गैर इस्लामिक देशों को इस्लामिक देश बनाने के लिए विश्व स्तर पर षडयंत्र के तहत करायी जा रही है घुसपैठ
लंदन मेट्रो में आतकी हमला, गंभीर चेतावनी है बंग्लादेशी घुसपेठियों व रोहिंग्या शरणार्थियों से बेखर भारत की सुरक्षा के लिए
देवसिंह रावत
जिस समय 15 सितम्बर को विश्व के सबसे बडे लोकशाही के ध्वजवाहक देश, भारत की संसद की चैखट, राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर सहित देश के कई भागों में म्यामार द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों की कडी भत्र्सना कर रहे थे। वहीं हजारों मुस्लिम समुदाय के लोग भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे 40 हजार के करीब म्यामार से भगाये गये रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर वापस म्यामार भेजने के भारत सरकार के निर्णय का विरोध कर रहे थे।
वे तर्क दे रहे थे कि ये 40 हजार रोहिंग्या मुस्लिम बेसहारा है दुखी है, सताये गये है। इसलिए भारत को अपनी प्राचीन संस्कृति का अनुशरण करके शरणागत आये लोगों को शरण देने का काम करना चाहिए। परन्तु मानवता के नाम पर रोहिंग्या मुस्लिमों को शरण देने के लिए भारत सरकार को कोसते हुए घडियाली आंसू निकालने वाले राजनैतिक दलों, तथाकथित मानवाधिकार संगठनों व अल्पसंख्यक समाज के मठाधीशों ने कभी इतने जोर से आतंकियों द्वारा बंदुक के बल पर कश्मीर से खदेडे गये लाखों कश्मीरियों को पुन्न अपने घरों में ंबसाने की गुहार नहीं लगायी। इन्होने कभी विभाजन के समय पाकिस्तान से आये कश्मीर में लाखों लोगों को कश्मीरियों की तरह नागरिकता देने की मांग नहीं की। इन्होने कभी कश्मीर में आतंक फेला रहे हुर्रियत व पत्थर बाजों को देशद्रोही घोषित करने की मांग नहीं की। छदम मानवाधिकार के नाम पर देश की एकता व अखण्डता से खतरे में डालना कहीं की बुद्धिमता नहीं है।
ठीक उसी दिन यूरोपीय देश ब्रिटेन की राजधानी लंदन में मेट्रो रेल में इस्लामी आतंकियों ने विस्फोट कर पूरे यूरोप को दहशत में डाल दिया, वहीं पूरे विश्व को आतंकियों ने झकझोर दिया। आतंकियों ने सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर दक्षिणी-पश्चिम लंदन के एक अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन पर बाल्टी बम में विस्फोट किया। इसमें 22 यात्री घायल हो गए। धमाके के बाद डर के मारे लोग जान बचाने के लिए भागने लगे। इस हमले में कई लोगों के चेहरे झुलस गए।
लंदन मेट्रों में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी सीरिया व इराक सहित विश्व को अपनी आतंकी गतिविधियों से तबाह कर रहा इस्लामी आतंकियों ली। इससे साफ है कि मानवीय आधार आधार पर सीरिया व इराक आदि देशों से आये जिन शरणार्थियों को ब्रिटेन सहित यूरोप के उन देशों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हो गये है। भले ही यूरोप के इन देशों ने यह शरण केवल व केवल सीरिया में रूसी समर्थित सरकार के खिलाफ आतंकी विद्रोह फेलाने के अमेरिकी हरकतों ंके कारण हुआ और यूरोपीय देशों ने सीरिया की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए सीरिया में आतंकी विद्रोहियों का संरक्षण ही नहीं हथियारों, संसाधनों व विश्वमंच पर खुला समर्थन दिया। रूस को विश्वमंच में कमजोर करके नीचा दिखाने के लिए सीरिया के लाखों शरणार्थियों को अपने अपने देशों में आत्मघाती शरण दी। आज इन्हीं मानवता के नाम पर ब्रिटेन सहित यूरोपीय देशों में शरणार्थी बने लोगों में से ही आतंकी बन कर ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मन सहित संसार के विभिन्न देशों में ताडबतोड़ आतंकी हमले कर इन देशों की अमन शांति पर ग्रहण लगा दिया है। खुद को इस्लामी देश कहने वाले सउदी अरब सहित किसी मुस्लिम देशों ने सीरिया के मुस्लिमों को गैर मुस्लिम देशों में शरण लेने जा रहे सीरिया के लोगों को अपने देश में आने का खुला निमंत्रण नहीं दिया।
भारत सरकार भले ही दलगत स्वार्थो के कारण या देश में व्याप्त देश की सुरक्षा को दरकिनारे रख कर दलीय स्वार्थो को वरियता देने वाली देशघाती राजनीति के कारण भारत में स्थिति विस्फोटक बन गयी है।
भारत में रोहिंग्या का मसला तब गरमाया जब दो माह पहले गृहमंत्री ने दो टूक शब्दों में कहा कि केंद्र सरकार अवैध शरणार्थियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी, लेकिन हमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों के साथ सहानुभूति भी है, जिन्होंने भारत में शरण ली है।गृहमंत्रालय द्वारा सभी राज्यों को जारी एक स्पष्ट निर्देश में कहा कि रोहिंग्या मुस्लिम जैसे अवैध घुसपेटियें देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है। गृहमंत्रालय ने आशंका प्रकट कि इनमें आतंकी संगठनों ने अपना मोहरा बना कर भेजा हो। केंद्र ने राज्य सरकारों से इन अवैध अप्रवासियों की पहचान करने और देश से बाहर भेजने के निर्देश दिए। इसके लिए जिला स्तर पर कार्यबल बनाए जाने के भी निर्देश दिए गए। हालांकि यह अभी स्पष्ट नहीं है कि भारत रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यामार भेजेगा या बाग्लादेश। दोनों देश इनको अपनाने से मना कर रहे है। इस मामले में मात्र तुष्टीकरण के लिए देश की सुरक्षा को खतरे में डाल कर रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत में ही शरण देने की मांग करने वाले राजनेतिक दलों ने इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटा रखा है।
भारत सरकार की इस आशंका के पीछे बोध गया में हुए अनैक बम विस्फोटों की जांच में रोहिंग्या मुस्लिमों की संलिप्ता के बाद उठाया गया। 7 जुलाई 2013 को महाबोधी मंदिर परिसर में एक के बाद एक दस बम विस्फोट में रोहिंग्या मुस्लिम संगठन और हूजी के हाथ होने की आरोप लगाये जा रहे है। माना जा रहा है कि भारत में इस समय 40 हजार से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम घुस चूके है। पर भारत सरकार के पास इनके आंकडे मात्र 16 हजार के ही है। जम्मू में ही करीब दस हजार रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाया गया पर जम्मू सरकार केवल 5700 बता रही है। जम्मू में ऐसी आशंका है कि स्थानीय चरमपंथी बंगलादेशी व रोहिंग्या को नागरिक बना रही है।
जम्मू में ही करीब दस हजार रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाया गया पर जम्मू सरकार केवल 5700 बता रही है। जम्मू में ऐसी आशंका है कि स्थानीय चरमपंथी बंगलादेशी व रोहिंग्या को नागरिक बना रही है। रोहिंग्या मुसलमान भारत के जम्मू, आंध्र पश्घ्चिम बंगाल, असम, दिल्ली आदि क्षेत्रों में पहुंचकर रहने लगे हैं। इनमें से हजारों के पास संयुक्त राष्ट्र का शरणार्थी कार्ड नहीं है। सीमापार करने के लिए रोहिंग्या समुदाय के लोग बांग्लादेशी तस्करों का धन उगाई व हवस मिटाई का माध्यम बन गया है। भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या मुसलमान घुस चूके है पर गृह राज्य मंत्री के अनुसार 16000 है जिनके संयुक्त राष्ट्र कार्यालय में शरणार्थियों के रूप में पंजीकृत है।
यही आशंका पूरे देश में हजारों की संख्या में घुसे रोहिग्या मुस्लिमों के प्रति न केवल सरकार की है अपितु देश के बहुसंख्यक समाज की है। जिस प्रकार से भारत में करोड़ों की संख्या में बंग्लादेशी घुसपेटिये घुस कर देश के सत्तालोलुपु नेताओं व भ्रष्ट प्रशासन के साथ देशद्रोही आतंकियों के प्यादे बने आस्तीन के सांप कटरपंथियों ने इनको भारत का नागरिक बना दिया है। इससे करोड़ों बंगलादेशी भारत में घुसपैठ कर असाम, बंगाल, बिहार, उडिसा, मध्यप्रदेश, दिल्ली, उप्र व उतराखण्ड की शांति पर ग्रहण लगाते हुए वहां की राजनीति पर हावी हो गये है। यही नहीं देश की एकता व अखण्डता पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। आतंकी संगठन इनको अपना मोहरा बना रहे है। इस प्रकार देश की सुरक्षा की दृष्टि से पाकिस्तानी आतंकियों से हजार गुना अधिक घातक बंग्लादेशी घुसपेठिये साबित हो रहे है।
भारत इन्हीं घुसपेटियों के कारण कभी भी सीरिया, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस जैसा तांडव ये आतंकियों के मोहरे शरणार्थी मचा सकते है। क्योंकि इनको धर्म के नाम पर कटरपंथी सहजता से गुमराह कर आतंकी प्यादा बना सकते है।
जहां तक विश्व प्रसिद्ध म्यामांर की नेत्री आन सान सू ची ने म्यामांर में हो रही हिंसा के लिए सुरक्षा बलों का बचाव करते हुए इसके लिए मुख्य दोषी रोहिंग्या मुस्लिम आतंकियों को जिम्मेदार ठहराया। सूची के कार्यालय ने फेसबुक में अपने आरोपों को मजबूती देने के लिए उन नागरिकों की तस्वीरें भी है जिन्हें रोहिंग्या उग्रवादियों ने गोली मारी।
भले ही इस आरोप को रोहिंग्या का उग्रवादी संगठन, अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी ने बोधों व सुरक्षा बलों पर रोहिंग्या मुस्लिमों को तबाह करने का आरोप लगाया।
म्यामार सरकार का आरोप है कि अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी नामक आतंकी संगठन का विश्व के कुख्यात आईएस, हूजी, लश्कर और अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से है। मुस्लिम देशा इनको न केवल उकसा रहे है अपितु इनको धन भी दे रहे है।
यही नहीं
म्यांमार जिसे पहले बर्मा कहते थे वहां के एक प्रांत रखाइन या अराकान कहते है वही के रहने वाले है रोहिंग्या जाति के मुस्लिम म्यांमार की सरकार और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्धों का मानना है कि ये म्यांमार के नागरिक न होकर अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। वर्मा में इनका प्रवेश सन् 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला के राजदरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था। बाद में अंग्रेजों के शासनकाल में अंग्रेजों ने बड़ी संख्या में बंग्लादेशी मुस्लिमों को श्रमिकों के रूप में यहां पर बसाया। वर्तमान में म्यांमार में करीब 10 लाख से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं। म्यांमार ने कभी इन रोहिंग्या को अपने देश का नागरिक नहीं माना। लगातार इनसे तनाव चलता रहा। म्यामार ने 1982 के नागरिकता कानून के आधार पर उनसे नागरिकों के सारे अधिकार छीन लिए जाने के बाद से ही वहां बौद्धों और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा है। जून 2012 में रखाइन प्रांत के बौद्धों और मुस्लिमों के बीच दंगे हुए। इसमें सेकडों रोहिंग्या मुसलमानों की मौत हुई और हजारों को बेघर होना पडा। रोहिंग्या समुदाय का ताजा पलायन 25 अगस्त 2017 को शुरू हुआ, जब रोहिंग्या उग्रवादियों ने म्यांमार की पुलिस चैकियों पर हमला किया जिस पर सुरक्षा बलों को इसके जवाब में अभियान चलाना पड़ा।
म्यांमार में वर्तमान हिंसा के चलते 4 लाख से अधिक रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश की तरह निरंतर घुसपैठ कर रहे है। हजारों लोग रोजाना जंगलों और खेतों से होते हुए बांग्लादेश में सुरक्षित पहुंच रहे हैं। इस हिंसा के कारण लाखों रोहिग्या मुस्लिम बंग्लादेश में शरणार्थी शिविरों में नारकीय जीवन जीने के लिए विवश है।
पिछले 10 वर्षों से बर्मा के रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन जारी है और कई ने बांग्लादेश की सीमा पर करने के बाद भारत का रुख कर असाइलम का औपचारिक आवेदन कर रखा है।
वहीं भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का कहना है कि रोहिंग्या समस्या केवल बांग्लादेश की ही नहीं है। इस मामले में वो अकेला नहीं है। क्षेत्र की यह समस्या पूरे विश्व की समस्या में बदल रही है। हम म्यामांर से इस समस्या के समाधान करने के लिए भी दवाब डाल रहे है।
ताजा अनुमान के अनुसार म्यांमार हिंसा के बाद रेखाइन स्टेट से 4 लाख शरणार्थी बांग्लादेश पहुंचे हैं। बंग्लादेश इस समस्या को संयुक्त राष्ट संघ के 72वं अधिवेशन में खुद प्रधानमंत्री शेख हसीना उठायेगी। जिससे म्यामार में रोहिंग्या की घर वापसी और शांति बहाल करना। इसके साथ रोहिंग्या मुस्लिमों की नागरिकता की समस्या दूर करने और 1982 नागरिकता कानून को लागू करने, मावनाधिकार का उल्लंघन करने वालों को सजा देने, आदि समस्याओं का स्थाई निदान करना है। पर रोक खत्म करने जैसी रिकमंडेशन की थीं।
जहां तक मामला म्यामार का है। वहां पर विश्वविख्यात शांतिपूर्ण बोद्ध धर्म है। वे शांति से जीते है। परन्तु रोहिंग्या मुस्लिमों की खानपान व संस्कृति से सीधे टकराव के कारण उनका हस्र भी तिब्बत की तरह न हो इसलिए वे सजग हो गये। यह सत्य है कि रोहिंग्या मुस्लिम वर्मा के नहीं है। वे कामगार थे। बाहर से किसी भी प्रदेश व देश में जाने वालों से यह आशा की जाती है कि वह वहा ंपर रहने वालों की संस्कृति व हितों की रक्षा करे। परन्तु मुस्ल्मिों से यह आशा करना नाहक है। जहां वे 25 प्रतिशत से अधिक हो जाते हैं वे कानून को इस्लाम के तहत संचालित करने व अलग देश बनाने की मांग करने लगते है। वहां पर दूसरे समाज के साथ मारपीट करने लग जाते है। इसका जीता जागता उदाहरण है कश्मीर व बंगाल।
मुस्लिम आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए खाड़ी देशों के पेटो डालर व कटरपंथियों का बडा हाथ रहा। म्यामार में भी रोहिंग्या मुस्लिमों का आतंकी संगठन इसी दिशा में जा रहा है। उसके हमले के बाद ही वर्तमान स्थिति विफोस्टक हो गयी। पूरी दुनिया के चिंतक जान रहे हैं कि इस्लाम को फैलाने के लिए गैर इस्लामिक देशों में शरणार्थी के नाम पर घुसपेठ कर इस्लाम को प्रसार किया जाता है। आतंक के दम पर। इसके भुक्तभोगी यूरोपीय देश व अमेरिका खुद है। रूस व आस्टेेलिया के साथ इजराइल व चीन ने कडाई से अंकुश लगा कर इनकी कमर तोड़ दी है।
जहां तक पश्चिमी देश म्यामार में मानवाधिकारों के हनन के लिए घडियाली आंसू बहाते है उनकी मानसिकता जग जाहिर है। पश्चिमी देश जिनको ईसायत का झण्डा बरदार समझा जाता है। उनके लिए एशिया के देश ईसायत के प्रचार प्रसार के लिए सबसे अनुकुल देश है। खुद पोप ने भी 21 सदी एशिया की कही। ईसायत की दृष्टि से। म्यामार में ंबुद्ध धर्म मजबूत होने से ये म्यामार में धर्मांतरण नहीं कर पायेंगे। यही स्थिति इस्लामिक देशों की है। इसीलिए म्यामार की घटनाओं पर घडियाली आंसू बहाया जा रहा है। ये देश कभी कश्मीरी शरणार्थियों पर आंसू नहीं बहाते।
म्यांमार को अपने देश की संस्कृति, हक हकूकों के साथ अखण्डता की रक्षा करने का पहला हक है। अगर आतंकी म्यामार को इस्लाम के नाम पर खण्डित करने के लिए आतंक फैलाये तो भारत के अलावा कोई ऐसा देश संसार में नहीं होगा जो घुसपेठियों को आत्मघाती संरक्षण दे। संयुक्त राष्ट को बंग्लादेश में ही इन रोहिग्या मुस्लिमों को बसाना चाहिए।