आस्ट्रेलिया, अमेरिका व ब्रिट्रेन पलायन कर रहे हैं दुनिया के करोड़पति
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बेहतरी के लिए संदियों से पलायन करता रहा इंसान
प्यारा उत्तराखण्ड स्पेशल रिपोर्ट : दुनिया में 2016 में 82000 धनकुवैर पलायन कर दूसरे देशों में बसे। सबसे अधिक 11000 आस्ट्रेलिया, 10000 अमेरिका व 3000 ब्रिट्रेन गये
जबकि सन् 2015 में धनकुवैरों का अपना देश छोड़ कर विदेश में बसने की संख्या 64000 थी। न्यू वर्ल्ड वेल्थ द्वारा जारी एक आंखें खोलने वाले अध्ययन के अनुसार धन कुवैरों को विदेशों में बढ़ने की रफ्तार निरंतर बढ़ रही है। आस्ट्रेलिया में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली संसार में सबसे बेहतर होने के लिए आस्ट्रेलिया को सबसे अधिक अरबपति बसने की प्राथमिकता देते है।
उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद प्रदेश के 3000 से अधिक गांव उजड़ गये हैं लाखों घरों में ताले लग गये है। पर इन आंकडों के लिए आंसू बहाने वालों को शायद यह नहीं मालुम होगा कि पलायन इंसान की मूल प्रवृति है।
कुछ लोग पलायन के पीछे क्षेत्र में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार इत्यादि सुविधाओं के अभाव के कारण पलायन होना मानते है। परन्तु ऐसा तर्क देने वालों ने शायद दिल्ली के बसंत कुंज, ग्रेटर कैलाश, महारानी बाग, लुटियन जोन के क्षेत्रों से हो रहे अरबपतियों के विदेशों को पलायन का भान नहीं होगा। ना ही ऐसा तर्क देने वालों की नजर में भारत का सबसे उपजाऊ क्षेत्र शामली सहित पश्चिम उत्तर प्रदेश के गांवों के समृद्ध किसानों की तरफ नजर दौड़ाई होगी। इसी सप्ताह भारतीय भाषा आंदोलन में शामली क्षेत्र के वरिष्ठ जाट नेता चैधरी सहदेव पुनिया जी आये थे, वे बता रहे थे कि उनके गांव में एक हजार मतदाता है। खुद उनके परिवार में 250 मतदाता है पर अधिकांश गांव से बाहर दूसरे प्रदेशों में रहते है। जबकि यह गन्ना का क्षेत्र देश के सबसे समृद्ध किसानों के लिए जाना जाता है। वहां पर शिक्षा अंग्रेजों के जमाने से पहले से थी। दयानंद सरस्वती द्वारा आर्य समाज का व्यापक प्रसार होने के कारण यहां शिक्षा व समाजिक मूल्यों के प्रति बेहद जागरूक व संगठित है। वहां पर भी पलायन है। दिल्ली व शामली में शिक्षा, बिजली, पानी, विद्यालय, चिकित्सा व रोजगार का देश के अन्य क्षेत्रों से कही गुना बेहतर स्तर है। पर यहां भी पलायन हो रहा है।
हाॅ कुछ लोग हिमाचल का उदाहरण दे सकते हैं, हिमाचल में परमार व वीरभद्र जैसे जनहित के लिए काम करने वाले नेता रहे। वहीं हिमाचल के लोगों को अपनी जन्मभूमि से ऐसा ही प्यार देखने को मिलता है जैसे राजस्थान के लोगों को। केसी भी विकट स्थिति हो पर अपनी जमीन से मुंह नहीं मोड़ना। परन्तु उत्तराखण्ड समाज में यह प्रवृति बिलकुल उल्टी है। पक्षियों की तरह पंख निकलने के बाद घोसले को फिर मुड कर नहीं देखते। उत्तराखण्ड की आम जनता तो प्रदेश से विमुख नहीं होती परन्तु मुरली मनोहर जोशी, अजित डोभाल जैसे असंख्य बडे लोग है जो अपनी जन्मभूमि के प्रति उदासीन नजरिया रखते है। नेताओं की इसी मनोवृति से उत्तराखण्ड की स्थिति अधिक विकट हे। परन्तु कुछ ऐसे भी जागरूक गांव उत्तराखण्ड में है जहां पलायन बहुत कम है।
जनपद चमोली में नारायणबगड विकासखण्ड में रैस गांव में आज भी पलायन न के बराबर है। परन्तु अदूरदर्शी व बौनी सोच के कई गांवों के लोगों ने बंदर व जंगली पशुओं का बहाना बना कर यहां खेती बाडी छोड़ दी है। जबकि उत्तराखण्ड जैसी मोक्ष भूमि आने वाले दो दशक बाद लोगों को पांव रखने की जगह भी नहीं मिलेगी। आने वाले दशकों में मुम्बई व दिल्ली जैसे महानगर रहने योग्य नहीं रह जायेगे तब लोग प्रकृति के नजदीक जीना चाहेगे। उस समय उत्तराखण्ड सी बेहर धरती इस सृष्टि में कहीं दूसरी जगह उपलब्ध नहीं होगी। परन्तु दुर्भाग्य यह रहेगा कि उस समय तक जो लोग आज अपने गांवों को छोड़ रहे हैं उनको वहां पर पांव रखने के लिए भी जगह नहीं मिलेगी। क्योंकि बंगलादेशी व अन्य घुसपेटियें वहां भारी तादाद में बस चूके है। इनका बर्चस्व होते ही देवभूमि कश्मीर की तरह बताही के गर्त में धंस जायेगी।
हालांकि इंसान अधिक बेहतरी या खुशी की खोज में वह दुनिया भर में भटकता रहता है। जो जहां है वह वहां से बेहतर जगह बसना चाहता है। यह अंतहीन चाहत है। गांव वाले, ंिजला में, जिला वाले प्रदेश की राजधानी में और प्रदेश की राजधानी वाला दिल्ली, मुम्बई आदि महानगरों में बसना चाहता है। पर दिल्ली जेसे महानगर के सबसे मंहगी बस्ती दक्षिण व मध्य दिल्ली के ग्रेटर कैलाश, डा अब्दुल कलाम मार्ग, लोधी स्टेट, आदि बस्तियों में रहने वाले भी आस्ट्रेलिया, अमेरिका व ब्रिट्रेन जैसे शहरों में बस गये है। दिल्ली या मुम्बई के महलों में जहां लोग एक गज जमीन के लिए तरसते हैं वहां की अटालिकाओं में ताले लगा कर या चोकीदारों के भरोसे एक दो नहीं हजारों हजार लोग विदेशों में बसे हैं। उन अरबपतियों में से चंद ही अमेरिका के वाशिगंटन डीसी का भव्य महल छोड़ कर ंदिल्ली के फिरोजशाह रोड़ स्थित दीवान श्री अपार्टमेंट में आ कर बसने वाले अरबपति स्व. ध्यानी जी की तरह बहुत कम है जो अपनी जड़ों की तरलाश में फिर वापस आते हैं। वहीं रोजी रोटी या आजीविका के लिए विदेशों की खास छानने वालों में बहुत कम अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा की तरह ऐसे शौभाग्यशाली लोग होते है।
ओबामा के पिता ने वेवतन हो कर जीये पर उनके बेटे ने दुनिया में अमेरिका का राष्ट्रपति बन कर परचम लहरा दिया। इंसान की इस बेहतरी के लिए भटकने की प्रवृति ने आज इंसान को समुद्र के नीचे से लेकर आसमान पर चंद्रमाॅ से लेकर सुदूर अंतरिक्ष में भ्रमण इसी मनोवृति के कारण है। सुख की चाहत में इंसान का भटकाव इंसान को इतना थका देता है कि जब उसे इतने भटकने के बाद खुशी नहीं मिलती है या संतुष्टि नहीं मिलती है तो वह अंत में अपनी जड़डों में वापस लोटना चाहता है परन्तु तब तक उसे अपनी सरजमी पर न उसे धरती ही मिलती है व नहीं आसमान। केवल पश्चाताप के अलावा इंसान को कुछ नहीं मिलता है।