कोरोना की आयुर्वेदिक दवा को मान्यता न दे कर भारतीय चिकित्सा पद्धति व लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड
विदेशी चिकित्सा पद्धति द्वारा संचालित मंहगे अस्पतालों में इलाज के लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है
01जुलाई 2020 को -10,583,932पीडित और 513,861 मरे
भारत में कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए स्वामी रामदेव की दवा का सदप्रयोग करे सरकार
01जुलाई 2020
देवसिंह रावत
एक तरफ पूरा विश्व कई महिनों से कोरोना महामारी से भयाक्रांत है। महिनों तक पूरे विश्व का जनजीवन पूरी तरह ठप्प रहा। विश्व की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर चूकी है। एक करोड़ से अधिक लोग इस महामारी से पीडित है। 5 लाख से अधिक लोग इस महामारी से मौत के मुंह में समा चूूके है। संसार में प्रचलित व बलात थोपी गयी पश्चिमी चिकित्सा पद्धति के पास अभी तक इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। पर इस बीमारी का इलाज संसार की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में है तो उसको चिकित्सा के मठाधीश अपनी असफल चिकित्सा पद्धति के ही मापदण्डों पर उसे खरा न बता कर उसे मान्यता ही नहीं दे रहे है। जबकि इसका इलाज किसी भी पद्धति में हो तो उसका सदप्रयोग किया जाना चाहिए। परन्तु अपनी सत्ता पर ग्रहण लगने की आशंका से करोड़ों लोगों की जान की परवाह न करते हुए इसको समय पर मान्यता नहीं दी।
चिकित्सा मठाधीशों की इस सनके के कारण कोरोना महामारी से पीडित लोग या तो बिना इलाज पाये अपना दम तोड रहे हैं या मंहगे अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मजबूर है। गरीब आदमी असहाय है। वह कैसे इसकी जांच व इलाज इन मंहगे अस्पतालों में करायेगा। परन्तु इस महामारी पर अंकुश लगाने का इलाज विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में होने के बाबजूद भारत सहित विश्व के शासक व चिकित्सा मठाधीश आयुर्वेद द्वारा कोरोना महामारी पर अंकुश लगाये जाने वाली दवाई को मान्यता देने को तैयार नहीं है। परन्तु इसके बाबजूद भारत में इस महामारी से बचने के लिए आयुर्वेद का काढ़ा का ही प्रयोग कर रहे है। परन्तु कोरोना की आयुर्वेदिक दवा को मान्यता नहीं दे रहे है। इस कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने वाली दवाई को पिछले ही सप्ताह योग गुरू रामदेव की पतंजलि संस्थान ने किया था। परन्तु उनकी दवाई का सदप्रयोग करने के लिए युद्धस्तर पर इसकी जांच व इसका सदप्रयोग करने के बजाय उनके मार्ग में अवरोध खडा करके उन्हे एक प्रकार से खलनायक की तरह पेश करने लगे। भारतीय हुक्मरानों को चाहिए था कि आयुर्वेद द्वारा की गयी इस खोज की गुणवता का त्वरित जांच कर इसको विश्वस्तर पर सदप्रयोग करके भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति को वैश्विक मान्यता व गौरव प्रदान करते। इसके बजाय देश का संबंधित विभाग व मठाधीशों ने इस अवसर को गंवा कर भारत व भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद का बहुत बडा नुकसान कर दिया। इससे साफ हो गया कि देश में सरकार किसी की भी रहे यहां की नौकरशाही सुधरने का नाम नहीं लेती। उसे न तो देश की कोई चिंता है व नहीं देश की जनता के स्वास्थ्य की। उनका व्यवहार व कार्य अलोकतांत्रिक व राष्ट्रहितों की उपेक्षा करने वाला है।
विश्व में आयुर्वेद को स्थापित करने का जो बडा दुर्लभ अवसर आया था उसे देश के हुक्मरानों ने अपने हाथों से गंवा दिया। इनकी नजर में भारतीय संस्कृति, भारतीय चिकित्सा पद्धति, भारतीय भाषाओं व भारतीय दर्शन की कोई स्थान नहीं है। ये पूरी तरह से फिरंगी यानी पश्चिमी चिकित्सा पद्धति, उनकी भाषा व उनके ही दर्शन के कहार है।इन्हीं कहारों के दुराग्रह व सनके के कारण भारत में करोड़ों प्रतिभा जहां दम तोड़ देती है वहीं देश की संस्कृति,भाषा, चिकित्सा पद्धति सबका गला घोंटने का काम जबरन किया जाता। इसी कारण भारत अंग्रेजों से मुक्ति के 73 साल बाद भी अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी व अंग्रेजों के द्वारा बलात थोपे गये नाम इंडिया का गुलाम बना हुआ है। देश की भाषाओं में देश के नागरिकों को शिक्षा, रोजगार, न्याय वशासन नहीं मिलता। इससे देश की पूरी व्यवस्था में भारतविरोधियों का ही शिकंजा कसा हुआ है। जो न भारतीय संस्कृति, भाषा, इतिहास, चिकित्सा पद्धति व जीवन दर्शन को हेय समझ कर उनका तिरस्कार ही करते है।
अगर ऐसा अवसर अमेरिका के पास होता तो वहां के राष्ट्रपति अपने मठाधीशों की कोरोना की उपलब्ध दवा को नकारने की तमाम दलीलों को दरकिनारे करके उसी प्रकार से लागू करते जिस प्रकार उन्होने मलेरिया की दवा का प्रयोग करते समय किया। भारत व राज्य सरकारों में अगर जरा सा भी भारतीय हितों वाला विवेक होता तो वे तुरंत इसका युद्धस्तर पर जांच कर पूरे देश सहित विश्व में इसका सदप्रयोग करते। भारत सरकार के इस विषय के विभागों में हर साल करोड़ों रूपये खर्च किये जाते परन्तु वे ऐसा काम नहीं कर पाते जो पतंजलि व अन्य आयुर्वेदिक दवाईयों के ज्ञाता वैध जनसामान्य के कल्याण के लिए करते। इससे यह लगता है कि सरकारी विभाग देश की प्रगति को ही अवरूद्ध करने का ही इसी प्रकार काम करते रहते। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आयुर्वेदिक दवाओं से पश्चिमी चिकित्सा पद्धति की दवा की तरह शरीर में नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। जो दवाईयों का प्रयोग कोरोना की दवा में किया गया, उन गिलोय, तुलसी व अश्वगंधा से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता ही बढ़ती जो कोरोना से मुक्त करने में पीडित को सहायक ही होता। परन्तु पूरे विश्व में स्वास्थ्य जगत पर जिस प्रकार पश्चिमी चिकित्सा पद्धति का एकछत्र राज है। वह किसी दूसरे योग्य पद्धति को पेर रखने ही नहीं देती। ये दूसरों को मान्यता नहीं देते। जबरन कई प्रकार की हानिकारक दवाईयों का व्यापार कर जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड करते है पर जनता के कल्याण के लिए किसी अन्य पद्धति को इस क्षेत्र में रत्तीभर स्थान भी नहीं देते।
01जुलाई 2020को विश्व में कोरोना महामारी से पीड़ितों की संख्या 10,583,932है। इस महामारी से 513,861 लोग मौत के मुंह में समा गये है। तथा इस महामारी से उबरे लोगो की संख्या 5,794,565 है।
वहीं दूसरी तरफ भारत में कोरोना महामारी से पीडितों की संख्या 585,792 उपचार के बाद 347,836लोग स्वस्थ हो गये। इस महामारी से 17,410लोग मारे गये।
देश की राजधानी दिल्ली में ही कोरोना महामारी से पीड़ितों की संख्या 87360 व मृतकों की संख्या 2742 है। वहीं महाराष्ट्र में सबसे अधिक कोरोना पीड़ितों की संख्या174761 है जिसमें 7855 मृतक भी हैं।
सबसे हैरानी की बात यह है कि पूरे विश्व में सवा पांच लाख के करीब लोग इस महामारी से मारे जा चूके हैं।कोरोना से अमेरिका में 2596770लोग पीडित है और 130,122 लोग मौत के मुंह में समा गये। वहीं ब्राजील दूसरे नम्बर पर सबसे अधिक पीडित देश बन गया जहां कोरोना महामारी से 59,656 लोग कोरोना महामारी से मारे जा चूके है। वहीं ब्रिटेन में कोरोना से 43,730लोग मारे गये। कोरोना से इटली में 34716 , स्पेन में 28341 व फ्रांस में 29778 लोग मारे गये।
परन्तु संसार में अभी तक स्वास्थ्य के उपचार करने में तमाम दावे इस बीमारी के आगे परास्त हो गये है। भारत तो रहा दूर अमेरिका व यूरोप जैसे विकसित देशों ने भी इस बीमारी के आगे जिस प्रकार से नतमस्तक हो गये है। उसको देख कर विश्व के स्वास्थ्य पद्धति पर ही सवालिया निशान लग गया। वहीं भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में इस प्रकार के बीमारी पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे तमाम जड़ी बुटियां हैे,जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर इस रोग पर अंकुश लगाते है। परन्तु भारतीय हुक्मरानों ने भारतीय शिक्षा, चिकित्सा व जीवन दर्शन की उपेक्षा कर भारतीयता को ही जमींदोज करने का ही काम किया।
अगर भारतीय चिकित्सा पद्धति का सदप्रयोग किया होता तो आज न केवल भारतीयों का अपितु विश्व के साढे पांच लाख लोगों की भी जान बचती। भारतीय चिकित्सा पद्धति को कितना कम कर आंकते है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण योगाचार्य रामदेव की पतंजलि संस्थान द्वारा कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने की बनायी गयी दवा की त्वरित जांच व सदप्रयोग करके जनता की जान की रक्षा करती सरकार। परन्तु सरकारी संस्थान सकारात्मक रूख अपनाने की जगह वहीं थोकदारी रूख अपना रहा है जिससे केवल अवरोधक ही खडे हों। हां अगर यह दवा गलत साबित होती तो रामदेव व उनकी कंपनी को दंडित किया जाता। जब सरकार स्वास्थ्य आपातकाल में चिकित्सालयों को एक दिन का हजारों रूपये को वसूलने पर रोक नहीं लगाते। विदेषी तमाम प्रतिबंधित दवाईयों व हवाई दावा करने वाले भ्रामक लेपों व दवाईयोंपर रोक नहीं लगाती तो एक कुप्रभाव न करने वाली भारतीय साधु की सरकारात्मक दवाई पर सरकार का रवैया किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।
सरकार की इस मनसा को बांटने के बाद पतंजलि योगपीठ ने भी उन्हें के हिसाब से अपना रुख बदला पतंजलि योगपीठ के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि हमने यह दावा नहीं किया कि यह करुणा की दवाई है अभी तो हम ने यह कहा इस दवाई को खाने से करना कि भी पीड़ित स्वस्थ हो रहे हैं यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक दवाई है जिससे खाकर कोरोना पीड़ित भी ठीक हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि 23जून 2020 को हरिद्वार में स्वामी रामदेव की सरपरस्ती वाले पतंजलि संस्थान ने इस कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास किया। जिसे उन्होने आयुर्वेद विजय कोरोनिल श्वासारि कोरोना की एविडेंस बेस्ड प्रथ्म आयुर्वेदिक औषधि, श्वासारि वटी ,कोरोनिल का संपूर्ण साइंटिफिक डाक्यूमेंट के साथ पतंजलि योगपीठ हरिद्वार से लॉन्चिंग व लाइव प्रेस वार्ता की। इसका भारत की सरकार सहित राज्य सरकारों ने स्वागत करना चाहिए था। परन्तु देश के विकास को आगे बढाने व अपने दायित्व का निर्वाह करने के बजाय सरकारी संस्थान ने वहीं इंस्पेक्टरी नजरिया अपनाया। अवरोध खडा किया।
इसके बाद बाबा रामदेव ने 1 जुलाई को हरिद्वार में अपने पतंजलि संस्थान में संवाददाता सम्मेलन करते हुए अपने संस्थान द्वारा कोरोना रोग पर अंकुश लगाने के लिए की गयी दवा कोरोनिल पर उपजे विवाद में पतंजलि के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण की उपस्थिति में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होने समाज, देश व आम जनता को रोगमुक्त करने के लिए जो काम किया उसको आयुष मंत्रालय ने भी सराहना करते हुए कहा कि कोरोना दवा पर अच्छी पहल की। बाबा रामदेव ने कहाकि उन्होने दवा से जुडी पूरी अनुसंधान को मंत्रालय को सौंप दिया। उनके संस्थान ने गिलोय, तुलसी व अश्वगंधा का मिश्रण से कोरोना की दवा का निर्माण किया। बाबा रामदेव ने कहा कि आयुर्वेद में गुणों के आधार पर दवा का पंजीकरण किया जाता। उनके संस्थान द्वारा कोरोना की दवा पर काम अब और बढाया जा रहा है। कोरोनिक दवा पर क्लीनिकल कंट्रोल पूरे मापदण्डों के अनुरूप किया गया।
यही नहीं बाबा रामदेव ने कहा कि उनके मार्गदर्शन में भारत ंकी सनातन योग व प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से लाभ लेकर हजारों उच्च रक्तचाप, हृदयघात, लीवर, अर्थराइटिस, मधमेय, डेंगू चिकिनगुनिया व अस्थामा आदि रोगों के पीड़ित रोगमुक्त कर चूके है। ऐसे ही अनैक कोरोना पीड़ित उनके संस्थान की दवाओं से रोगमुक्त हो चूके है। बाबा रामदेव ने कहा कि इस देश सहित विश्व में जो आयुर्वेद को स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। आज भी जब पतंजलि ने कोरोना महामारी पर कोरोनिक दवा पीडितों के कल्याण के लिए लाया तो भारत, भारतीय संस्कृति व भारतीय चिकित्सा पद्धति को हेय समझने वालों को यह सहन नहीं हुआ। हमें आयुर्वेद की दवाओं को भी मान्यता देनी चाहिए। उन्होने कोरोनिल व श्वासारी बटी व अणु तेल को आगे बढाया जायेगा। कोरोनिल की दवा को जनहित मे आगे बढाया जायेगा। बाबा रामदेव ने कहा कि उनके जाति, धर्म, आदि पर सवाल उठाये गये।
सरकारी संस्थान का दायित्व है कि ऐसी आपात स्थिति में देश की किसी प्रतिभा ने ऐसी दवा का निर्माण किया तो उसका स्वागत कर उसकी गुणवता की जांच कर उसमें जो भी कमी हो उसमें सुधार कर जनहित के लिए इसे जारी किया जाता। जो दवाई रामदेव द्वारा प्रचारित की गयी। वह दवाई इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा ही करती। इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव पीडित पर नहीं पडता। अगर दवाई 50 प्रतिशत भी प्रभावी रहती तो उन्हे अमेरिका की राष्ट्रपति की तरह अपने प्रभाव का इस्तेमाल ठीक उसी तरह से करते जिस प्रकार उन्होने मलेरिया की दवाई का भारत से आयात करते हुए किया। उनके स्वास्थ विषेशज्ञ इसका भी विरोध कर रहे थे परन्तु ट्रंप ने अपने विश्वास व अपनी जिम्मेदारी को समझ कर मलेरिया की दवाई का भारी मात्रा में आयात किया। सरकारी विभागों को थोकशाही के बजाय जनसेवा करने के अपने दायित्व का ही निर्वाह करना चाहिए। उन्होने इस दवाई के बाद युद्धस्तर पर इसकी जांच करने तथा इसका सदप्रयोग करने का काम करते। इससे पूरे देश को अरबों खरबों का लाभ होता। परन्तु ना खुद कुछ करना व जो कुछ कर रहा है उसको भी न करने देना यही हमारी मूल प्रवृति बन गयी है। इसी कारण देश का विकास अवरूद्ध हो गया है।