शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता मिलने से भी भारत नहीं, आतंकी पाक ही होगा मजबूत
चीन व रूस के दवाब में आकर ही मिले मोदी व नवाज,
देवसिंह रावत
9 जून, शुक्रवार को कजाकिस्तान के अगस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन को शिखर सम्मेलन, भारत तथा पाकिस्तान को पूर्णकालिक सदस्यता प्रदान करने व आतंकबाद के खिलाफ मिलकर संघर्ष करने का संकल्प लेने के साथ सम्पन्न हुआ। परन्तु शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता मिलने पर यह सोचना कि इससे आतंकबाद पर अंकुश लगाने पर सहयोग मिलेगा या भारत में आतंकबाद कम हो जायेगा यह दिवास्वप्न ही होगा। क्योंकि यह संगठन न तो आतंकबाद के पर्याय बन चूके आतंकी पाकिस्तान पर अंकुश लगाने को तैयार है । उल्टा आतंकी पाकिस्तान को ही शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बना कर उसके आतंक को मान्यता प्रदान कर दी। वहीं पाकिस्तान को दो टूक फटकार लगाने के बजाय शंघाई सहयोग संगठन के चीन व रूस के दवाब में आ कर भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकी पाक के प्रधानमंत्री नवाज से मिले। जिससे भारतीयों में गहरी नाराजगी फैल गयी।
भले ही संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने 9 जून को कजाकिस्तान में भारत व पाक के प्रधानमंत्रियों की एक संक्षिप्त मुलाकात को स्वागत करते हुए कहा हो कि अपने मतभेदों को दूर करने के लिए भारत तथा पकिस्तान के पास अब एक नया मंच है। कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव ने कहा कि दो नए सदस्यों के शमिल होने से संगठन के विकास को नई गति मिली है और इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी प्रासंगिकता को और बढ़ावा मिलेगा।
परन्तु यह भी सच है शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य होने के बाद न तो भारत पर आतंकी हमले करने वाले पाक पर कोई अंकुश लगेगा। क्योंकि शंघाई सहयोग संगठन का मुख्य खेवनहार चीन ही है, जो पाकिस्तान के आतंक का अमेरिका के बाद संरक्षक बना है। भारत के खिलाफ निरंतर आतंक फेला रहे आतंकियों को न केवल चीन बचा रहा है अपितु चीन संयुक्त राष्ट्र व सुरक्षा परिषद जैसे बडे मंचों पर भी पाक के आतंकियों का बचाव बहुत ही बेशर्मी से कर रहा है। यही नहीं जो चीन खुद भारत को तबाह करने के लिए पाक के साथ चीन सुरक्षा कवच बन कर खडा है। यही नहीं चीन ने पाक द्वारा कब्जाये भारत के कश्मीरी भू भाग पर अपना शिकंजा व व्यापारिक गलियारा बना रहा है। इसके साथ चीन ने अब भारत पर दवाब बनाने के लिए पाक में ही अपना सैन्य अड्डा बना रहा हैै। ऐसी भारत विरोधी मानसिकता रखने वाले चीन से क्या आशा की जा सकती है ।
हालांकि शंघाई सहयोग देशों में पाकिस्तान व भारत को सम्मलित करने के बाद अफगानिस्थान, व ईरान को सदस्य बनाने के लिए नए आवेदन के लिए गये। सबसे हैरानी की बात यह है कि यह संगठन भी अमेरिका के स्वर में संयुक्त राष्ट्र संघ की तरह ही स्वर मिलाते हुए अफगानिस्तान में सरकार व तालिबानी विद्रोहियों के बीच समझोते को ही मान्यता देने का मन बनाये हुए है। यह संगठन भी ताल ठोक कर यह नहीं कह रहा है कि आतंकियों का हर हाल में सफाया होना चाहिए। तालिबान का समर्थक पाक भी है। वहीं तालिबान भारत को फूटी आंख नहीं देखना चाहता है। पर अमेरिका, रूस, चीन का यह एक दूसरे को मात देने के खेल में विश्व से आतंक का सफाया करने की हुंकार भरने वाले ये देश ही तालिवान की ढाल बने हुए है।
जबकि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में दो टूक शब्दों में कहा कि आतंकवाद तथा नशीले पदार्थो की तस्करी पर अंकुश लगाने में शंघाई सहयोग संघ के देश साथ दें तो अफगानिस्तान से आतंकवादियों की मौजूदगी को जड़ से मिटाना संभव है।
गौरतलब है चीन, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान तथा तजाकिस्तान द्वारा सन् 2001 में स्थापना के बाद शंघाई सहयोग संगठन में पहली बार दक्षिण एशिया के देश भी शामिल हुए हैं। अस्ताना के अंतिम घोषणापत्र के अलावा, 10 अन्य दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें कट्टरवाद से निपटने के लिए एक सम्मेलन तथा अंतर्राष्ट्रीयआतंकवाद के खिलाफ संयुक्त लड़ाई के लिए एक घोषणा पत्र शामिल है। नेताओं ने आतंकबाद पर भले ही भाषणों में चिंता प्रकट की पर हकीकत यह है ये देश आतंकी पाक को अलग थलग करने के बजाय उसको ही शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनाने की भूल करते है। इसके साथ शंघाई सहयोग संगठन का भी आतंकबाद के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प अफगानिस्तान में सरकार व तालिबान के बीच समझोते की वकालत करने से ही बेनकाब हो गयी। रही सही कसर पाकिस्तान को शंघाई देशा का सदस्य बनाये जाने पूरी हो गयी।