चीन के बीच में आने से अमेरिका नहीं कर पा रहा है उतर कोरिया के किम जोग का इराक के सद्दाम सा हाल
भारत व जर्मन की तरह कोरिया का बलात निर्मम विभाजन किया था मित्र राष्ट्रों ने
देवसिंह रावत
3 सितम्बर 2017 को उत्तरी कोरिया ने एक हाइड्रोजन बम का परीक्षण क्या किया कि हजारों हाइड्रोजन बम से भी घातक बम रखने वाले अमेरिका, रूस, चीन सहित दुनिया के वे देश घडियाली आंसू बहा कर पूरे विश्व में हायतौबा मचा रहे है। विश्व के स्वयं भू जत्थेदार बने इन देशों के हाथों का मोहरा बना संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे ताकतवर संस्था सुरक्षा परिषद ने भी 4 सितम्बर को इस मुद्दे पर आपात बैठक कर उतर कोरिया द्वारा 3 सिमम्बर को हाइड्रोजन बम का परीक्षण करने की कडी भत्र्सना की।
जबकि ऐसे हाइड्रोजन बम का परीक्षण अमेरिका ने 1 नवम्बर 1952 में कर दिया। ऐसे ही बम का परीक्षण रूस ने 22 नवम्बर 1955, बिट्रेन ने 1957, चीन ने 17 जून 1967 व फ्रंास ने 1968 में कर दिया था।
आज एक अनुमान के तहत उतर कोरिया के इस अदने से एक परमाणु/हाइड्रोजन बमों से कई गुना घातक मार करने वाले हजारों हजार बम इस समय इस धरती पर है। एक पूर्व अनुमान के अनुसार अभी इस संसार में रूस के पास इस समय 7000, अमेरिका के पास 6800, फ्रांस 300, चीन 260, बिट्रेन 215, पाकिस्तान 140, भारत 110, इस्राइल 80 व उतरी कोरिया 10 बम है। वहीं ईरान भी लम्बे समय से परमाणु हथियार बनाने में लगा हुआ है।
जानकारों के अनुसार हाइड्रोजन बम, परमाणु बम की तरह का ही एक परमाणु हथियार है । सामान्य शब्दों में परमाणु बम प्रथम स्थान वालीप्रक्रिया है तो हाइड्रोजन बम दूसरा स्थान वाली प्रक्रिया है।।परमाणु हथियार दो तरह से विध्वंसक ऊर्जा पैदा करते हैं.। फिशन यानी विखंडन और फ्यूजन यानी संलयन।लेकिन थर्मोन्युक्लियर प्रक्रिया के कारण इसकी स्पीड और मारक क्षमता परमाणु बम से दोगुनी हो जाती है। थर्मोन्युक्लियर प्रक्रिया में प्राइमरी नाभिकीय विखंडन से उत्पन्न हुई उर्जा को कंप्रेस और प्रज्वलित करके द्वितीय नाभिकीय विखंडन में बदल दिया जाता है। इसी वजह से परमाणु बम की अपेक्षा हाइड्रोजन बम की विस्फोटक क्षमता दुगने से अधिक बढ़ जाती है। परमाणु बम में केवल प्राइमरी नाभिकीय विखंडन से विस्फोट किया जाता है।
उत्तर कोरिया द्वारा किये गये होइड्रोजन बम विस्फोट पर पूरे विश्व में ऐसा हायतौबा मचा हुआ है कि मानों परमाणु /हाइड्रोजन बम केवल उतर कोरिया ने ही बनाया है। अमेरिका के नेतृत्व में संसार के स्वयंभू जत्थेदार बने ये देश हायतौबा मचा रहे हैं कि उतरी कोरिया को परमाणु व होइड्रोजन बम बना कर विश्व शांति को गंभीर खतरा खड़ा कर दिया। कोई इन देशों से पूछे कि उनके पास जो कोरिया द्वारा परीक्षण किये गये हाइड्रोजन बम से कई गुना घातक एक दो नहीं हजारों बम है क्या वे विश्व शांति को बनाये रखने के लिए है।
सच तो यह है कि विश्व के अमेरिका, रूस,चीन और अन्य परमाणु शक्ति सम्पन्न देश खुद को अपने को जिम्मेदार देश का तकमा दे कर उत्तर कोरिया ही नहीं हर उस देश को विश्व शांति के लिए खतरा बताते हैं जो इनके अलावा परमाणु हथियार बनाने की कोशिश भी करता है। ऐसा ही पक्षपातपूर्ण व्यवहार इन तथाकथित परमाणु सम्पन्न देशों ने भारत द्वारा परमाणु/हाइड़ोजन बम का परीक्षण करने पर किया था। एक दशक पहले भारत पर प्रतिबंध लगा दिये गये थे। असल में विश्व के परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की चैधराहट यह है कि वह चाहते हैं कि हमारे अलावा संसार में कोई परमाणु शक्ति सम्पन्न होने का साहस तो रहा दूर कल्पना भी न करे। इन विश्व के तथाकथित थानेदारों को पूछे कि आपको यह अधिकार किसने दिया कि केवल आप के ही पास परमाणु शक्ति हो। परमाणु शक्ति का आज तक के इतिहास में अगर किसी ने इसका दुरप्रयोग किया या इससे नरसंहार किया तो वह अमेरिका है। जिसने जापान पर दो परमाणु बम मार कर लाखों लाख लागों का कत्लेआम किया था। अगर विश्व में कोई निष्पक्ष व मजबूत संस्था होती तो वह सबसे पहले अमेरिका के तमाम परमाणु हथियारों को ध्वस्थ करते और अमेरिका को जापान के पुनर्निमाण करने का दण्ड देता।
अगर विश्व को परमाणु शक्ति सम्पन्न होते उतर कोरिया विश्व शांति के लिए खतरा नजर आता है तो कोरिया पर कार्यवाही करने के साथ साथ उन सभी देशों के परमाणु अस्त्रों को भी ध्वस्थ कर देने चाहिए। परन्तु इतनी ताकत संयुक्त राष्ट्र संघ के पास नहीं है।
अमेरिका ने अपनी मंशा खुद ही जगजाहिर कर दी। अमेरिका ने साफ किया कि वह किसी भी कीमत पर अपने विरोधियों को मजबूत नहीं होने देगा और विश्व में परमाणु शक्ति में अपना बर्चस्व हर हाल में बनाये रखेगा।
हालांकि उत्तर कोरिया को जिस प्रकार से पूरे विश्व में अमेरिका व उसके मित्र छवि खराब कर रहे है। यह सही है कि उत्तर कोरिया व दक्षिण कोरिया में भीषण दुश्मनी है। जैसे पाक व भारत में है। पाक व भारत तथा जर्मनी की तरह कोरिया का भी दो हिस्सों में विभाजन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों ने किया था। यही मित्र राष्ट्रों की रणनीति थी कि उपनिवेशों व पराजित देश फिर मजबूत न हो पाये इसके लिए इनका विभाजन निर्ममता से कर दिया। उत्तर कोरिया में रूस समर्थक वामपंथी सरकार आसीन हुई और दक्षिण कोरिया में अमेरिका समर्थक सरकारें आसीन हुए। हो सकता है उतरी कोरिया के दिल में देश के विभाजन का दर्द हो। उसे जापान की दासता का दंश मर्माहित कर रहा हो।
अमेरिका समर्थक दक्षिण कोरिया के साथ चीन व रूस समर्थक उतर कोरिया के सम्बंध ठीक नहीं है। इसी प्रतिशोध की आग में जल रहा कोरिया अपने क्षेत्र से अमेरिकी दखलंदाजी स्वीकार नहीं कर रहा है। उतर कोरिया को मजबूत होता देख अमेरिका भी आशंकित है कि पहले की तरह कहीं उतरी कोरिया, दक्षिण कोरिया पर काबिज हो कर उसको कोरिया प्रायद्वीप से बाहर न कर दे।
उतरी कोरिया को भले ही परमाणु बम बनाने की राह चीन के बजाय पाकिस्तान ने दिखाई हो पर चीन के साथ उसके सामरिक समझोते उसको अमेरिका को सीधे चुनौती देने की शक्ति दे रहा है।
जिस प्रकार से उतर कोरिया सीधे अमेरिका को चुनौती दे रहा है उसे देख कर लगता है कि अगर अमेरिका उतर कोरिया पर हमला करता है तो इसमें पहले की तरह चीन भी उतर कोरिया का साथ देने के लिए उतर सकता है। वहीं अमेरिका के साथ नाटो भी इस युद्ध में उतरने से यह विश्व युद्ध की तरफ पूरे विश्व को धकेल सकता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र का इस मामले में चिंतित होना स्वाभाविक है। परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ के बस में नहीं है इस समस्या का समाधान करना। न तो संयुक्त राष्ट्र विश्व के सभी देशों को परमाणु हथियारों से विहिन कर सकता है और नहीं नये देशों को परमाणु शक्ति सम्पन्न होने से रोक सकता है।
संयुक्त राष्ट्र व विश्व की लाचारी का प्रत्यक्ष उदाहरण इराक पर बलात अमेरिकी हमले से उजागर हुई। अमेरिका की इस आतंकी कार्यवाही पर न तो उस पर इराक द्वारा कुवैत पर किये हमले के बाद लगाये गये प्रतिबंध की तरह हमलावर अमेरिका पर लगाये गये। न हीं किसी ने अमेरिका को इस पर कटघरे पर रखने की हिम्मत की। पूरा विश्व अमेरिका के आगे असहाय व लाचार नपुंसकों की तरह खडा रहा। आज उतर कोरिया व अमेरिकी विवाद में बीच में चीन के आने से मामला रूका हुआ है। नहीं तो अमेरिका उतर कोरिया के जिम का हाल भी इराक के सद्दाम की तरह कर देता। यह जरूरी है कि संसार में कोई देश अत्याचार न कर सके। ऐसे हथियारों का प्रयोग न कर सके। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र जैसी कागची संस्था नहीं अपितु मजबूत संस्था चाहिए।