उत्तराखंड

यहां प्रकृति खुद करती है भगवान शिव शंकर भोले नाथ का जलाभिषेक।

देवो की भूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की खूबसूरत पहाड़ियों में भगवान शिव शंकर भोले नाथ का प्रमुख धाम है इसे टपकेश्वर महा देव मंदिर के नाम से जाना जाता है मंदिर देहरादून के बस स्टैंड से लगभग ५ कि.मी की दूरी पर है और ये मंदिर नदी के किनारे पर बसा है।
पौराणिक कथा के अनुसार, यह जगह गुरु श्री द्रोणाचार्य की साधना जगह मानी गयी है उन्हीं के द्वारा यहां शिवलिंग की स्थापना की गयी और उनकी कई लोक कथाएं भी काफी प्रचलित हैं।मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है भारत भ्रमण के दौरान गुरु श्री द्रोणाचार्य इस जगह पर आए हुए थे और उनकी मुलाकात एक महर्षि से हुई.गुरु श्री द्रोणाचार्य ने महर्षि से भगवान शिव के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की।
समय पर कृपी को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ परंतु माता कृपी अपने पुत्र को दूध पिलाने में बहुत ही असमर्थ थी. द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र के लिए दूध का इंतजाम करने के लिए राजा द्रुपद के पास गाय लेने पहुंचे. गये राजा ने गुरु श्री द्रोणाचार्य को गाय देने से मना कर दिया दुखी द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र को बताया कि सभी गाय भगवान शिव शंकर भोले नाथ के पास हैं और उन्हीं की कृपा से तुम्हें दूध मिल पायेगा है.बालक ने मन ही मन भगवान शिव की आराधना करते हुए रोने लगा. उसके आंसुओं की कुछ बूंदें अनजाने में ही शिवलिंग पर गिरी जिससे भगवान शिव द्रवित हो गए।
माना गया है कि उनकी कृपा से इस गुफा से द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के लिए भगवान शिव शंकर भोले नाथ दुवारा दूध की धारा बहाई गयी थी उस दिन से हर माह की पूर्णिमा को दूध की धारा बहने लगी।

 

इस दूध की धारा से सबसे पहले शिवलिंग का अभिषेक होता है फिर बालक को दूध मिलता है तभी से इस शिवलिंग को दुग्धेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाने लगा और अब वहां दूध की जगह शिवलिंग के ऊपर की एक चट्टान से जल की धारा बहती है।
और इस जगह पर गुफा में मौजूद शिवलिंग के ऊपर स्थित एक चट्टान से हमेशा जल की बूंदें गिरती रहती हैं इसी लिए इसका नाम टपकेश्वर महा देव मंदिर पड़ा और आज भी लोग इस मंदिर को टपकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है और अभी भी जाना जा रहा है और सावन के महीने में यहाँ बहुत ही ज्यादा मात्रा में भक्तो की भीड़ उमड़ी होती है।

जय देव भूमि उत्तराखंड

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