सरकार द्वारा बेटे को शहीद का दर्जा न दिये जाने से वर्षों से दर दर गुहार लगा रही है माॅ रामेश्वरी
टिहरी(प्याउ)। भले ही उत्तराखण्ड राज्य गठन हुए 17 साल पूरे होने को हैं। इस दौरान आठ मुख्यमंत्री इस नवोदित राज्य उत्तराखण्ड झेल चूका है। परन्तु इन आठों मुख्यमंत्रियों में से एक को भी न तो उत्तराखण्ड राज्य गठन की जनांकांक्षाओं का भान रहा व नहीं राज्य गठन के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले आंदोलनकारी व शहीदों की सुध लेने की होश रही। अगर इन हुक्मरानों के दिल में जरा सी भी शहीदों व राज्य के प्रति सम्मान रहता तो शहीद गंभीर सिंह कठैत की माॅं रामेश्वरी को अपने बेटे को शहीद का दर्जा देने के लिए इनके दर पर दर दर की ठोकरे नहीं खानी पड़ती। इन बेशर्मो में इतनी नैतिकता नहीं है कि जिनके संघर्ष व बलिदानों के बदौलत वे आज उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं उनका सम्मान करना उनका प्रथम दायित्व है। राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करना उनका पहला धर्म है। परन्तु सत्तामद में ये इतने बेदर्द हो गये कि उनको न प्रदेश के हितों का भान है व नहीं राज्य गठन की जनांकांक्षाओं का। इनको केवल अपने दिल्ली आका दिखाई देते हैं व अपने अहं की तुष्टि वाली कुर्सी।
शहीदों की शहादत व राज्य गठन आंदोलनकारियों के सतत् संघर्ष की बदौलत गठित उत्तराखण्ड की सत्ता पा कर यहां के हुक्मरान राव व मुलायम से बदतर साबित होते देख कर आंदोलनकारियों में भारी आक्रोश है। प्रदेश की सत्ता में आसीन हुक्मरानों को इस बात की सुध ही नहीं थी कि राज्य गठन आंदोलनकारियों पर दर्ज सभी मुकदमों को वापिस लेने की पहल करे। न हीं यहां के हुक्मरानों को इस बात की सुध रही कि राज्य गठन आंदोलन को खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर, श्रीयंत, देहरादून, नैनीताल आदि में रौंदने वाले हैवानों को सजा देने के लिए एक मजबूत आयोग बनाया जाय। नहीं प्रदेश के हुकमरानों को इस बात की सुध रही कि प्रदेश की जनता राजधानी गैरसैंण बनाने, प्रदेश में हिमाचल की तरह भू कानून बनाने व भष्टाचार रहित सुशासन दे कर प्रदेश का चहुमुखी विकास करना है।
प्रदेश के हुक्मरानों के सर पर चढ़े सत्ता के इस भूत को उतारने के लिए टिहरी के बौराड़ी निवासी समर्पित युवा आंदोलनकारी गंभीरसिंह कठैत ने राज्य गठन के बाद सरकार द्वारा राज्य गठन आंदोलन में आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमें वापस लेने के वचन को न निभाने से आहत हो कर मशाल जलूस में अपनी शहादत दे दी। प्रखर आंदोलनकारी गंभीर सिंह कठैत की शहादत से पूरा उत्तराखण्ड आक्रोशित हो गया। राज्य गठन जनांदोलन के जनाक्रोश से सहमें प्रदेश के हुक्मरानों ने आनन फानन में राज्य गठन आंदोलन के दौंरान आंदोलनकारियों पर दर्ज वे सभी मुकदमें वापस ले लिये जिनको लेने के लिए वह वर्षो से ना नुकुर कर रहा था। अगर सरकार समय पर ये मुकदमें वापस ले लेती तो कम से कम राज्य गठन आंदोलन के प्रखर आंदोलनकारी गंभीर सिंह कठैत की जान बचायी जा सकती। वहीं अपने बेटे के शहीद होने के बाद, माॅ रामेश्वरी को वर्षो से दर दर की ठोकरे नहीं खानी पड़ती। शहीद कठैत की माॅं की मांग है कि गंभीर सिंह कठैत को शहीद राज्य आंदोलनकारी का दर्जा देने, बौराड़ी में बने स्मारक पर उनकी प्रतिमा का अनवारण करने, उनके गांव के जूनियर हाईस्कूल का नाम शहीद गंभीर सिंह कठैत की है। कई बार धरना आंदोलन किया परन्तु बेशर्म हुक्मरानों के कानों में जूं तक नहीं रैंग रही है।
बौराड़ी निवासी रामेश्वरी देवी बेटे को शहीद राज्य आंदोनलकारी का दर्जा देने की मांग को लेकर धरने पर बैठ गई है। यह बजुर्ग महिला कई सालों से बेटे को राज्य आंदोलनकारी दर्जा देने सहित अन्य मांगों के निराकरण की मांग कर रही है, लेकिन अभी तक प्रशासन से आश्वासन के सिवाय और कुछ नहीं मिल पाया।
यह है उत्तराखण्ड राज्य गठन आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले व सरकार द्वारा राज्य गठन आंदोलनकारियों पर दर्ज सभी मुकदमें को वादा करके भी वापस न लेने के विरोध में अपनी शहादत दे कर सरकार को मुकदमें वापस लेने के लिए मजबूर करने वाले शहीद गंभीर सिंह कठैत के प्रति प्रदेश के हुक्मरानों के दिल में सम्मान।
वहीं दूसरी तरफ प्रदेश के हुक्मरान ऐसे सत्तालोलुपु व उत्तराखण्ड विरोधी रहे कि यहां के हुक्मरानों की मृतप्रायः आत्मा को झकझोरने के लिए पौड़ी निवासी व राज्य गठन आंदोलन के समर्पित आंदोलनकारी बाबा मोहन उत्तराखण्डी को राज्य गठन के बाद गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए अपनी शहादत देनी पड़ी, बाबा की शहादत से पूरा उत्तराखण्ड रौया परन्तु प्रदेश की सत्ता में आसीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी व विपक्ष में आसीन भाजपा के नेताओं की पत्थर से बदतर हुई आत्मा ने उनकी शहादत का अपमान किया। बाबा मोहन उत्तराखण्डी की शहादत के कई वर्ष बीत जाने के बाबजूद आज 2017 में भी प्रदेश की जनता से गैरसैंण राजधानी बनाने के झूठे बादे करने वाले हुक्मरानों ने बडी बेशर्मी से अपने कार्यकाल में गैरसैंण राजधानी घोषित करने की हिम्मत तक नहीं जुटा कर प्रदेश के वर्तमान सहित भविष्य को रौंदते रहे।
आज कहने को प्रदेश के आठ मुख्यमंत्री केवल 17 साल में हो गये। प्रदेश की एक भी जनांकांक्षाओं को साकार करने की सुध इन आठों मुख्यमंत्री रहे स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खण्डूडी, निशंक, बहुगुणा, रावत व वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को नहीं रही। आज न तो प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने की हिम्मत ही वर्तमान मुख्यमंत्री जुटा पा रहे हैं व नहीं प्रदेश में हिमाचल की तरह भू कानून व भ्रष्टाचार रहित शासन देने का साहस कर पा रहे है। मुजफरनगर काण्ड सहित राज्य गठन आंदोलन को रौंदने वाले गुनाहगारों को दण्डित करने के लिए एक आयोग बनाने के लिए न इनकी कुब्बत है व नहीं इनमें इतनी हिम्मत की इन गुनाहगारों को कटघरे में खडे कर सके। ये प्रदेश के लिए शहादत वाले गंभीर सिंह कठैत की माता की चित्कार तक ये सुन नहीं पा रहे है तो और क्या करेंगे। प्रदेश के हुक्मरानों की उत्तराखण्ड विरोधी इसी प्रकार की मनोवृति से प्रदेश की जनता आहत है।