चारधाम यात्रियों को भी चूकानी पड़ रही है गैरसैंण राजधानी न बनने की कीमत, 17 तीर्थ यात्रियों की हो चूकी है आकस्मिक मौत
- देवसिंह रावत
इस बार की चार धाम यात्रा में 17 श्रद्धालुओं की हो चूकी है आकस्मिक मौत। केदारनाथ में 8, बदरीनाथ में 3 व उत्तरकाशी में 6 श्रद्धालुओं की मौत। यहां पर ऊंचाई में होने के कारण हवा की कमी व स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में बढ़ी ऐसी घटनाये। गौरतलब है कि उत्तराखण्ड के मैदानी 3-4 जनपदों को छोड़ कर 9 पर्वतीय जनपदों में स्वास्थ्य सेवायें सरकारों की उदासीनता के कारण पूरी तरह मृतप्रायः हो चूकी है। केवल स्वास्थ्य सेवाओं का नहीं अपितु शिक्षा व सरकारी कार्यालयों की स्थिति भी ऐसी ही है। कर्मचारी, चिकित्सक व अध्यापक सभी देहरादून व मैदानी जनपदों में ही सेवा करना चाहते है। जो पर्वतीय जनपदों में है वह बदली कराने के चक्कर में ही लगा है। यह सब प्रदेश की राजधानी बलात देहरादून थोपने के कारण हुआ। अगर राजधानी जनता की मांग के अनुसार गैरसैंण बना दी जाती तो अब तक पर्वतीय जनपदों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व शासन विहिन नहीं होता। पर्वतीय जनपद से इन्हीं अभावों से पलायन हो रहा है। इन जनपदों के मुख्य चिकित्सालय भी चिकित्सक, आधुनिक सुविधाओं के अभाव में खुद बीमारू हालात में है। लोगों को इलाज के लिए देहरादून या दिल्ली आने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अगर गैरसैंण राजधानी होती तो प्रदेश की यह दुर्दशा नहीं होती। कम से कम चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार व शासन विहिन तो प्रदेश के सीमान्त पर्वतीय जनपद नहीं होतें। अगर पर्वतीय जनपदों ंमें स्वास्थ्य सेवायें ठीक रहती तो इन यात्रियों को भी उचित व समय पर इलाज मिल सकता। वहां उचित व्यवस्था की जा सकती थी। परन्तु यहां करे कौन सब पहले लखनऊ के मोह में उलझे हुए थे अब देहरादून के मोह मे। कहां कब क्या होना चाहिए इसका भान तक नहीं।
इसीलिए जिस किसी को भी उत्तराखण्ड का दर्द है वह राजधानी गैरसैंण का बनाने की मांग कर रहा है। क्योंकि अब गैरसैंण ही प्रदेश की लोकशाही, विकास व जनांकांक्षाओं को साकार करने का एकमात्र राह बच गयी है। गैरसैंण में विधानसभा भवन, विधायक निवास व अन्य कार्यालय बन चूके है। मात्र रह गया प्रदेश के नेतृत्व की इच्छा शक्ति की। हरीश रावत ने गैरसैंण में सभी आधारभूत संरचना करने का बड़ा कार्य करा तो दिया था परन्तु ऐलान न करके एक ऐतिहासिक भूल कर दी। अब भाजपा ने चुनाव में राजधानी गैरसैंण का वादा किया था परन्तु नौकरशाही व देहरादून में सुविधाओं के मौह में ग्रसित हो कर प्रदेश की दुर्दशा से उबारने की एकमात्र राह गैरसैंण भूल गये। इसका कारण नेतृत्व में दिशाहिनता व उत्तराखण्ड विरोधी होना। सुविधा भोगी भ्रष्ट नौकरशाहों की चुंगल में फंसे नेतृत्व पंचतारा सुविधाओं के मोह में गैरसेंण राजधानी बनाने का ऐलान करने का साहस नहीं जुटा पा रहे है। जबकि राज्य गठन आंदोलन की सर्वसम्मत मांग रही। आज नौकरशाही व दिल्ली के आकाओं के चुंगल में फंसे प्रदेश के नेताओं को न तो प्रदेश की सुध है न अपने दायित्वों की। ये मात्र अपनी तिजौरी व अपनी सुविधाओं के कारण जनभावनाओं को रौंद कर गैरसैंण के बजाय देहरादून में ही राजधानी बनाने का षडयंत्र के मोहरे बन चूके है। सरकार अगर मजबूत रहती तो गैरसैंण के मार्ग में अवरोधक बने नौकरशाहों व नेताओं को घर ंिबठाया जा सकता था। इनके लिए उत्तराखण्ड जनता ने नहीं बनाया व नहीं शहादत दी। इनकी एक पल के लिए प्रदेश को जरूरत नहीं। परन्तु नेता ही दिशाहीन है। राज्य गठन के बाद सडक छाप अधिकाश नेता व नौकरशाह करोड़ नहीं खरबपति बन गये है। जनता की स्थिति बद से बदतर बन गयी है। नेताओं व नौकरशाहो के देहरादून के पंचतारा सुविधाओं के मोह में ग्रसित नेताओं व नौकरशाहों के कारण गैरसैंण राजधानी न बनने से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन विहिन होने से पर्वतीय प्रदेश उजड सा गया है । प्रदेश की जनता की गैरसैंण राजधानी बनाने की मांग को रौंदने वाले उत्तराखण्ड द्रोहियों के चेहरे बेनकाब होने चाहिए। प्रदेश को एक पल के लिए भी नहीं है ऐसे नक्कारे, भ्रष्ट व जनहितों को रौंदने वाल नेताओं व नौकरशाहों की जरूरत नहीं।