क्षेत्रीय दलों की धरती उडिशा में फतह कर पायेगी क्या मोदी व शाह की भाजपा?
देवसिंह रावत
प्रधानमंत्री मोदी ने भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन से किया उडिसा में नवीन पटनायक का तिस्लिम तोड़ने का शंखनाद। उडिसा फहत के लिए कमर कते हुए भाजपा ने दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन 15 से 16 अप्रैल को उडिशा में ही कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सहित भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारणी के तमाम सदस्य इस बैठक में मौजूद है।
इस बैठक को देश के राजनैतिक पटल पर भाजपा का 2019 में होने वाले उड़िसा विधानसभा के चुनाव में फतह करने के अभियान का श्रीगणेश करने के रूप में ही देख रहा है। भाजपा के इस अधिेवेशन के प्रचार प्रसार को देख कर लोगों के जेहन में एक ही सवाल उमड़ रहा है कि क्या 2014 लोकसभा चुनाव में मात्र एक संसदीय सीट जीतने वाली भाजपा क्या विगत 17 सालों से प्रदेश की सत्ता में आसीन नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल को प्रदेश की सत्ता से उखाड् फैक कर सत्ता पर काबिज हो पायेगी क्या भाजपा?
राजनीति के जानकारों की दृष्टि में लोकसभा चुनाव के बाद जिस प्रकार से भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में असम, उप्र व उत्तराखण्ड की विधानसभा चुनावों में अभूतपूर्व जीत हासिल की उसे देख कर लोगों को मोदी के करिश्माई नेतृत्व व मोदी के हनुमान समझे जाने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के कुशल चुनावी कौशल को देखते हुए लोगों को पूरा विश्वास है कि आगामी 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ उड़िसा विधानसभा चुनाव भी पूरे विश्वास के साथ फतह करेंगे। हालांकि उड़िसा का मिशन भाजपा के लिए कोई आसान भी नहीं है।
यह भी विचित्र संयोग है बीजू जनता दल की सहयोगी बन कर उडिसा की राजनीति में पांव पसारने वाली भारतीय जनता पार्टी बीजद से सम्बंध विच्छेड करने के बाद प्रदेश की सत्ता में काबिज होने की हुंकार भर रही है। हालांकि यह हुंकार कोई कोरी हुंकार भी नही है। भाजपा ने निरंतर उड़िसा में जनता के बीच निरंतर सक्रिय है। भाजपा की जमीनी तैयारियों का एक नजरिया 2017 के फरवरी माह में सम्पन्न हुए पंचायती चुनावों में भाजपा को पहले से दस गुना अधिक सफलता अर्जित करके सभी को चैंका दिया। 2017 में सम्पन्न हुए पंचायती चुनाव के 854 स्थानों में से भाजपा ने इस बार 306 स्थानों पर विजय दर्ज करा कर उड़िसा की राजनीति में एक सियासी भूकंप ही ला दिया। भले ही इन चुनाव में बीजद के 460 स्थानों पर विजयी हासिल हो कर सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। परन्तु बीजद के लिए यह जीत किसी खतरे की घण्टी से कम महसूस नहीं हो रही है। क्योंकि गत पंचायती चुनाव में बीजद के पास 651 सीटें थी। जो इस चुनाव में घट कर 460 सीटों पर सीमित रह गयी। वहीं उडिशा में मुख्य विपक्षी दल रही कांग्रेस को इन पंचायती चुनाव में भाजपा ने तीसरे स्थान पर धकेल दिया हे। इन चुनावों में कांग्रेस को केवल 66 स्थानों पर सफलता मिली। जबकि गत पंचायती चुनाव में कांग्रेस को 126 सीटें मिली थी।
इसके बाबजूद उडिसा देश का ऐसा प्रांत है जहां 1960 के बाद प्रदेश की सत्ता में अधिकांश क्षेत्रीय दलों का बर्चस्व ही रहा। यहां का सबसे करिश्माई नेता बीजू पटनायक के बाद उनकी विरासत को उनके बेटे नवीन पटनाक ने बखुबी से संभाली हुई है। यहां पर विगत 16 सालों से नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल का एकक्षत्र राज है। विगत विधानसभा चुनाव में सन् 2014 में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल को कुल मतदान का 43.4 प्रतिशत मत हासिल कर 147 सीटों वाली उड़िशा विधानसभा की 117 सीटे मिल कर भारी बहुमत मिला था। दूसरे नम्बर पर कांग्रेस रही थी, कांग्रेस ने 25.7प्रतिशत मत हासिल कर मात्र 16 सीटें जीती थी। प्रदेश की राजनीति में अपनी दस्तक देते हुए भाजपा ने 18प्रतिशत मत हासिल कर 10 विधानसभा सीटे जीती थी।
इस प्रकाार उडिशा जैसे प्रांत में जहां भाजपा ने गत लोकसभा चुनाव में मात्र एक सीट जीती थी। वहां कैसे क्षेत्रीय दलों के गढ़ रहे उडिशा में अपना परचम लहरायेगी। पर चुनावी समीक्षकों को विश्वास है जिस प्रकार भाजपा ने 15 सालों से सत्तासीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री तरूण गोगोई को परास्त कर असम में भाजपा का परचम लहराने में सफलता हासिल की है। वैसे ही भाजपा उड़िशा में भी नवीन पटनाक के जादू को बेअसर करके सत्तासीन होगी।
उड़िशा में भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अपने संबोधन में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि भाजपा अभी अपने चरमोत्कर्ष पर नहीं पहुंची है। जिस दिन देश के प्रत्येक राज्य में भाजपा की सरकार बनेगी और पंचायत से संसद तक भाजपा ही भाजपा होगी, उस दिन पार्टी अपने चरमोत्कर्ष पर होगी। श्री शाह ने सभी कार्यकर्ताओं को 2019 में नरेंद्र मोदी को भारी बहुमत के साथ दोबारा प्रधानमंत्री के साथ साथ उडिशा सहित सभी राज्यों में भाजपा की सरकार बनाने के लिए मतदान केन्द्र तक काम करने की नितांत जरूरत है। अपने अध्यक्षीय भाषण में शाह ने कहा कि 1998 में भी कहा गया था कि भाजपा अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुकी है, लेकिन पार्टी ने शानदार प्रदर्शन कर उन्हें झुठला दिया। आज केंद्र में हमारी पूर्ण बहुमत की सरकार है। 13 राज्यों में हमारी सरकारें हैं। शाह ने आवाहन किया कि पार्टी पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की तैनाती करे। कुछ ऐसे कार्यकर्ताओं की पहचान करे जो एक साल तक बूथ स्तर पर रहें और कुछ 6 माह के लिए। कार्यकारिणी के सदस्य 15 दिन पूर्णकाल के लिए बूथ स्तर पर जाएं।उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेताओं और मंत्रियों की जिम्मेदारी है, जहां भाजपा जीती नहीं है वहां जाए। उन्होंने ओडिशा के विधानसभा चुनाव जीतने और लोकसभा की अधिकतम सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।
उल्लेखनीय है कि भाजपा ने उड़िसा में अपनी फतह के लिए मतदान केन्द्र तक जनता को जोड़ने की रणनीति पर अमल करना प्रारम्भ कर दिया है। इसके लिए भाजपा, गांव स्तर तक नवीन पटनायक सरकार पर तेजी से प्रहार करके जनता को विश्वास दिला रही है कि भाजपा प्रदेश में सत्तासीन होते ही किसानों की सुध लेगी, इलाज के लिए बेहतर सुविधायें उपलब्ध करायेगी। जनजाति के कल्याण के लिए काम करेगी। इसके लिए मोदी की तीन रैलियां पारादीप, बारगढ़ व बालेश्वर में हो चूकी है। आने वाले समय में केन्द्रीय मंत्रियों सहित बडे भाजपा नेताओं का उड़िसा में सघन तूफानी दौरे होंगे।
उड़िसा में प्रशासनिक कमान 1937 में अंग्रेजों के जाने से पहले उड़िसा कृष्णाचंद्रा गजपति हो या 1937 में कांग्रेस के विश्वनाथ दास या 1941 में पुन्न गजपति रहे। वहीं आजादी के आसपास से लेकर 1961 तक कांग्रेस के हरे कृष्णा महातब व नव कृष्णा चैधरी के हाथों में प्रदेश सरकार की कमान रही। वहीं कांग्रेस के बीजू पटनायक 1961 से 1963 तक मुख्यमंत्री रहें। इसके बाद उनको हटा दिया गया। 1967 में स्वतंत्र पार्टी के राजेन्द्र नारयण सिंह मुख्यमंत्री रहे। 1980 से 1985 तथा 1995 से 1999 तक कांग्रेस जानकी बल्लभ पटनायक मुख्यमंत्री रहे। 1990 से 1995 तथा तक जद की सरकार में बीजू पटनायक मुख्यमंत्री रहे । कुड समय के लिए कांग्रेस के गिरधर गोमांग मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद 2004 से आज 2017 तक नवीन नटनायक प्रदेश में सबसे लम्बे समय तक 6000 से अधिक दिनों से प्रदेश की सत्ता पर काबिज है। इससे साफ है कि प्रदेश की राजनीति कांग्रेस व क्षेत्रीय दलों के आसपास ही घुमती रही। अब देखना यह है कि मोदी व शाह की जुगल जोड़ी नवीन पटनायक के तिस्लिम को कैसे तोड़ पाते है। पर यह साफ है आगामी 2019 का चुनाव नवीन पटनायक के लिए अब तक का सबसे विकट चुनाव होगा। क्योंकि भाजपा जिस राज्य में भी अब चुनाव लड़ रही है वहां के सत्तासीन दल पर खुलेआम सेंघ मारने के साथ साथ चारो तरफ से प्रहार कर जमीदोज करने की रणनीति अपनाती है। देखना है भारत के तटवर्ती राज्य में भाजपा के दिग्गज क्या गुल खिलाते है। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमों।