चीन सीमा पर रेल पंहुचा कर युद्ध की धमकी दे रहा है पर भारत को अभी 10 साल लगेगें सीमान्त जनपद चमोली में रेल पंहुचाने को। भारत सरकार को जहां बुलेट रेल या स्मार्ट सिटी बनाने की ललक लगी है परन्तु देश की सीमाओं को चीन की तरह रेल, मोटर मार्ग व वायु मार्ग से जोड़ कर देश की सीमायें मजबूत करने के महत्वाकांक्षी रेल परियोजनायें राम भरोसे छोड़ी हुई हैं। जो रेल परियोजनायें युद्धस्तर पर पर बन कर 1960 तक बन जानी चाहिए थी या दो साल में साकार की जानी चाहिए थी उस योजना को 10-12 साल तक कछुये की चाल से बनाया जा रहा है। आखिर देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर सेना, हथियार, रसद आदि को द्रुतगति से भेजने के दायित्व निभाये बिना क्या भाशणों से देश की रक्षा हो पायेगी।
अंग्रेजों के जमाने में ही कर्णप्रयाग रेल परियोजना का सर्वे किया जा चूका था तब से अब 70 साल में भी देश की सरकारें इस सुरक्षा के दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण रेल परियोजनाओं को केवल इसी लिए नहीं बनाया जा सका, न तो देश के हुक्मरानों को देश की सुरक्षा की चिंता थी व नहीं इसका भान। नहीं यह किसी प्रधानमंत्री या रेल मंत्री का संसदीय क्षेत्र रहा। देश में नेताआों ने मात्र अपने संसदीय क्षेत्र व प्रदेश में ही तमाम योजनायें झोंकी, देश में प्रथम जरूरत कहां है इसका उन्हें भान तक नहीं रहा।
इसका एक उदाहरण है कर्णप्रयाग रेल परियोजना। जो करीब दस साल बाद ही साकार हो पायेगी। इसकी जानकारी इस परियोजना से जुडे अधिकारियों ने इस परियोजना की प्रगति का आंकलन करने के बाद यह ऐलान किया।
चीन सीमा पर रेल पंहुचा कर युद्ध की धमकी दे रहा है पर भारत को अभी 10 साल लगेगें सीमान्त ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल पंहुचाने में
देवबंद-रुड़की रेल लाइन के निर्माण के कार्य की कवायद फिर शुरू हो गयी है। पहले रेल निगम ने इस कार्य को स्थगित कर दिया था। 19 जुलाई को देहरादून स्थित उत्तराखण्ड सचिवालय में मुख्य सचिव एस.रामास्वामी की अध्यक्षता में देवबंद रुड़की रेल लाइन के लिए भू-अधिकरण और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना के बारे में बैठक की। 170 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली देवबंद-रुड़की रेल लाइन के निर्माण में 51 हेक्टेयर भूमि आएगी। इसमें 5 गांव का 11 किलोमीटर उत्तराखंड की सीमा में आएंगे।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि जिलाधिकारी हरिद्वार की अध्यक्षता में समन्वय समिति बनाई जाए। राजस्व, वन, बिजली, जल संस्थान, लोनिवि, उद्यान आदि विभागों के साथ संयुक्त निरीक्षण कर टाइम फ्रेम जारी किया जाए। सितंबर 2018 तक निर्माण पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना के प्रगति के समीक्षा की गई। फारेस्ट क्लियरेंस और भू-अधिग्रहण की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में है। इस माह के अंत तक क्षतिपूर्ति की धनराशि रेल निर्माण निगम को जमा करने के लिए कहा गया है।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना का कार्य 2028 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। लगभग 126 किलोमीटर लंबी रेल लाइन में 12 स्टेशन, 17 सुरंग, 36 पुल बनेंगे। इससे टिहरी, पौडी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, चमोली जिले के लोगों को लाभ होगा। रेल विकास निगम लिमिटेड द्वारा रेल मार्ग, सुरंग आदि का व्यापक सर्वेक्षण कर लिया गया है। ऋषिकेश में पुल बनाने के लिए एलटी(लो टेंशन) लाइन को डायवर्ट किया जाना है।
पिटकुल की एचटी (हाई टेंशन) को डायवर्ट करने के लिए फॉरेस्ट क्लियरेंस लेना है। जल संस्थान की 01 सीवर लाइन और 03 वाटर सप्लाई लाइन को शिफ्ट किया जाना है। इसके साथ ही वन रंेज ऑफिस ऋषिकेश को भी शिफ्ट किया जाना है। भू-अधिग्रहण के लिए हुए प्रशासकीय व्यय के रूप में 5 करोड रुपए टिहरी, पौडी, रुद्रप्रयाग व चमोली जिलों को दिए गए हैं। भवन आदि परिसंपत्तियों का मूल्यांकन लोनिवि से कराया जा रहा है।
बैठक में सचिव परिवहन डी.सेंथिल पांडियन, सचिव राजस्व हरबंस सिंह चुघ, सचिव गृह विनोद शर्मा, अपर सचिव शहरी विकास विनोद सुमन, चीफ प्रोजेक्ट इंजीनियर रेलवे प्रमोद शर्मा सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।