सरकार की इस पहल का स्वागत करते हुए भाषा आंदोलन ने की शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन में भी भारतीय भाषा लागू करने की मांग
नई दिल्ली (प्याउ)। भारतीय भाषा आंदोलन ने 17 अप्रैल को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ संसदीय समिति को हिंदी में भाषण देने के प्रस्ताव को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए जाने का स्वागत किया। भारतीय भाषा आंदोलन ने इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि संसदीय समिति की इस सिफारिस को स्वीकार कर देश की सरकार और राष्ट्रपति ने देश में भारतीय भाषा का राज स्थापित करने की दिशा में बढाया गया एक कदम बताया।
देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए 48 माह से संसद की चैखट जंतर मंतर पर आंदोलन छेडने वाले भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है कि देश के जनप्रतिनिधियों को देश की ही भाषा में न केवल अपने भाषण देने चाहिए अपितु देश की शिक्षा रोजगार न्याय सम्मान व शासन भी संचालित करना चाहिए। भारतीय भाषा आंदोलन ने आशा प्रकट किया कि देश की सरकार शीघ्र ही देश से अंग्रेजी की गुलामी मुक्त करके भारतीय भाषाओं में शिक्षा रोजगार न्याय सम्मान व शासन संचालित करने के अपने प्रथम दायित्व का निर्वहन करेंगी।
भारतीय भाषा आंदोलन ने देश के हुक्मरानों का ध्यान दिलाया कि जब संसार में रूस, चीन, जापान, जर्मन, फ्रंास, इटली, इस्राइल, टर्की, इंडोनेशिया व कोरिया आदि देश अपने अपने देश की भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन दे कर चहुमुखी विकास का परचम पूरे विश्व में लहरा सकता है तो विश्व में सदियों तक ज्ञान विज्ञान व समृद्धि की पताका लहराने वाला भारत अंग्रेजों के जाने के 70 साल बाद भी अंग्रेजी भाषा का गुलाम बना हुआ है। देश की लोकशाही, मौलिक विकास व संस्कृति की रक्षा के लिए भारत में भारतीय भाषाओं को आत्मसात करना चाहिए।
भारतीय भाषा आंदोलन की इस बैठक में भारतीय भाषा आंदोलन के महासचिव देव सिंह रावत ,अभिराज शर्मा, रामजी शुक्ला, वेदानंद, आलमदार अब्बास, श्री खुराना व राजेश बसवाला ने भाग लिया। भारतीय भाषा आंदोलन के अन्य प्रमुख सदस्यों में चंद्रवीर सिंह, सुनील कुमार सिंह, श्रीओम, पदम सिंह बिष्ट, जितेन्द्र, राकेश त्रिपाठी, मन्नु कुमार, वीरेन्द्र नाथ वाजपेयी, मनमोहन सिंह, कमल किशोर नौडियाल, आशा शुक्ला, लक्ष्मण कुमार, महेन्द्र रावत, अरविन्द मिश्रा, देवेन्द्र सिंह, दिनेश तिवारी सहित अनैक आंदोलनकारी समर्पित हैं।
गौरतलब है कि 6 साल पहले संसदीय समिति ने हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए 117 सिफारिसें की थी। इसमें एक सिफारिस यह भी थी कि राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री ,समस्त मंत्रिमंडल व नौकरशाह जो अपना संबोधन हिंदी कर सकते हैं, उन्हें हिंदी में अपना भाषण हिंदी में करना चाहिए।
भारतीय भाषा आंदोलन में आगामी 21 तारीख की बैठक मे सम्मिलित होने के लिए सभी राष्ट्रवादियों से आह्वान किया है।