सुन्दरलाल बहुगुणा की उपस्थिति में मुख्यमंत्री रावत ने की ‘हिमालय में महात्मा गांधी के सिपाही सुन्दरलाल बहुगुणा‘‘ पुस्तक को विमोचन
देवसिंह रावत
इसी सप्ताह पूरे देश में हिमालय दिवस बडे स्तर पर मनाया गया। हिमालय को बचाने की कसमें खाई गयी। उत्तराखण्ड में विश्व विख्यात पर्यावरणविद व पदम् सहित अनैक सम्मानों से सम्मानित सुन्दरलाल बहुगुणा के जीवन पर आधारित एक पुस्तक ‘ ’’ हिमालय में महात्मा गांधी के सिपाही सुन्दरलाल बहुगुणा‘‘ का विमोचन उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के द्वारा किया गया। जनरल महादेव सिंह रोड़ स्थित वाडिया संस्थान में आयोजित समारोह में इस पुस्तक का विमोचन करते हुए मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि बहुगुणा जी के त्याग,तपस्या और पर्यावरण को बचाने के लिए उनका योगदान हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहेगा। श्री बहुगुणा के साथ ही हम सब विमला जी के भी कृतज्ञ रहेंगे। विमला जी ने बहुगुणा जी के साथ कंधे से कंधा मिला कर पर्यावरण को बचाने के इस महान कार्य में हमेशा योगदान दिया है- उनका भी मैं नमन करता हूँ ।
आशा है इस पुस्तक में बहुगुणा जी के जीवन के जीवन के सभी पहलुओं पर लेखक ने अपनी कलम चलायी होगी। परन्तु पूरा विश्व यह जानना चाहता है कि बहुगुणा जी हिमालय को विकास व पर्यावरण रक्षा के नाम पर बर्बाद करने वाले दुश्मनों को कब बेनकाब करते हैं जिन्होने अपने निहित स्वार्थो के लिए हिमालय के साथ विकास व पर्यावरण के नाम पर खिलवाड किया।
सुन्दरलाल बहुगुणा का नाम जेहन में आते ही लोगों के जेहन में विश्व विख्यात चिपको आंदोलन की स्मृति ताजा हो जाती है। 1974 में सीमान्त जनपद चमोली के रेणी गांव में हुए चिपको आंदोलन के सूत्रधार कामरेड गोविन्द सिंह ने रेणी गांव की महिलाओं को गौरादेवी के नेतृत्व में 21 महिला व बच्चों ने पेड़ों को काट रहे श्रमिकों से बचाया। ये महिलायें पेड़ पर चिपक गयी, उन्होने कहा कि पहले उनको काटों फिर पेड़ कटेगा। महिलाओं का रूद्र रूप देख श्रमिकों ने हथियार डाल दिये ये आंदोलन ही पूरे विश्व में चिपकों आंदोलन के नाम से विख्यात हुआ। गौरादेवी के नेतृत्व में बत्ती देवी, महादेवी, भूसी देवी,नृत्या देवी, लीलामती, उमादेवी, हरकी देवी, बाली देवी, पासा देवी, रूक्का देवी, रूपसा देवी, थलडी देवी, इंदरा देवी। इन महिलाओं ने पेड़ काटने वाले श्रमिकों को कहा कि पैड़ हमारी माॅं है जंगल हमारा मायका है, हम इसको किसी भी कीमत पर नहीं कटने देंगे।
यही आंदोलन पूरे विश्व में चिपकों के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी आंदोलन ने पूरे देश के साथ विश्व का ध्यान भी अपनी तरफ आकृष्ठ किया। 1986 में दशोली ग्राम स्वराज मण्डल की अध्यक्षा गौरा देवी व 30 महिलाओं को पर्यावरण मित्र का पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
रेणी गांव में कामरेडत्र गोविन्द सिंह व गौरादेवी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा संचालित इस चिपको आंदोलन को पूरे विश्व पर्यावरण की आवाज बनाने में चण्डी प्रसाद भट्ट व सुन्दरलाल बहुगुणा ने पूरे विश्व में चिपको की अमरघोष संदेश पंहुचाने का सराहनीय कार्य किया। परन्तु सरकार ने जिस प्रकार से हिमालय के आंचल उत्तराखण्ड को बांधों से जल समाधी देकर बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं यहां पर हजारों के नाम पर कागचों में पर्यावरण बचा रहे, वृक्षारोपण कर रहे एनजीओं की बाढ़ ने प्रदेश को पतन के गर्त में धकेलने की कोई कसर नहीं छोड़ी।
बहुगुणा जी ने जिस प्रकार से राज्य गठन आंदोलन में सरकार द्वारा आंदोलनकारियों के साथ गृहमंत्रालय में हुई एकमात्र अधिकारिक वार्ता में बहुगुणा जी ने मेरे व आंदोलनकारी शिष्टमण्डल की उपस्थिति में भारत सरकार के समक्ष जो तर्क राज्य गठन के पक्ष में हिमालय सहित भारत के पर्यावरण बचाने के लिए दिये थे उनकी गूंज आज भी मेरे कानों में है। राज्य गठन के बाद प्रदेश में नेताओ व नौकरशाहों द्वारा संरक्षित एनजीओं की बाढ़ पूरे उत्तराखण्ड में आयी है। अगर उस पर पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा प्रदेश के साथ देश की जनता को सजग कर दे तो उत्तराखण्ड सहित देश का बडा भला होगा। आज जरूरत है प्रदेश को विकास व पर्यावरण की तरह बेनकाब करने वाले नेताओं, नौकरशाहों व एनजीओ के नापाक गठजोड़ को बेनकाब करने की। यह काम विश्वविख्यात पर्यावरणविद सुन्दरलाल बहुगुणा से बेहतर कोई दूसरा कर ही नहीं सकता है। यहां एक बात साफ है कि हिमालय केवल उत्तराखण्ड का ही नहीं पूरे विश्व की धरोहर है। इसकी रक्षा के लिए इसको विकास व पर्यावरण के नाम पर बर्बाद करने वाले नेताओं, नौकरशाहों व एनजीओं पर हर हाल में अंकुश लगाना होगा।प्रदेश में चंद ही ऐसे एनजीओं है जो धरातल में सही कार्य कर रहे हैं अधिकांश एनजीओं जमीन से अधिक कागचों में पर्यावरण बचाने का काम कर रहे है।