देवसिंह रावत
दुनिया में मांगने से कभी सम्मान व राज नहीं मिलता, आप उसके योग्य हैं तो बन जाओ। जो पुजारी का कार्य जानता होगा वही मंदिर में पुजारी होगा। आप मंदिर बनाओं खुद उसमें पुजारी बन जाओ। अस्पताल बनाओं उसमें डाक्टर बन जाओ। इंजीनियर बन जाओ। कौन रोक रहा है। केवल आपको उस कार्य के अनुरूप योग्यता होनी चाहिए।
वह जमाना चले गया जब मठाधीशों की ही चलती थी। हिंदु समाज गुण की पूजा करता है। आज देखों मठाधीशों के पीछे कुछ ही लोग है। जो बाबा फकीर या कुछ इल्म वाले है, उनके पीछे लाखों लाखों लोग है। दुनिया बदल गयी है। कहां भूत को पकड़ कर बैठे हो। आप देने वाले बनो कब तक लेने की गुहार लगाते रहोगे। कर्मवीर बनो। आरक्षण को जरूरत मंदों के लिए रहने दो। सबल बनो, दीन दुखियों को आगे बढ़ाने में सहायक बनो। कृपा करने का ढोंग मत करो। अपितु समाज को आगे बढ़ाने का अपना दायित्व पूरा करो। इस संसार में हम सब समाज के रिणी होते है। समाज ने हमको जीना व खाना सिखाया। सुरक्षित व सम्मानजनक जीवन जीने का वातावरण दिया। इसलिए इस दुनिया को और अधिक सुरक्षित व जीने योग्य बनाने में अपना दायित्व निभायें।
दुनिया में सबसे श्रेष्ठ मानवीय जीवन पद्धति कहीं है तो वह भारतीय है। पूरा पश्चिमी जगत के मनीषी आज भारतीय संस्कृति को आत्मसात कर रहे है। हम वही भूत से भयभीत हो कर अपना वर्तमान व भविष्य को भी बर्बाद कर रहे है। अन्याय न सहो व करो। वर्तमान में जीना सीखो। दुखद भूत के साये से खुद को मुक्त करो। भूत के लिए ताउम्र रोने से कभी न वर्तमान सुधर सकता है व नहीं भविष्य बन सकता है। केवल असंतोष, धृणा, नफरत व द्वेष की ज्वाला में इंसान खुद को जलाता है। देखो समय कितना बदल गया। वर्तमान में जीना सीखो। दवाई हमेशा बीमार इंसान को ही खानी चाहिए। हर दवाई हर बीमार को नहीं दी जा सकती। जिसको जो मर्ज है उसी की दवाई देनी चाहिए। वह भी तब तक जब तक वह स्वस्थ न हो जाय। स्वस्थ्य इंसान अगर दवाई से मोह करके खाता रहेगा तो उसके शरीर में विकार पैदा हो जायेगा। खाना उतना ही उचित है जितनी भूख है। उससे अधिक खाने से इंसान बीमार पड़ जाता है। जो जरूरत मंद है उसको आगे बढ़ने की राह दो। कुण्डली मार कर जरूरत मंद के हक पर कुण्डली न मारो। जीवन का यही महामंत्र है जीओ व जीने दो। कभी ऐसा व्यवहार न करो जैसा दूसरा आपके साथ करे तो आपको दुख महसूस होता है। जाति,धर्म, क्षेत्र, लिंग, भाषा व देश के नाम पर कभी किसी का अपमान न करो। सबमें परमात्मा समझ कर सबके कल्याण के लिए जीवन को समर्पित करों।
औरों को हंसते देखो मनु, हंसो और सुख पाओ,
अपने सुख को विस्तृत कर लो सबको सुखी बनाओ।