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नैनीताल (प्याउ)। सत्तासीन होने के बाद त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा 1 अप्रैल को श्री बदरी केदार मंदिर समिति को भंग करने के निर्णय पर उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने से प्रदेश सरकार को करारा झटका लगा है। न्यायालय ने नयी समिति के गठन पर रोक लगाते हुए सरकार से जवाब तलब किया है कि क्यों मंदिर समिति को भंग की गयी। उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति संुधाशु धूलिया की एकलपीठ ने सरकार द्वारा मंदिर समिति के अधिनियम 1939 की धारा 11 (2-क) के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए समिति को बिना कराण बताये भंग कर दी थी।
सरकार के इस कदम के खिलाफ मंदिर समिति के सदस्य दिनकर बाबुलकर और दिवाकर चमोली ने सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर करते हुए कहा कि नई सरकार ने बिना कारण बताये समिति को मंदिर समिति के लिए बने अधिनियमों का उलंधन किया है।
देखा यह जाता है कि प्रायः नयी सरकार सत्तासीन होते ही पूर्व सरकार द्वारा आसीन किये गये समितियों, आयोगों व अन्य पदों का कार्यकाल पूरा होने देने के बजाय छुद्र राजनीति के तहत इनको भंग कर अपने लोगों को इन पदों पर आसीन करते है। इससे ही ऐसी स्थितियां उत्पन्न होती है।
गठन पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होगी। सरकार ने एक अप्रैल को समिति भंग कर दी थी। मंदिर समिति के सदस्य दिनकर बाबुलकर और दिवाकर चमोली ने सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। इसमें कहा गया है कि प्रदेश की नई सरकार ने बिना कारण बताए समिति भंग कर दी है। सरकार के आदेश में मंदिर के लिए बने अधिनियम के प्रावधान का उल्लंघन हुआ है। इसमें निर्वाचित समिति तीन साल का कार्यकाल पूरा करती है। मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने सरकार से पूछा है कि मंदिर समिति भंग करने की क्या जरूरत थी ? कोर्ट ने नई समिति के गठन पर मंगलवार तक रोक लगाते हुए सरकार से जवाब मांगा है। बता दें कि शासन के संस्कृति धर्मस्व व तीर्थाटन प्रबंधन एवं धार्मिक मेला प्रभारी शैलेश बगौली ने एक अप्रैल को समिति भंग करने के आदेश दिए थे। इसमें मंदिर के लिए बने अधिनियम 1939 की धारा 11 (2-क) के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह कार्रवाई करने की जानकारी दी गई थी। इसके बाद से धर्मस्व सचिव यानी बगौली को इसका प्रशासक नियुक्त कर दिया गया था। फिलहाल मंगलवार तक सरकार नई समिति का गठन नहीं कर सकेगी।