन कराने का जो कृत्य किया, उससे न केवल छात्रायेें आहत है अपितु स्थानीय सांसद प्रधानमंत्री मोदी, उप्र के मुख्यमंत्री योगी के साथ उत्तर प्रदेश सरकार को भी शर्मसार होना पड़ा। इस पूरे प्रकरण के लिए विश्व विद्यालय प्रशासन ही जिम्मेदार है जिसने छात्राओं की समस्या का समय पर निदान न करके उनको आंदोलन के लिए मजबूर किया।
भले ही इस प्रकरण के लिए सत्तारूढ़ भाजपा व विपक्षी दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है। पर यह सच्चाई भी जगजाहिर है कि देश में सत्ता के लिए सत्तासीनों व विपक्षी दलों द्वारा देश में जिस बेशर्मी से सत्ता के लिए दमन व षडयंत्र कर देश के अमन चैन व अखण्डता पर ग्रहण लगाने का काम किये जाते हैं अगर इसे देश के समाचार जगत अगर निष्पक्ष ढ़ंग से दिखाये तो आम जनता इन पर थू थू ही करेगी। मेरे मन में इन्हीं आशंकाओं के चलते यही प्रश्न बार बार उठ रहा था कि छात्राओं के आंदोलन पर पुलिस प्रशासन का दमन बर्बरता है या राजनैतिक षडयंत्र?
इस पहेली का उतर भी देर सबेर आंध्र प्रदेश के छात्र रोहित आत्महत्या प्रकरण की तरह मिल ही जायेगा। पर असली प्रश्न है एक आजाद देश में पुलिस प्रशासन का भारतीयकरण व लोकशाहीकरण क्यों नहीं हो पाया? क्यों पुलिस अंग्रेजों की हुकुमत की तरह ही दमनकारी बनी हुई है।
एक आंदोलनकारी के रूप में दशकों के करीबी अनुभव के कारण मुझे देश की दमनकारी व्यवस्था को न केवल करीब से देखने का अनुभव ही नहीं अपितु पुलिस प्रशासन के अलौकतांत्रिक व अमानवीय दमन का कई बार भुक्त भोगी रहा हॅू। मैने देखा कि किस प्रकार देश की पुलिस प्रशासन सहित पूरी व्यवस्था देशद्रोहियों व अपराधियों को पोषण व सम्मान करती है और वहीं दूसरीत तरफ देश हित में शांतिपूर्ण मांग करने वाले पीड़ित व आम आदमी का निर्ममता से दमन करती है। 24 साल उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन, दामिनी आदि आंदोलन का सहभागी रहने व भारतीय भाषा आंदोलन के 54 माह के संसद की चैखट जंतर मंतर पर शांतिपूर्ण आंदोलन का ध्वजवाहक होने के कारण शासन के कई बार दमन का साक्षी व भुक्त भोगी रहा हूॅ।
भारत में सरकार कोई भी रहे पुलिस प्रशासन कभी जनसेवा के अपने प्रथम कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है। अंग्रेजी हुकुमत द्वारा पाली पोषी गयी इस पुलिस प्रशासन का काम करने का तरीका अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी नहीं बदला। सरकार किसी की भी रहे पर पुलिस प्रशासन का अपने संस्थापकों द्वारा सिखाया गया भारतीयों का दमन करने का चरित्र नहीं बदला। अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी पुलिस प्रशासन के काम करने के तरीके से लगता है कि उन्हें लगता है कि आज भी अंग्रेजों का ही राज है। उनकी गलती नहीं है देश के हुक्मरानों ने भारत व भारतीय भाषाओं का राज स्थापित करने के बजाय आज भी उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का राज व उन्हीं अंग्रेजों द्वारा दिये गये इंडिया नाम से भारत, भारतीय संस्कृति व भाषा को रौंदा जा रहा है। इसीलिए आज भी इस देश की पुलिस प्रशासन से जनहित की मांग करने या न्याय मांगने जाने वालों को न्याय मिलना तो रहा दूर उल्टा उस पर बर्बरता से लाठी व गोली आदि अमानवीय दमन से ऐसा रौंदा जाता है कि वह जिंदगी में फिर कभी न्याय व जनहितों की गुहार न लगाये।
अगर देश में पुलिस प्रशासन के साथ देश की व्यवस्था का भारतीयकरण करना है । देश में जनहित व भारतीय हिंतों की रक्षा करनी है। देश में लोकशाही की स्थापना करनी है। देश को महाशक्ति व जगतगुरू बनाना है। देश के गरीब, वंचित, उपेक्षित, शोषितों का सही अर्थो में विकास करना है और देश से भ्रष्टाचार मिटा कर कल्याणकारी व न्यायप्रिय व्यवस्था स्थापित करनी है तो देश में तत्काल अंग्रेजों की तरह ही अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी की गुलामी से आजाद हो कर भारतीय मूल्यों की संवाहिका भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन हर हाल में देना होगा। तभी इस दमनकारी व्यवस्था से देश को मुक्ति मिल सकेगी। तभी पूरे विश्व में भारत व भारतीयता का परचम लहरायेगा। अंग्रेजी की गुलामी को मुक्त किये बिना इस देश को आजाद कहना, लोकतंत्र कहना या भारतीय संस्कृति की सेवा करना तथा सबका साथ सबका विकास की दावा करने के साथ चंहुमुखी विकास की कल्पना करनी भी मूर्खता है और देश के साथ स्वयं को धोखा देने का कदम है।