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आयोडीन की कमी से वृद्धि और विकास पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, यह निदान योग्य बौद्धिक अक्षमता का है सबसे आम कारण

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विश्व आयोडीन अल्पता दिवस


जागरूकता और कार्रवाई के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाना

Posted On: 20 OCT 2024 4:22PM by PIB Delhi

भूमिका

 

विश्व आयोडीन अल्पता दिवस, जिसे वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस भी कहा जाता है, प्रतिवर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में आयोडीन की आवश्यक भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना और आयोडीन की कमी के परिणामों पर बल देना है। यह दस्तावेज़ दैनिक पोषण में आयोडीन के महत्व और इसकी कमी संबंधी विकारों को रोकने में आयोडीन के महत्व को रेखांकित करता है।

 

 

आयोडीन क्या है

 

आयोडीन थायराइड हार्मोन, थायरोक्सिन (टी4) और ट्राईआयोडोथायरोनिन (टी3) का एक आवश्यक घटक है, जो चयापचय को नियंत्रित करता है और भ्रूण तथा शिशु के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। खाद्य पदार्थों और आयोडीन युक्त नमक में पाया जाने वाला आयोडीन सोडियम और पोटेशियम नमक, अकार्बनिक आयोडीन (I2), आयोडेट और आयोडाइड सहित कई रूपों में मौजूद होता है। आयोडाइड, सबसे सामान्य रूप है जो पेट में तेजी से अवशोषित होता है और थायराइड द्वारा हार्मोन उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। अधिकांश अतिरिक्त आयोडाइड मूत्र के माध्यम से उत्सर्जित होता है।

 

आयोडीन की कमी से क्या होता है?

 

आयोडीन की कमी से वृद्धि और विकास पर कई प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं, यह निदान योग्य बौद्धिक अक्षमता का सबसे आम कारण है। अपर्याप्त आयोडीन के कारण थायराइड हार्मोन का उत्पादन कम होता है जिसके परिणामस्वरूप आयोडीन अल्पता वाले विकार   होते हैं। गर्भावस्था और प्रारंभिक शैशवावस्था के दौरान, आयोडीन की कमी से अपरिवर्तनीय दुष्परिणाम हो सकते हैं।

 

  • यदि किसी व्यक्ति का आयोडीन सेवन लगभग 10-20 एमसीजी प्रति दिन से कम होता है, तो यह स्थिति हाइपोथायरायडिज्म होता है। यह अक्सर घेंघा रोग के साथ होती है। घेंघा रोग सामान्य तौर पर आयोडीन की कमी का प्रारंभिक नैदानिक संकेत है।
  • आयोडीन की कमी की इस स्थिति में गर्भवती महिलाओं में भ्रूण में न्यूरोडेवलपमेंटल समस्या और विकास मंदता तथा गर्भपात और प्रसव के दौरान शिशु की मृत्यु होने का खतरा रहता है।
  • दीर्घकालिक और अत्यधिक आयोडीन की कमी से गर्भाशय में क्रेटिनिज्म की स्थिति बन जाती है, इसमें बौद्धिक अक्षमता, बधिर मूकता, मोटर स्पास्टिसिटी,  विलंबित विकास, विलंबित यौन परिपक्वता और अन्य शारीरिक तथा तंत्रिका संबंधी असामान्यताएं।
  • शिशुओं और बच्चों में आयोडीन की कमी से न्यूरोडेवलपमेंटल विकार जैसे- औसत से कम बुद्धि का विकास होता है, इसे IQ द्वारा मापा जाता है।
  • माताओं में हल्की से मध्यम आयोडीन की कमी से बच्चों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर का खतरा बढ़ जाता है।
  • वयस्कों में हल्की से मध्यम आयोडीन की कमी से घेंघा रोग हो सकता है साथ ही हाइपोथायरायडिज्म के कारण मानसिक विकार और कार्य उत्पादकता में कमी आती है।
  • दीर्घकालिक आयोडीन की कमी से थायरॉइड कैंसर के कूपिक रूप का जोखिम बढ़ जाता है।

आयोडीन

 

की कमी को दूर करने के लिए राष्ट्रीय प्रयास

 

आयोडीन की कमी के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभावों को पहचानते हुए भारत सरकार ने 1962 में राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम (एनजीसीपीके माध्यम से इस समस्या से निपटने के लिए राष्ट्रीय प्रयास शुरू किए। इस कार्यक्रम में आयोडीन की कमी से होने वाली विभिन्न समस्याओं जैसे– शारीरिक और मानसिक विकास में अवरोधबौनापन और जन्म के समय मृत्यु को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए।

 

1992 में, कार्यक्रम को व्यापक बनाया गया और इसका नाम बदलकर राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (एनआईडीडीसीपी) कर दिया गया। आयोडीन की कमी से होने वाले विभिन्न विकारों (आईडीडी) को नियंत्रित करने के लिए इस कार्यक्रम को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कार्यान्वित करना सुनिश्चित किया गया।

 

 

एनआईडीडीसीपी के प्राथमिक लक्ष्यों में शामिल हैं:

  • देशभर में आईडीडी के प्रसार को 5% से कम करना।
  • घरेलू स्तर पर पर्याप्त रूप से आयोडीन युक्त नमक (15 पीपीएम आयोडीन के साथ) की 100% खपत प्राप्त करना।

इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, यह कार्यक्रम कई प्रमुख उद्देश्यों पर केंद्रित है:

  • विभिन्न जिलों में आईडीडी की गंभीरता का आकलन करने के लिए सर्वेक्षण आयोजित करना।
  • प्रभावित क्षेत्रों में सामान्य नमक के स्थान पर आयोडीन युक्त नमक का प्रयोग।
  • आईडीडी पर आयोडीन युक्त नमक के प्रभाव को मापने के लिए हर पांच वर्ष में पुन: सर्वेक्षण आयोजित करना।
  • प्रयोगशाला परीक्षण के माध्यम से आयोडीन युक्त नमक की गुणवत्ता और मूत्र में आयोडीन उत्सर्जन की निगरानी करना।
  • आईडीडी को रोकने में आयोडीन की भूमिका के बारे में स्वास्थ्य शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा देना।

1984 में भारत में सभी खाद्य नमक को आयोडीन युक्त बनाने के लिए एक प्रमुख नीतिगत निर्णय लिया गया, इस पहल को 1986 से चरणबद्ध श्रृंखला के रूप में शुरू किया गया। 1992 तक, देश का लक्ष्य पूरी तरह से आयोडीन युक्त नमक में परिवर्तन करना था। भारत आज सालाना 65 लाख मीट्रिक टन आयोडीन युक्त नमक का उत्पादन करता है, जो इसकी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। वर्तमान में भी जारी यह राष्ट्रीय प्रयास आयोडीन की कमी को दूर करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (एनआईडीडीसीपी) की उपलब्धियाँ

 

राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (एनआईडीडीसीपी) के कार्यान्वयन से पूरे भारत में आयोडीन अल्पता विकार (आईडीडी) में कमी लाने में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं :

  • कुल घेंघा दर (टीजीआर) में कमी: इस कार्यक्रम से देशभर में आयोडीन की कमी के प्रमुख संकेतक घेंघा की कुल दर में काफी हद तक कमी आई है।
  • आयोडीन युक्त नमक उत्पादन और खपत में वृद्धि: आयोडीन युक्त नमक का उत्पादन सालाना 65 लाख मीट्रिक टन (एमटी) तक पहुंच गया है, जो भारतीय आबादी की आहार संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
  • विनियामक उपाय: खाद्य सुरक्षा और मानक (बिक्री पर प्रतिबंध और प्रतिबंध) विनियमन, 2011 के अधिनियम 2.3.12 के अंतर्गत, प्रत्यक्ष मानव उपभोग के लिए सामान्य नमक की बिक्री तब तक प्रतिबंधित है जब तक कि नमक आयोडीन युक्त न हो, राष्ट्रव्यापी आयोडीन युक्त नमक का उपयोग सुनिश्चित किया जाता है।
  • निगरानी प्रयोगशालाओं की स्थापना: आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशाला राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी), दिल्ली में स्थापित की गई है। साथ ही एनआईएन हैदराबाद, एआईआईएच एंड पीएच कोलकाता, एम्स और एनसीडीसी दिल्ली में चार क्षेत्रीय प्रयोगशालाएं भी स्थापित की गई हैं। ये प्रयोगशालाएँ आयोडीन के स्तर के लिए नमक और मूत्र परीक्षण का प्रशिक्षण, निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण करती हैं।
  • राज्य-स्तरीय कार्यान्वयन: 35 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने संबंधित राज्य स्वास्थ्य निदेशालयों में आईडीडी नियंत्रण कक्ष स्थापित किए हैं और इतनी ही संख्या में कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्य आईडीडी निगरानी प्रयोगशालाएं स्थापित की हैं।
  • सूचनाशिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियाँ: आईडीडी को रोकने के लिए नियमित रूप से आयोडीन युक्त नमक के सेवन के महत्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) अभियान चलाए गए हैं।

आयोडीन की कमी से निपटने के वैश्विक प्रयास

 

आयोडीन की कमी से निपटने के वैश्विक प्रयास महत्वपूर्ण रहे हैं, जिसमें आयोडीन अल्पता दिवस जैसी पहल प्रमुख है, जो थायरॉयड के कार्य, वृद्धि और विकास में आयोडीन की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है। वैश्विक स्तर पर, अनुमानित 1.88 अरब लोगों को अपर्याप्त आयोडीन सेवन का खतरा है, जिससे स्कूल जाने वाले लगभग 30% बच्चे प्रभावित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनिसेफ ने 1993 से सार्वभौमिक आयोडीनयुक्त नमक का समर्थन किया है, जिसके परिणामस्वरूप 120 से अधिक देशों ने आयोडीनीकरण कार्यक्रम अपनाया है। इन ठोस प्रयासों से पूरे भारत में आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों में उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।

निष्कर्ष

 

अंत में, विश्व आयोडीन अल्पता दिवस एनआईडीडीसीपी जैसी राष्ट्रीय पहल और डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ के नेतृत्व वाले वैश्विक प्रयासों के माध्यम से आयोडीन की कमी संबंधी विकारों को रोकने में हुई प्रगति की याद दिलाता है। निरंतरता और निगरानी लगातार सफलता सुनिश्चित करेगी, अंततः स्वस्थ आबादी और दुनिया भर में जीवन की गुणवत्ता में सुधार में योगदान देगी।

 

सन्दर्भ:

https://nhm.gov.in/images/pdf/programmes/ndcp/niddcp/revised_guidelines.pdf

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