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चुनावी वादे व राष्ट्रहित को साकार करने में जुटी उप्र की योगी सरकार को देख कर आहें भर रहे हैं उत्तराखण्ड सहित देश की जनता

एक जिले में जन्मे, पढे, एक दल व एक ही समय सत्तासीन हुए दो मुख्यमंत्रियों में क्यों है आकाश पाताल का अंतर  

देवसिंह रावत

रामनवमी के राजकीय अवकाश के दिन जहां उप्र के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी से एक दिन पहले सत्तासीन हुए उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत दिल्ली से उत्तराखण्ड वासियों को रामनवमी की शुभकामनाए दे रहे थे, वहीं रामनवमी के दिन ही उप्र के मुख्यमंत्री योगी अपने पूरे मंत्रीमण्डल व पूरी नोकरशाही के साथ मिल कर उप्र चुनाव में किये गये चुनावी वादों को पूरा करने के साथ दशकों से राष्ट्र की संस्कृति को कलंकित करने वाले कत्लगाहों की ताबूत पर अंतिम कील ठोक रहे थे।
एक तरफ उप्र की योगी सरकार सदियों से लंबित समस्याओं का निदान व चुनावी वादे पूरा कर रही है ंवहीं दूसरी तरफ उत्तराखण्ड की सरकार गैरसैंण राजधानी बनाने के चुनावी वादे, व राज्य आंदोलन की सर्वसम्म राजधानी गैरसैंण बनाने से मुकर रहे हैं
यह संयोग है कि उप्र व उत्तराखण्ड में दोनों के मुख्यमंत्री एक ही समय में सत्तासीन हुए, एक ही जनपद में जन्मे व एक जनपद में शिक्षित हुए व एक ही दल से जुडे नेता है। पर चुनावी वादे व प्रदेश की ज्वलंत समस्याओं को समझने व उनका समाधान करने में जहां उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री उनको साकार करना तो रहा दूर उनको अपनी जुबान पर लाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं। उत्तराखण्ड राज्य गठन होने से पहले सुलझी हुई राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को स्वीकार करने की हिम्मत करना तो रहा दूर त्रिवेन्द्र रावत की सरकार इन विधानसभा चुनाव में गेरसैंण राजधानी बनाने के भाजपा के वचन को पलटने का काम कर रहे हैं। राजधानी गैरसैंण न बनने से पर्वतीय जनपदों से उजड़ रही शिक्षा, चिकित्सा व विकास के कारण हुए भारी पलायन का मर्म तक समझने को तैयार नहीं है। इस सीमान्त प्रदेश उत्तराखण्ड की रक्षा के लिए हिमाचल सहित तमाम हिमालयी राज्यों की तरह भू कानून बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए पंजाब व गुजरात की तर्ज पर नये आयोग का गठन का ऐलान करने की सुध तक प्रदेश सरकार को नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिन समस्याओं से घबरा कर अब तक की सात दशकों की सरकारें ठण्डे बस्ते में डालती रही, आदित्यनाथ योगी उनका दृढता से समाधान कर रहे हैं। योगी जहां उप्र जैसे घोर जातिवादी शासन व कुख्यात भ्रष्टाचारी तंत्र को साध कर उसे जनहित में लगा चुके है। वहीं उत्तराखण्ड के मंत्रीमण्डल को देख कर लोगों को विश्वास नहीं है कि भाजपा की यह सरकार ईमानदारी से भ्रष्टाचारियों को दण्डित करने की हुंकार भी भर सके। नक्कारा व कुख्यात नौकरशाही पर अंकुश कैसे लगा पायेगी त्रिवेन्द्र सरकार यह प्रश्न सुशासन की आश में कांग्रेस को सत्ताच्युत करने वाली जनता के दिलो व दिमाग में क्रोंध रहा है।

उप्र व उत्तराखण्ड सहित 5 राज्यों में गत माह हुए चुनाव के बाद भले ही देश के उप्र, पंजाब, उत्तराखण्ड, मणिपुर व गोवा में सरकारें सत्तासीन हुई। इस एक पखवाडे में जिस तेजी से जनहित में किये चुनावी वादों को पूरा करने साथ प्रदेश की दशकों से नहीं शताब्दियों से जटिल विवादस्थ समस्याओं के समाधान करने के लिए भी उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने युद्धस्तर पर काम किया, उसे देश कर न केवल उप्र की जनता अपितु देश की जनता को भी सुखद आश्चर्य हो रहा है। लोगों की जुबान पर एक ही आह है कि काश उनके प्रदेश को भी आदित्यनाथ योगी जैसा अपने वचनों व राष्ट्र हितों की रक्षा करने वाला मुख्यमंत्री होता।
हालांकि इसके लिए उप्र के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने मंत्रीमण्डल की बैठक की भी इंतजारी न करते हुए इन योजनाओं को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया था। अपनी इन घोषणाओं पर संवैधानिक मुहर लगाने के लिए मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने रामनवमी के दिन 4 अप्रैल को सरकारी अवकाश के दिन भी मंत्रीमण्डल की महत्वपूर्ण बैठक बुला कर प्रदेश की जनता को भगवान राम जी के प्रकटोत्सव के अवसर सरकार की तरफ से भैंट दी।
रामनवमी के दिन उप्र के मुख्यमंत्री योगी की सरकार ने प्रदेश के 2.5 करोड़ लघु व सीमान्त किसानों के एक लाख रूपये तक के कृर्षि कर्ज माफ किया। इसको पूरा करने के लिए सरकार को अतिरिक्त 36 हजार करोड़ रूपये जुटाने पडेंगे। प्रदेश ही नहीं देश की संस्कृति को दशकों से कलंकित कर रहे अवैध कत्लखानों व यांत्रिक पशुबधशालाओं को बंद करने का निर्णय पर मंत्रीमण्डल की मुहर लगायी। प्रदेश में बालिकाओं को प्रेम जाल में फांस कर बर्बाद करने वालों पर अंकुश लगाने का निर्णय लिया। वहीं प्रदेश की शिक्षा में सुधार के लिए किसी भी सरकारी अध्यापक को निजी टयूशन पढाने पर अंकुश लगाने, निजी विद्यालय व कालेजों पर मनमाना शुल्क लेने पर अंकुश लगाने के साथ 100 दिन में शिक्षा में आमूल सुधार करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया। किसानों को रवि की फसलों का उचित समर्थन मूल्य निर्धारित करने, खनिज व उद्योग व्यापार की नयी नीति बनाने के साथ आलू किसानों के हितों का संरक्षण करने पर भी निर्णय लिया। गाजीपुर में स्टेडियम, बुन्देलखण्ड में सिंचाई की योजनायें, पंचकोशी मार्ग, सहित कई जनहित के कार्यो का ऐलान किया। इसके साथ मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने देश की सबसे पुरानी व विवादस्थ समस्या रामजन्मभूमि विवाद को सुलझाने के लिए विचारविमर्श की राह को आगे बढ़ा दी है। इसके साथ मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के  अत्याचार से बचाने के लिए आदित्यनाथ योगी ने तमाम कटरपंथी तत्वों के विरोध को नजरांदाज करके साहसिक पहल की है।
लगता है कुछ ही दिनों में योगी उप्र में शराब पर भी पाबंदी लगा देगी वहीं उत्तराखण्ड की सरकार सर्वोच्च न्यायालय में राजमार्गो के किनारे से शराब की दूकाने हटाने के आदेश का सम्मान करने के बजाय उस पर पुनर्विचार की बात कर नशे में तबाह हो रहे उत्तराखण्ड की जागरूक जनता की आशाओं पर बज्रपात कर रही है।
भले ही उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व कांग्रेस योगी के कार्यो की सराहना करने का साहस न जुटा कर कहे कि यह गरीब किसानों के साथ धोखा है। भाजपा का किसानों से पूर्ण कर्ज माफी का वादा था  किसी सीमा का नहीं। एक लाख की सीमा से करोड़ों किसान ठगा सा महसूस कर रहे हैं। पर अखिलेश यह नहीं बता पा रहे हैं कि उनकी सरकार ने पांच सालों में किसानों के कर्ज क्यों माफ नहीं किये।
अभी एक माह से कम के योगी सरकार के कार्यकाल ने देश प्रदेश में जनहितों व देशहितों को रौंदने वाली सरकारों के कृत्यों से निराश जनता को आशा की किरण दिखाई देने लगी। आगे क्या होता है। पर यह सोलह आना सही बात है कि पूत के पांव पालने में ही दिखाई देते। उत्तराखण्ड सहित देश के सभी प्रांत की सरकारों को आदित्य योगी के जनहितों व राष्ट्रहितों को साकार करने की प्रवृति से प्रेरणा लेकर जनादेश का सम्मान करना चाहिए। न की अपनी हटधर्मिता व अज्ञानता से प्रदेश, दल व देश के कल्याण का बहुमुल्य समय बर्बाद करना चाहिए।

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