तेज तरार सुब्रह्मण्य स्वामी को राष्ट्रपति देखना चाहती है राष्ट्रवादी जनता, पर सत्ताधारी व विपक्ष नहीं चाहते
आडवाणी, जोशी, सुषमा के राष्ट्रपति बनने की संभावनायें नहीं, चर्चा में है स्वामीनाथन व श्रीधरन या कोई अन्य
देवसिंह रावत
कौन होगा देश का 15वां राष्ट्रपति यानी संवैधानिक प्रमुख, इसका फैसला राष्ट्रपति चुनाव के लिए तय मतदाता 17 जुलाई को प्रातः दस बजे से सांयकाल 5 बजे तक मतदान करके करेंगे। इसकी मतगणना 20 जुलाई को होगी। परन्तु प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी एकता को छिन्नभिन्न करके ऐसे प्रत्याशी को चुनावी दंगल में उतार सकते हैं जिसका समर्थन करने के लिए विपक्ष भी मजबूर हो जाय। इसी रणनीति के तहत भाजपा 21 या 22 जून को ही हो जाएगा राष्ट्रपति पद का नामांकन कर सकती है। इसके लिए भाजपा ने अपने सभी सांसदों व मुख्यमंत्रियों को 19 और 20 जून को संसद भवन पहुंचने को कहा गया।
चुनावी ऐलान के समय तक राष्ट्रपति चुनाव में सबसे अधिक चर्चा में रहे संभावित राजग व विपक्ष के प्रत्याशी के रूप में झारखण्ड की वर्तमान राज्यपाल मोहन भागवत, द्रौपदी मुर्मू, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी,अमिताभ बच्चन, शरद यादव,गोपालकृष्ण गांधी, हामिद अंसारी, सुषमा स्वराज व सुमित्रा महाजन का नाम चर्चा में रहा। पर इन दिनों मेट्रो मैन श्रीधरन, भारत में कृषि क्षेत्र में विश्वविख्यात कार्य करने वाले स्वामीनाथन, करिया मुण्डा का नाम भी चर्चा में रहा। हालांकि लालकृष्ण आडवाणी व जोशी को बनाने की संभावना ना के बरा बर है क्योंकि मोदी शायद ही उनको राष्ट्रपति बनाने के लिए सहमत हो। जिस प्रकार से भाजपा की राष्ट्रपति के नाम के लिए गठित समिति ने आडवाणी से भैंट कर प्रत्याशी के बारे में जानकारी चाही,उसे आडवाणी के जख्मों को कुरेदने का कृत्य माना जा रहा है। वहीं तीसरा नाम सुषमा स्वराज का आ रहा था जिसकी संभ्भावना अरूण जेटली की भाजपा के वर्तमान नेतृत्व पर मजबूत पकड़ होने के कारण न के बराबर है। इस समय देशभर में चल रहे किसान आंदोलन को देखते हुए किसानों के सबसे बडे हितैषी समझे जाने वाले विश्वविख्यात कृषि शास्त्री स्वामीनाथन या मेट्रो पुरूष के नाम से ख्याति प्राप्त श्रीधरन का नाम भी तेजी से चर्चा में है। हालांकि देश के असंख्य राष्ट्रवादी लोग चाहते हैं कि राष्ट्रपति सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसा तेजतरार हो परन्तु न सत्ताधारी व नहीं विपक्ष उनके नाम पर सहमत होंगे।
गौरतलब है कि भारत निर्वाचन आयोग ने 7 जून को राष्ट्रपति पद का चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की। इसके लिए चुनाव आयोग 14 जून 2017 को अधिसूचना जारी करेगा। राष्ट्रपति के लिए नामांकन करने की आखिरी तारीख 28 जून 2017 को है। 1 जुलाई को नाम वापसी की अंतिम तिथि है। गौरतलब है कि वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का कार्यकाल 25 जुलाई को समाप्त हो रहा है। उनके कार्यकाल समाप्त होने से पांच दिन पहले देश में नये राष्ट्रपति का चयन हो जायेगा।
राष्ट्रपति के चुनाव में कुल मत 10,98,882 है। इसमें मतदाता संसद के दोनो सदनों के निर्वाचित 776 सदस्य, 29 राज्यों के विधानसभाओं व दिल्ली, पुडुचेरी केन्द्र शासित प्रदेशों के निर्वाचित विधानसभा के 4120 विधायक हैं। किसी भी दल को अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाने के लिए 50 प्रतिशत यानी 5,49, 442 वोटों की जरूरत है। वर्तमान में सत्तारूढ़ राजग गठबंधन के पास कुल मतों के 48.10 प्रतिशत मत यानी 5,27,371 वोट होते हैं। वर्तमान में सत्तारूढ़ भाजपा के लोकसभा में 281 और राज्यसभा में 56 सांसद के अलावा 1691 विधायकों है।
वहीं संयुक्त विपक्ष के पास कुल मतों को 51.49 प्रतिशत यानी 5,68,148 मत है, अगर विपक्ष इन मतों को एकजूट रखने में कामयाब रहता है तो वह अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाने में सफल हो सकता है। अभी तक एक सांसद के एक मत का मूल्य 708 है। वहीं विधायक के मतों का मूल्य राज्य की कुल आबादी से वहां के कुल विधायकों का भाग देने से निकलेगा। कुल 4114विधायकों के मतों का मूल्य 5,49.474 है। वहीं कुल 776 सांसदों के मतो का मूल्य 5,48,408 है। इन दोनों को जोड़ कर कुल मत 10,98,882 है।
सत्तारूढ भाजपा की केन्द्र में सरकार होने के साथ 12 राज्यों में अपनी सरकार भी है। अन्य 3 राज्यों में राजग समर्थित दलों की सरकारें है।
इस प्रकार भाजपा नेतृत्व वाले राजग गठबंधन के पास अपनी पसंद के उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनाने के लिए करीब 21 हजार मतों की जरूरत है।
इसलिए भाजपा की नजरें 5.36 मत वाली अनाद्रुमुक, 2.98 प्रतिशत वाली बीजू जनता दल, 1.99 प्रतिशत वाली टीआरएस व 1.53 प्रतिशत वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी पर नजरें लगी है। इन छोटे दलों के पास राष्ट्रपति चुनाव के कुल मतदाताओं के 13 प्रतिशत के लगभग मत है। भले ही भाजपा के आला नेतृत्व ने अभी राष्ट्रपति के प्रत्याशी के नाम का ऐलान नहीं किया है पर भाजपा नेतृत्व में भाजपा ने इसका प्रबंध भी लगभग कर लिया है। इस प्रकार भाजपा अपनी पसंद के प्रत्याशी को राष्ट्रपति बनाने के लिए पूरी तरह से कमर कस चूकी है।
राष्ट्रपति के चुनाव के तरीके संविधान के अनुच्छेद 55 द्वारा प्रदान किए गए हैं। इसके अनुसार राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी के रूप में नामांकन कम से कम 50 मतदाता द्वारा प्रत्याशियों के रूप में होना चाहिए और दूसरे मतदाताओं के रूप में 50 मतदाता होंगे। चुनाव एकल हस्तांतरणीय मत पद्धति के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार आयोजित किया जाता है। मतदान गुप्त मतपत्र द्वारा किया जाता है।
मोदी की रणनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों की पहले यह धारणा थी कि राष्ट्रपति पद के लिए सबसे मजबूत प्रत्याशी समझे जाने वाले लाल कृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री मोदी किसी की सूरत में राष्ट्रपति का प्रत्याशी नहीं बनायेंगे। उस स्थिति में भाजपा व राजग गठबंधन में सेंघ लगाने के लिए प्रधानमंत्री पद की तरह ही राष्ट्रपति पद के लिए भी नजरांदाज किये जाने से आहत लालकृष्ण आडवाणी को विपक्ष का सांझा प्रत्याशी बनाने का दाव चल सकता था। शायद इसी आशंका को टालने के लिए लालकृष्ण आडवाणी को रोकने के लिए बाबरी मस्जिद ढाहने वाले प्रकरण को हवा दी गयी। इस प्रकरण में आडवाणी के नाम आने से जहां मोदी को लालकृष्ण आडवाणी को राष्ट्रपति न बनाने का बहाना मिल गया वहीं लालकृष्ण आडवाणी पर दाव लगाने की विपक्ष की आश पर भी पानी फेर दिया गया। इसके बाबजूद अगर विपक्ष ने आडवाणी पर दाव लगा दिया तो विपक्ष की एकता बाबरी प्रकरण के दंश से कहां तक बच पायेगी। परन्तु यह सब तभी संभव हो पायेगा जब इसके लिए आडवाणी इसकी सहमति दें। और विपक्ष आडवाणी के नाम पर एकमत हो। क्योंकि विपक्षी एकता की संभावनाये काफी धूमिल है। जिसको देख कर शायद ही आडवाणी इस विकल्प पर विचार भी करेंगे। पर अब नये घटनाक्रम में नहीं लगता विपक्ष ऐसी कड़ी टक्कर भााजपा को दे पायेगी। खासकर विपक्षी दलों में नीतीश, केजरी, अनादु्रमुक, जगन व तेलांगना की सत्ताधारी दल की विपक्षी दलों की एकजुटता की संभावनाओं के साथ मोदी को मात देने की रणनीति पर ग्रहण लगना तय है। मुलायम सिंह यादव ने भी राजग के प्रत्याशी को समर्थन देने के ऐलान से विपक्षी दलों की एकता पर ग्रहण और घना हो गया है।
मोदी के इस दाव का उतर कांग्रेस के नेतृत्व में सांझा विपक्ष की ताकत कहां तक एकजूट रह पायेगी। क्योंकि सीबीआई से घिरे कई विपक्षी दल के नेता विपक्ष की एकता को कहां तक ग्रहण लगाते है। पर यह तय है कि राजग न तो आडवाणी व नहीं जोशी को राष्ट्रपति का प्रत्याशी बनायेगा। वहीं दूसरी तरफ आदिवासी महिला के नाम पर मोदी विचार कर सकते है। महिला वह भी आदिवासी जिसमें झारखण्ड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम सबसे आगे है। आदिवासी के रूप में पहली राष्ट्रपति बनाये जाने से आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए देश के तमाम आदिवासियों का बढचढ कर समर्थन मिलने की आश है। वहीं विपक्ष की आदिवासियों में जकडे शिकंजे को कमजोर किया जा सकता है। अगर आडवाणी वाला दाव विपक्ष का असफल रहता है तो विपक्ष गोपाल कृष्ण गांधी, अंसारी या शरद यादव पर भी दाव लगा सकते है। वेसे ऐसी भी संभावना है कि मोदी सर्व सम्मति के बजाय विपक्ष को करारी मात देना पसंद करे। पर ऐसी संभावनाये है कि मोदी द्वारा ऐसे लोकप्रिय प्रत्याशी उतारे जिसका समर्थन करने के लिए विपक्ष भी मजबूर हो सकने का दाव भी खेल सकते हैं। देखना यह है कि प्रधानमंत्री मोदी किसको रायसीना में प्रतिष्ठित राष्ट्रपति भवन में आसीन करने के लिए अपनी सहमति देते है। पर यह तय है वह नाम देश की जनता के लिए नया ही होगा। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।