त्रिवेन्द्र रावत की 100 दिन के कार्यकाल में राजधानी गैरसैंण, मुजफ्फरनगर काण्ड-94, भू कानून, शराब व भ्रष्टाचार जैसे बुनियादी मुद्दों को नजरांदाज कर हवाई तिकडमबाजी से आम जनता ही नहीं भाजपाई भी निराश
देवसिंह रावत
भले ही एक तरफ 25 जून को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार के 100 दिन की उपलब्धियों का बखान उत्तराखण्ड में ही नहीं देश के अधिकाश प्रमुख समाचार जगत बडे विज्ञापनों से कर रहा हो और वहीं दूसरी तरफ खुद मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत सहित उत्तराखण्ड भाजपा के केन्द्रीय प्रभारी श्याम जाजू, सभी सांसद, मंत्री व विधायक सहित पूरा संगठन सरकार के 100 दिन की उपलब्धियों का बखान के लिए उपलब्यिों की पुस्तिका जारी कर रहे थे।
पर प्रदेश भाजपा सरकार के तमाम हवाई दावों की हकीकत यह है कि प्रदेश की जिस जनता ने प्रदेश की बेहतरी के लिए पूर्व हरीश रावत सरकार को सत्ता से उखाड़ फेकने के लिए ऐतिहासिक जनादेश प्रधानमंत्री मोदी पर विश्वास करके किया। उत्तराखण्ड राज्य गठन, राजधानी गैरसैंण, हिमाचल की तरह भू कानून के साथ भ्रष्टाचार रहित राज्य की आश में प्रदेश के लाखों लोगों ने राज्य गठन आंदोलन में राव व मुलायम सरकारों के अमानवीय दमन सह कर भी राज्य के गठन के लिए देश के हुक्मरानों को विवश किया। परन्तु इन 17 सालों में तमाम सरकारों ने प्रदेश की इन जनांकांक्षाओं को साकार करने के बजाय गैरसैंण में राजधानी बनाने के बजाय बलात देहरादून में अड्डा जमा कर प्रदेश की जनभावनाओं को रौंदते हुए अपने दिल्ली के आकाओं व अपने प्यादों के लिए प्रदेश को बर्बाद के गर्त में धकेल दिया। सरकारों द्वारा देहरादून केन्द्रीत विकास करने व पर्वतीय जनपदों की उपेक्षा के कारण पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन के अभाव में देश का सबसे संवेदनशील सीमान्त प्रदेश उत्तराखण्ड की सीमाओं की रक्षा करने वाले पर्वतीय जनपदों से गांव के गांव उजड गये। प्रदेश के हितों के लिए संघर्ष करने वाले लोग उजड रहे उत्तराखण्ड को बचाने के लिए निरंतर सरकार व राजनैतिक दलों से गैरसैंण राजधानी बनाने की मांग करते रहे, परन्तु सत्तामद में चूर राजनेताओं को न तो प्रदेश की वर्तमान दुर्दशा का भान है व नहीं लेशमात्र भी प्रदेश के भविष्य की चिंता। इनका पूरा समय अपने स्वागत कराने, निहित स्वार्थो को पूरा करने, अपने दिल्ली के आकाओं की सेवा व अपने प्यादों की उदरपूर्ति में ही बर्बाद हो जाता है। इनको प्रदेश की सुध लेने की फुर्सत ही कहां।
प्रदेश की जनता ने जो जनादेश मोदी पर विश्वास करके भाजपा को दिया था कि यह सरकार पूर्व सरकारों की तरह प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदेगी नहीं, प्रदेश को शराब का गटर, भ्रष्टाचारियों का अभ्यारण व निरंकुश नौकरशाही के दंश से बर्बाद हुए प्रदेश को उबारेगी। प्रदेश के हक हकूकों व सम्पदा की रक्षा के लिए हिमाचल जैसा कानून बनायेगी।
परन्तु इन सब गंभीर विषयों पर युद्धस्तर पर कार्य करने के बजाय त्रिवेन्द्र सरकार ने अपने पहले 100 दिन के कार्यकाल में जनता को निराश किया। आम जनता ही नहीं प्रदेश भाजपा के कार्यकत्र्ता भी खुद को ठगा महसूस कर रहे है। भले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री साफ छवि के नेता हैं परन्तु प्रदेश की जनभावनाओं को समझने व उनको साकार करने की दिशा में उनकी उदासीनता से जनता हैरान है।
आम जनता यह देख कर खुश थी कि भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश की जनता की नजरों में पहले ही नकारा साबित हो चूके तिकडमी व दोहरे चरित्र के नेताओं के बजाय साफ छवि के त्रिवेन्द्र रावत को प्रदेश की कमान सौंपी। परन्तु त्रिवेन्द्र रावत की सरकार ने प्रदेश के पूर्ववर्ती सरकारों की तरह प्रदेश के नवनिर्माण के समय को इन 100 दिनों में बर्बाद सा किया, उससे जनता ठगी महसूस कर रही है।
अपनी 100 दिन की जिस मुख्य उपलब्धी पलायन रोकने के लिए आयोग बना कर अपनी पीठ खुद त्रिवेन्द्र सरकार ठोक रही है। जबकि हकीकत यह है इसकी मुख्य कारण को जानते हुए भी त्रिवेन्द्र सरकार ने ठीक ऐसी ही भूल की जैसे राज्य गठन के बाद गैरसैंण राजधानी न बना कर प्रदेश के विकास के बजट को बर्बाद करने के लिए राजधानी चयन आयोग बनाया। यह आयोग दस सालों तक प्रदेश की छाती में मूंग दलता रहा। दस साल में गैरसैंण में राजधानी बन जाती। परन्तु इनकी मानसिकता देहरादून में ऐशो आराम करने की है पंचतारा सुविधाओं के गुलाम बने प्रदेश के नेता व नौकरशाहों को कहां इतना विवेक की यह राज्य इनके ऐशोआराम के लिए नहीं अपितु प्रदेश के विकास के लिए बनाया। पलायन पर आयोग बनाने के बजाय गैरसैंण राजधानी घोषित करती तो सरकार पहाडों से पलायन रूकता। क्योंकि पहाड़ों में शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा व शासन पटरी पर लौटते। लोग अपने गांव में रहते। पर इन नेताओं को तो अपनी ऐशा आराम की चिंता है प्रदेश व जनता जाय भाड़ में।
अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए त्रिवेन्द्र सरकार खुद को किसानों की हितैषी बताती है और तर्क देती है कि उसने किसानों को एक लाख तक का ऋण दो प्रतिशत ब्याज पर देगी। प्रदेश में राज्य स्तरीय सैन्य स्मारक का निर्माण किया जाएगा और इसी वर्ष 1000 से अधिक पटवारियों की नियुक्ति करेंगे।
देहरादून के परेड ग्राउण्ड में आयोजित 100 दिन के कार्यकाल पर आयोजित कार्यक्रम में सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित विकास पुस्तिका ‘‘100 दिन सरकार के, 100 दिन विकास के’ का विमोचन किया गया। मुख्यमंत्री रावत ने कहा कि सरकार का फोकस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना है। सरकार ने भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी ढंग से आयोजित करने के निर्देश दिये हैं। आपदा से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए मानक में परिवर्तन किया गया है। अब न्याय पंचायत को मानक माना जाएगा और आपदा में खेती को 33 प्रतिशत तक नुकसान होने पर किसानों को मुआवजा मिलेगा। इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित केन्द्रीय पर्यटन मंत्री महेश शर्मा ने कहा कि केन्द्र सरकार राज्य को पूरा सहयोग देगा। केन्द्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा ने कहा कि राज्य सरकार अच्छा कार्य कर रही है। कार्यक्रम को पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद भगत सिंह कोश्यारी, कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत, मदन कौशिक, प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू, प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट आदि ने सम्बोधित किया। इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, अरविन्द पांडेय, सुबोध उनियाल, धन सिंह रावत, राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत, विधायक मुन्ना सिंह चैहान, विनोद चमोली, गणोश जोशी, सहदेव पुंडीर, विशन सिंह चुफाल, भाजपा नेता नरेश बंसल और उमेश अग्रवाल आदि उपस्थित थे।
भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री को समझना चाहिए कि जनता सब जानती है आप जिस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात कह रहे हैं उस सरकार के दावों को राष्ट्रीय राजमार्ग -74 में हुआ घोटाला, केदारनाथ आपदा, कुम्भ घोटाला सहित कई दर्जन घोटाले पर सरकार द्वारा उठाये गये कदम ही सरकार को बेपर्दा करता हैं। रही बाकी कसर प्रदेश में जिस प्रकार से शराब प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय के फरमान के बाद सरकार ने कदम उठाये व प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए सचल अस्पताल संचालित करने के बजाय सरकार जब सचल शराब की दुकानों पर ज्यादा ध्यान दे तो जनता तो अपने दुर्भाग्य को कोसने के अलावा क्या कर सकती। सरकार चाहे अपनी उपलब्धियों वाले कितने ही विज्ञापनों से खबरी दुनिया की तिजोरी भर ले व खुद अपनी पीठ ठोक ले परन्तु जनता तो जमीन पर हो रहे खिलवाड़ को कैसे नजरांदाज कर सकती। हालांकि जिस प्रकार से त्रिवेन्द्र रावत के पास अनुकुल समय व पूर्ण बहुमत है उसका सदप्रयोग मुख्यमंत्री को प्रदेश की जनांकांक्षाओं को साकार करने में लगानी चाहिए न की दिल्ली के आकाओं व नौकरशाहों की ऐशगाह प्रदेश को बनाने में लगाना चाहिए। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।