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बेटे के सन्यासी व क्रांतिकारियों बनने की बेदना गोपीचंद, विवेकानंद, सावरकर, नेताजी, भगतसिंह, मोदी व योगी के परिजनों से बेहतर कौन जान सकता?

 बेटे के सन्यासी व क्रांतिकारियों बनने की बेदना गोपीचंद, विवेकानंद, सावरकर, नेताजी, भगतसिंह, मोदी व योगी के परिजनों से बेहतर कौन जान सकता?
देहरादून (प्याउ) स्पेशल रिपोर्ट – शपथग्रहण समारोह से सैकड़ों किमी दूर रह कर योगी आदित्यनाथ के सफल कल्याणकारी राज की कामना कर रहे है माॅ, पिता व परिवार
बेटे के सन्यासी व क्रांतिकारियों बनने की बेदना गोपीचंद, विवेकानंद, सावरकर, नेताजी, भगतसिंह, मोदी व आदित्यनाथ के परिजनों से बेहतर कौन जान सकता? परिवार सहित अपना सर्वस्व त्याग कर जग कल्याण के मार्ग पर चलने वाले सन्यासियों, क्रांतिकारियों के विछोह की वेदना उनके माॅ बाप व परिजनों के अलावा खुद सन्यास व क्रांतिकारियों से बेहतर कौन जान सकता। योगी आदित्यनाथ के उप्र के मुख्यमंत्री बनने से भावविभोर हैं उनके पिता आनंद सिंह बिष्ट, मातां सावित्री देवी, बडे भाई मनेन्द्र मोहन बिष्ट व छोटे भाई महेन्द्र मोहन बिष्ट सहित पूरा परिवार को विश्वास है कि योगी आदित्यनाथ के राज में उप्र में अमन चैन हो और बिना भेदभाव से सबका विकास हो। माॅ व पिता के लिए बेटा चाहे कितने बडे पद पर पंहुच जाये उनके लिए बेटा ही होता है। परन्तु बेटे के सन्यास ग्रहण करने के बाद जो लक्ष्मण रेखाये है उसका निर्वहन करते हुए वे बेटे को अपनी ममता व अपनत्व की छांव में रखने के बजाय उनको अपना सन्यास धर्म के पालन करने में साहयक बन दूरी बनाये रखते है। मैने खबरिया चैनल के सहयोग से देखा केसे योगी आदित्यनाथ के पिता माॅ व सभी परिजनों के आंखों में खुशी के आंसू थे। मैने देखा कैसे सन्यासी सा जीवन यापन करने वाले मोदी जी अपनी माॅ, पत्नी व परिजनों से दूरी बनाते है। अपनो से दूर रहने की वेदना क्या होती है यह योगी व मोदी से बेहतर कौन जान सकता होगा।
भले ही सन्यासी अपना सर्वस्व होम करके सन्यासी बनता है परन्तु उसके परिजनों तो उसमें अपना अंग के रूप ही देखते है। बहुत कम सौभाग्यशाली
जहां एक तरफ लखनऊ में योगी आदित्य की ताजपोशी होने जा रही है। वहीं सैकडो किमी दूर पौड़ी जनपद के यमकेश्वर क्षेत्र के पंजूर गांव में योगी आदित्यनाथ के माता पिता सहित पूरे परिजन भले ही शपथ ग्रहण में सम्मलित होने के बजाय अपने गांव में ही योगी आदित्यनाथ के कल्याणकारी राज की कामना करते है। परिवार को कोई सदस्य इस शपथ ग्रहण समारोह में सम्मलित नहीं है। क्योंकि सन्यास लेने के बाद उनका अजय अब योगी आदित्यनाथ बन गया। सन्यास ग्रहण करने के बाद पूरा संसार ही उसका अपना परिवार हो जाता है। रिश्ते नाते व सांसारिक सम्बंधों को त्याग करने के साथ खुद अपना नाम, जाति, क्षेत्र सबके साथ जीते जी अपना खुद का पिण्डदान करके सन्यास ग्रहण किया जाता है।
सन्यासी होते हैं जो मोदी व योगी की तरह संसार सफल होते है। नहीं ंतो माॅ बाप परिजन इनकी एक झलक देखने के लिए तरस जाते है। भले ये सन्यासी अपना सर्वस्व होम कर चूके होते परन्तु संन्यास ग्रहण करने की स्मृतियां उसके मन में रह रह कर वर्तमान होने के लिए उसे तडफाती है पर इन भावनाओं पर निर्ममता से अंकुश रखना ही सबसे बड़ी साधना व चुनौती होती है।
मैने पढ़ा नरेन्द्र से विवेकानंद, राजा से फकीर गोपीचंद, रामतीर्थ, नेताजी, सावरकर, भगतसिंह के परिजनों की व्यथा। इस जनकल्याण के लिए खुद को होम करने वाले सन्यासियों व क्रांतिकारियों को एक सफल व्यक्ति बनाने की तमाम आशाओं व अपेक्षाओं को जमीदोज हो कर इन्हें सन्यासी व क्रांतिकारियों के रूप में देखते हैं तो कितनी मानसिक व शारीरिक वेदना झेलनी पड़ती है। अपने सपनों, इच्छाओं, कामनाओं व रिश्तों आदि का सर्वस्व को बलिदान करके अपने जगतकल्याण के लक्ष्य को पाने के लिए समर्पित रहते है।

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