उत्तराखण्ड के हरे-भरे जंगलों के बीच चटक लाल रंग के बुरांश के फूलों का खिलना पहाड़ में बसंत ऋतु का सूचक है। बसंत के आते ही इन दिनों पहाड़ के जंगल के सूर्ख लाल फूलों से मानो लद गये है। बुरांश बसन्त में खिलने वाला पहला फूल है। बुरांश ने धरती के गले को पुष्पाहार से सजा सा दिया है। बुरांश के फूलने से प्रकृति का सौंदर्य निखर उठा है।
बुरांश जब खिलता है तो पहाड़ के जंगलों में बहार आ जाती है। घने जंगलों के बीच अचानक चटक लाल बुराँश के फूल के खिल उठने से जंगल के दहकने का भ्रम होता है। जब बुराँश के पेड़ लाल फूलों से ढक जाते है तो ऐसा आभास होता है कि मानो प्रकृति ने लाल चादर ओढ़ ली हो। बुराँश को जंगल की ज्वाला भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में बुराँश की महत्ता महज एक पेड़ और फूल से कहीं बढ़कर है। बुराँश उत्तराखण्ड के लोक जीवन में रचा-बसा है। बुराँश महज बसंत के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि सदियों से लोक गायकों, लेखकों, कवियों, घुम्मकड़ों और प्रकृति प्रेमियों की प्रेरणा का स्रोत रहा है। बुराँश उत्तराखण्ड के हरेक पहलु के सभी रंगों को अपने में समेटे है।
बुरांश ने लाल होकर भी क्रान्ति के गीत नहीं गाए। वह हिमालय की तरह प्रशंसाओं से दूर एक आदर्शवादी बना रहा। फिर भी बुरांश ने लोगों को अपनी महिमा का बखान करने पर मजबूर किया है। बुराँश ने लोक रचनाकारों को कलात्मक उन्मुक्तता, प्रयोगशीलता और सौंदर्य बोध दिया। होली से लेकर प्रेम, सौंदर्य और विरह सभी प्रकार के लोक गीतों के भावों को व्यक्त करने का जरिया बुराँश बना।
एक पुराने कुमाऊँनी लोक गीत में जंगल में झक खिले बुराँश को देख मॉ को ससुराल से अपनी बिटिया के आने का भ्रम होता है। वह कहती है – ”वहॉ उधर पहाड़ के शिखर पर बुरूंश का फूल खिल गया है। मैं समझी मेरी प्यारी बिटिया हीरू आ रही है। अरे! फूले से झक-झक लदे बुरूंश के पेड़ को मैंने अपनी बिटिया हीरू का रंगीन पिछौडा़ समझ लिया।” गढ़वाल के प्रसिद्व कवि चन्द्रमोहन रतूडी़ ने नायिका के होठों की लालिमा का जिक्र कुछ यूं किया है – ”चोरिया कना ए बुरासन आंेठ तेरा नाराणा।” यानि – ”बुराँश के फूलों ने हाय राम तेरे ओंठ कैसे चुरा लिये।” संस्कृत के अनेक कवियों ने बुराँश की महिमा को लेकर श्लोकों की रचना की है।
पहाड़ के रोजमर्रा के जीवन में बुराँश किसी वरदान से कम नहीं है। बुराँश के फूलों का जूस और शरबत बनता है। इसे हृदय रोग और महिलाओं को होने वाले सफेद प्रदर रोग के लिए रामबाण दवा माना जाता है। बुराँश की पत्तियों को आयुर्वेदिक औषधियों में उपयोग किया जाता है। बुराँश की