सत्तासीन होने पर हिमाचल के हक हकूकों की रक्षा करने वाले प्रदेश भाजपा नेताओं के बजाय भाजपा थोपेगी दिल्ली के नेता को मुख्यमंत्री
देवसिंह रावत
इस साल हिमाचल की विधानसभा के लिए होने वाले आम चुनाव में कांग्रेस आलाकमान की वीरभद्र विरोधी आत्मघातीे नीति न केवल हिमाचल से कांग्रेस का सूपड़ा साफ करेगी अपितु हिमाचल के विकास व अमनचैन पर भी ग्रहण लगायेगी।
इसका संकेत प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र व कांग्रेस आलाकमान के बीच चल रहे विवाद से साफ दिखाई दे रहे है। इससे न केवल कांग्रेस का सफाया होना तय माना जा रहा है वहीं हिमाचल की सत्ता में काबिज होने के लिए साम दाम दण्ड भेद सब अपना कर उतावली सी लग रही भाजपा की राहें आसान होती नजर आ रही है।
हालांकि हिमाचल की राजनीति की यह जगजाहिर परिपाटी सी देखी गयी है कि यहां एक बार भाजपा व एक बार कांग्रेस सत्तासीन होती है। कभी कभार अपवाद भी हो जाता है। परन्तु यह भी सत्य है कि देश के सबसे विकसित व अमन शांति मय राज्य हिमाचल में काबिज पिछडेपन से उबार कर देश के श्रेष्ठ राज्यों में स्थापित करने में प्रथम मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार की नीतियों को मजबूती से अमलीजामा अगर किसी ने पहनाया कर दशकों तक विकासोनुमुख दिशा दी तो वह हिमाचल के वर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह है जो दो दशक से अधिक समय तक हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे। परमार द्वारा हिमाचल के हक हकूकों की रक्षा करते हुए अमन चैन व विकास की ंगंगा बहाने वाला राज्य बनाये रखा तो कांग्रेसी मुख्यमंत्री वीरभद्र ने । प्रदेश में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों द्वारा रखी गयी इस पक्की नींव को जनता का इतना व्यापक जनसमर्थन था कि प्रदेश में सत्ता में बदलाव के बाबजूद भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने भी हिमाचल में परमार द्वारा रखी गयी विकास की पटरी में ही अपनी सरकार चलायी। धूमल तक यहीं परंपरा रही।
अब हिमाचल में भाजपा भले ही इस बार सत्ता की प्रबल दावेदार दिख रही है। क्योंकि मोदी व शाह के नेतृत्व में हर हाल में हिमाचल में सत्तासीन होने को भाजपा सामदाम दण्ड भेद अपना कर पूरा करने को कृतसंकल्पित सी लग रही है। जिस प्रकार से भाजपा की केन्द्र सरकार की ऐजेन्सियों ने नयी रानी के शौहबत से लगे मुख्यमंत्री वीरभद्र पर आय से अधिक के मामले में उनकी बेटी की शादी के दिन छापा मारने का अमानवीय कृत्य किया, उससे साफ हो गया कि भाजपा सत्तासीन होने के लिए कितनी व्यग्र है।
भाजपा की राह को आसान बनाने का काम किया दिल्ली स्थित कांग्रेस आलाकमान के कांग्रेस की जड़ों में मटठा डालने वाले मठाधीशों ने जिन्होने प्रदेश व कांग्रेस के हितों को नजरांदाज कर मात्र अपने निहित स्वार्थो के लिए हिमाचल में दशकों से कांग्रेस के प्रमुख ध्वजवाहक रहे वीरभद्र को कमजोर करने के लिए ऐसा प्रदेश अध्यक्ष बलात थोपा जिसका प्रखर विरोध वीरभद्र करते आये। वीरभद्र ने चुनावी समर में जीतने के लिए अपनी पंसद की टीम बनाने सहित अन्य महत्वपूर्ण रणनीति पर विचार विमर्श करने दिल्ली में आलाकमान से भेंट करने के लिए कांग्रेस आला कमान के पास पंहुचे तो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने उनको समय तक नहीं दिया। इससे आहत वीरभद्र ने दो टूक शब्दों में अपनी नाराजगी कांग्रेस आलाकमान के सलाहकार अहमद पटेल से प्रकट कर खिन्न मन से हिमाचल लौट आये।
कूल्लू के निरमंड में आहुत एक रेली को संबोधित करते हुए वीरभद्र ने दो टूक शब्दों में कांग्रेस आलाकमान को आगाह किया कि पार्टी नेतृत्व के सोचने और कामकाज के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है। क्योंकि कांग्रेस कोई ‘कारोबारियों की पार्टी’ नहीं है. यह उन लोगों से संबंधित है, जिन्होंने देश की आजादी के लिये अपना जीवन कुर्बान किया। कांग्रेस आला कमान द्वारा जनता से कटे निहित स्वार्थी मठाधीशों की सलाह पर वीरभद्र को कमजोर करने के लिए हिमाचल का प्रदेश अध्घ्यक्ष सुखविंदर सिंह सुखू बनाये गये। पार्टी आला नेतृत्व को चुनावी वर्ष में प्रदेश अध्यक्ष बनाते समय प्रदेश के अनुभवी मुख्यमंत्री की राय को वरियता देना चाहिए था। क्योंकि हिमाचल में जनता व सरकार दोनों में जो पकड़ व अनुभव वीरभद्र के पास है वह किसी भी कांग्रेसी नेता के पास नहीं है।
परन्तु कांग्रेस आलाकमान के मठाधीश अपने निहित स्वार्थ के लिए सदैव प्रातीय नेतृत्व को कमजोर करने के लिए उनके विरोधियों को प्रदेश में अध्यक्ष नियुक्त करते है। जिससे प्रदेशों मे जानबुझ करं विवाद खड़ा कर दिल्ली के मठाधीश अपना निहित स्वार्थ पूरा करते है। यह जान करके भी कि इससे कांग्रेस पार्टी कमजोर होगी इसके बाबजूद वे ऐसे कृत्यों को जारी रखते है। इसी प्रकार के आत्मघाती मठाधीशों व निर्णयों से आज देश में कांग्रेस पार्टी की स्थिति दिन प्रति दिन बद से बदतर होती जा रही है। ऐसा आत्मघाती निर्णय कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश, उत्तराखण्ड सहित अनैक प्रदेशों में निरंतर कर रही है। इसका खमियाजा प्रदेश के साथ साथ कांग्रेस को भी भोगना पड़ रहा है।
यहां सवाल कांग्रेस के पतन का नहीं अपितु देश के सबसे विकासोनुमुख व अमन चैन के राज्य हिमाचल के विकास पर लगने वाले ग्रहण का है। हिमाचल के हक हकूकों पर पहली बार भाजपा के सत्तासीन होने से ग्रहण लगने की आशंका नजर आ रही है। क्योंकि भाजपा इस बार सत्तासीन होने पर हिमाचल के हक हकूकों व विकास के लिए समर्पित परंपरागत प्रदेश के भाजपा नेतृत्व के बजाय दिल्ली से अपने ऐसे नेता को सत्तासीन करना चाहते है जो हिमाचल के वर्तमान दिशा व दशा पर ग्रहण लगा कर यहां पर बाहरी घुसपेट को आसान कर सके।