नैनीताल(प्याउ)। उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा सत्तासीन होने के बाद बदरींनाथ केदारनाथ मंदिर समिति को भंग करने के आदेश को उच्च न्यायालय ने रद्द कर मंदिर समिति को बहाल करने का आदेश दिया। गौरतलब है कि सत्तासीन होने के बाद प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपने समर्थकों को मंदिर समिति में नियुक्ति करने की मंशा से पूर्व कांग्रेसी सरकार के शासनकाल में आसीन हुई मंदिर समिति को भंग करने का निर्णय लिया था। प्रदेश सरकार के इस निर्णय को बदरीनाथ -केदारनाथ मंदिर समिति के संविधान विरोधी बताते हुए मंदिर समिति के सदस्य दिवाकर चमोली व दिनकर बाबुलकर ने याचिका दायर कर मंदिर समिति भंग करने के आदेश को चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि सरकार ने बिना कारण और राजनीतिक दुर्भावना के तहत मंदिर समिति को भंग करने के साथ ही प्रशासक नियुक्त कर दिया।
इस मामले पर सुनवायी करते हुए न्यायालय ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी। न्यायालय में भाजपा सरकार ने अपने निर्णय को न्यायोचित बताते हुए कहा कि मंदिर समिति की नियमावली के प्रावधान-11(दो) ए में यह शक्ति निहित है कि सरकार कुशल प्रबंधन नहीं होना महसूस करने पर समिति को अकारण भंग कर सकती है। तमाम दलीलों को सुनने के बाद न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद मंदिर समिति को भंग करने का आदेश निरस्त करते हुए समिति को फिर से बहाल करने का आदेश पारित कर दिया। उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद प्रदेश सरकार इसे स्वीकार करने का काम करती है या फिर न्यायालय का दरवाजा खटखटाती है।