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उप्र, उत्तराखण्ड के बाद दिल्ली में चल रही मोदी की आंधी से भयभीत आप

मोदी को गरियाने के बजाय दिल्ली नगर निगम चुनाव में अपनी उपलब्धियों का प्रचार करेगी आप

नई दिल्ली(प्याउ)। 13 मार्च को दिल्ली विधानसभा की रजौरी गार्डन विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा की जीत के झटके से केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी उतनी स्तब्ध नहीं है जितनी अधिक स्तब्ध इस विधानसभा सीट पर हुए उप चुनाव में अपनी सीट पर अपने प्रत्याशी की जमानत तक न बचा पाने से है।
रजौरी गार्डन विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में आप की शर्मनाक स्थिति ने केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया है। इस हार के बाद पार्टी नेतृत्व ने गहन चिंतन मंथन के बाद अपनी अब तक की मोदी के खिलाफ सीधे प्रहार करने की अब तक की चुनावी रणनीति को बदलने का मन बना लिया है। आप ने अब अपने चुनावी प्रचार की भाजपा व कांग्रेस को कोसने वाली रणनीति को बदल कर दिल्ली सरकार में अब तक किये अपने कार्यो व अपनी कार्य योजनाओं पर ही केन्द्रीत करने का मन बना लिया है।
राजनीति के मर्मज्ञ इस बात को बखुबी से जानते है कि केजरीवाल व आम आदमी पार्टी के उदय से लेकर दिल्ली सरकार में आसीन होने के राजनैतिक सफर में आप की राजनीति पूरी तरह विरोधियों पर तीखे प्रहार करने पर ही केन्द्रीत रहा। लोकसभा चुनाव से लेकर दिल्ली विधान सभा की रजौरी गार्डन में हुए उपचुनाव तक आप ने प्रधानमंत्री मोदी पर तीखे प्रहार किये। दिल्ली विधानसभा चुनाव को छोड़ कर कहीं भी आप को सफलता हासिल नहीं हुई।
मोदी पर तीखे प्रहार करने के बाबजूद  पंजाब व गोवा की विधानसभा चुनाव में सत्तासीन होने की हुंकार भरने वाली आम आदमी पार्टी की आशाओं पर ऐसा बज्रपात हुआ कि लोग आम आदमी पार्टी के राजनैतिक भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लगाने लगे। भले ही पंजाब व गोवा के चुनावों की हार के झटके से बचने के लिए अरविंद केजरीवाल ने उप्र विधानसभा चुनाव में शर्मनाक पराजय को बसपा प्रमुख मायावती की तरह ही मतदान मशीनों में छेडछाड़ को ढाल बना कर ढक लिया हो। परन्तु दिल्ली विधानसभा की रजौरी गार्डन  विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में मिली शर्मनाक हार ने आप नेतृत्व को एक प्रकार से जमीन ही सुंघा दी।
रजौरी गार्डन की हार के बाद आप नेतृत्व ने गंभीरता से आप के अस्तित्व पर उठ रहे सवालों का जवाब देने के लिए हर हाल में दिल्ली नगर निगम के चुनाव जीतने के लिए कमर कस ली। आप नेतृत्व को समझ में आ गया कि अगर आप को राजनीति में मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करानी है तो उसे पंजाब, गोवा व रजोरी गार्डन की हार के बाद आप को विजयी होना अति आवश्यक है। अन्यथा लोग इसे हारी पार्टी समझ कर कांग्रेस की तरह ही नजरांदाज कर हाशिये में धकेल सकते है।
इसी माह 23 अप्रैल को होने वाले दिल्ली नगर निगम के चुनाव में दिल्ली विधानसभा की तर्ज पर जीतने के लिए दिल्ली की आधी जनसंख्या के हिस्सेदार उप्र, बिहार व उत्तराखण्ड के दिल्ली वासियों का साथ जरूरी है। पांच राज्यों के लिए हुए उप चुनाव में जिस प्रकार से उप्र व उत्तराखण्ड में चली मोदी की सुनामी से जो अभूतपूर्व बहुमत भाजपा को मिला उसका अहसास केजरीवाल व आप को रजोरीगार्डन विधानसभा उपचुनाव में आप प्रत्याशी की जमानत जब्त होने के बाद समझ में आ गया। आप नेतृत्व को आशंका है कि मोदी मय हो चूके उप्र व उत्तराखण्ड में चली मोदी की आंधी का कहीं न कहीं कुछ असर दिल्ली की आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले उप्र व उत्तराखण्ड के लोगों में जरूर होगा। इसलिए मोदी पर सीधे प्रहार करके कहीं उप्र व उत्तराखण्ड के लोगों का समर्थन खोने व  नकारात्मक प्रचार से अन्य लोगों के भी नाराज होने की आशंका से सजग हो कर आम आदमी पार्टी ने यह सावधानी बरतने की मन बना लिया है। आप को इस बात का अहसास हो गया है कि मोदी को गरिया कर आप को लाभ होने के बजाय नुकसान अधिक हो रहा है। शायद इसी सच्चाई से रूबरू होने के कारण आप ने मोदी को गरियाने से तौब्बा कर लिया।

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