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कश्मीर में सत्ता की मलाई खाने वाले फारूख अब्दुला सत्ता से बाहर होते ही आतंकियों के पक्षधर हो गये

आतंकियों व देशद्रोहियों की भाषा बोल कर कश्मीर में भारतद्रोही तत्वों को प्रोत्साहन देने के लिए फारूख अब्दुला व उसकी पार्टी पर अंकुश लगाये सरकार

आतंकियों की हमदर्द रही महबूबा मुफ्ती की तरह ही फारूख, सत्ता के अंधमोह में भारतद्रोही आतंकियों को वे शहीद बताने की शर्मनाक हरकत कर रहे है।
इसके पिछे केवल व केवल भारतीय राजनीति का शर्मनाक पक्ष ही उजागर होता है जोे सत्ता के लिए देश, प्रदेश, समाज व न्याय का गला घोटने से पीछे नहीं रहते। कश्मीर से लेकर देश के महत्वपूर्ण पदों में आसीन रहे अब्दुला ने जब देखा की आतंकियों की हमदर्द रही महबूबा मुफ्ती भी से भाजपा जैसे राष्ट्रवादी पार्टी गठबंधन कर सत्तासीन हो सकती है तो वह क्यों नहीं सत्तासीन होने के लिए आतंकियों का हमदर्द न बने? इसी सत्ता के अंधमोह में भारतद्रोही आतंकियों को वे शहीद बताने की शर्मनाक हरकत जानबुझकर कर रहे है। उनको इसबात का कोई चिंता नहीं है कि इसके लिए कश्मीर की अमन शांति तबाह हो या हजारों लोग मारे जांय। फारूख हो या महबूबा या अन्य राजनेता इनको तो केवल कुर्सी चाहिए। कुर्सी के विछोह में ये आतंकी क्या इंसानियत के भी दुश्मन बन जाते है।

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