उजड रहे उत्तराखंड को बचाने के लिए सरकार को गैरसैंण के साथ शिक्षा और चिकित्सा को करना होगा साकार
देहरादून (प्याउ) स्पेशल रिपोर्ट –भले भले ही विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व बहुमत के साथ सत्तासीन हुई भाजपा की त्रिवेंद्र रावत की सरकार प्रदेश के चहुमुखी विकास करने की हुंकार भर रही है रही है जमीनी सच्चाई यह है कि जब तक प्रदेश सरकार व नौकरशाह देहरादूनी अंध मोह से उबर कर गैरसैण में राजधानी बनाने , दम तो चुकी शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था को जीवंत करने का काम नहीं करेगी तब तक सरकारी तमाम दावे हवाई ही साबित होंगे।
इसलिए भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार को अगर ईमानदारी से प्रदेश का मूल विकास करना है तो उसे सबसे पहले गैरसैंण, शिक्षा और चिकित्सा पर युद्धस्तर पर ध्यान देना ही होगा।सरकार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जारी उस फरमान को अमलीजामा पहनाना होगा जिसके तहत उच्च न्यायालय ने सरकारी कर्मचारियों को अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में शिक्षा देने का फरमान जारी किया है।
उत्तराखंड में पर्वतीय जनपदों में पलायन केवल रोजगार के लिए ही नहीं अपितु पलायन अच्छे स्कूल व चिकित्सालय ना होने के कारण भी हो रहा है ।पहले ही पलायन केवल रोजगार के लिए होता था। 1990 तक यहां की सरकारी स्कूलों की हालत वर्तमान में महानगर की नामी निजी स्कूलों की तरह ही अच्छे थे ।
पर सबसे सरकारों और नौकरशाहों में सरकारी विद्यालयों की जान बूझकर उपेक्षा कर निजी विद्यालयों को बढ़ावा देने की राष्ट्रपति नीति अपनाई तब से उत्तराखंड ही नहीं देश में शिक्षा का स्तर हर जगह दिन-प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है।इससे उत्तराखंड मैं एक नई समस्या देखने देखने को मिल रही है कि बहुएं या बुजुर्ग बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के नाम पर नैनीताल देहरादून या जिला मुख्यालय सहित कस्बाई शहरों में रहने लग गए हैं।इससे गांव से पलायन तेजी से बढ़ रहा है और लोगों में इस प्रकार गांव के लोगों में बच्चों को बाहर पढ़ाने की एक प्रतियोगिता सी हो रही है जो पलायन को बढ़ा रही है।
जो सरकार खुद उत्तराखंड की राजधानी गैरसेंण बनाने के लिए तैयार नहीं है, यानी खुद पहाड़ चढने के लिए तैयार नहीं है ।तो ऐसी सरकारें अध्यापकों और चिकित्सकों को क्या पहाड़ चढ़ायेगी।