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पोषण, आजीविका और वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्थाओं में डेयरी क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करने के एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में हर साल 1जून को मनाया जाता है विश्व दुग्ध दिवस

हर साल 1 जून को विश्व दुग्ध दिवस मनाया जाता है जो पोषण, आजीविका और वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्थाओं में डेयरी क्षेत्र के महत्वपूर्ण योगदान के प्रति आभार प्रकट करने का एक अवसर है। भारत में डेयरी सबसे बड़ी कृषि वस्तु है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5 प्रतिशत का योगदान देती है और 8 करोड़ से अधिक किसानों को सीधे रोजगार देती है। डेयरी क्षेत्र में भारत की प्रमुखता राष्ट्रीय और वैश्विक है, क्योंकि यह दूध उत्पादन में पहले स्थान पर है, जो दुनिया के कुल दूध उत्पादन में 25 प्रतिशत का योगदान देता है।

भारत में दूध उत्पादन पिछले एक दशक में उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है, जिसकी चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) 6 प्रतिशत है। यह उछाल 2018-19 में 187.30 मिलियन टन से 2022-23 में 230.58 मिलियन टन तक उत्पादन में वृद्धि से स्पष्ट है। इसके अलावा, एफएओ डेयरी मार्केट रिव्यू (2023) के अनुसार भारत में दूध उत्पादन 2023-24 में 236.35 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 2.5% की वृद्धि है, जो दूध उत्पादन में विश्व औसत विकास दर को पीछे छोड़ देता है। यह वृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में 2023 में 1.3 प्रतिशत की वैश्विक दूध उत्पादन वृद्धि दर से काफी अधिक है, जो इस क्षेत्र में भारत के मजबूत विकास को दर्शाता है। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 2022-23 के लिए 459 ग्राम प्रतिदिन है, जो कि खाद्य आउटलुक जून 2023 में बताए गए वैश्विक औसत 322 ग्राम प्रतिदिन से काफी अधिक है। दूध की यह प्रचुरता न केवल भारत की विशाल आबादी की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करती है, बल्कि भारतीय डेयरी उद्योग की दक्षता और उत्पादकता को भी रेखांकित करती है।

भारत ने सहकारी क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इस क्षेत्र में 22 दुग्ध मंडल/उच्च निकाय, 240 जिला सहकारी दुग्ध संघ, 28 विपणन डेयरी, और 24 दुघ्य उत्पादन संगठन हैं। ये संगठन लगभग 2,30,000 गांवों को कवर करते हैं और 18 मिलियन डेयरी किसान इसके सदस्य हैं।

भारत के डेयरी उद्योग का एक उल्लेखनीय पहलू महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी है, जिसमें 35 प्रतिशत महिलाएं डेयरी सहकारी समितियों से जुड़ी हैं। देश भर में गांव स्तर पर 48,000 महिला डेयरी सहकारी समितियां चलाई जाती हैं जो समावेशी विकास को बढ़ावा देती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सशक्त बनाती हैं।

भारत में दूध उत्पादन पिछले दशक में सालाना लगभग 6 प्रतिशत बढ़ा है, जो 2022-23 में 231 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) तक पहुंच गया है। यह उल्लेखनीय वृद्धि भारत के डेयरी क्षेत्र की गतिशील प्रकृति को दर्शाता है। इसमें 303.76 मिलियन गोजातीय और 74.26 मिलियन बकरियों की विशाल पशुधन आबादी शामिल है। भारत को 536.76 मिलियन की कुल पशुधन आबादी के साथ दुनिया के सबसे बड़े पशुधन मालिक होने का गौरवशाली खिताब हासिल है।

पशुपालन और डेयरी विभाग दूध की बढ़ती मांग को पूरा करने और देश के ग्रामीण किसानों के लिए डेयरी व्यवसाय को अधिक लाभकारी बनाने के लिए गोजातीय पशुओं के दूध उत्पादन और उनकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सहायक योजनाओं और कार्यक्रमों को शामिल करके डेयरी उत्पादन की मदद कर रहा है।

1. राष्ट्रीय गोकुल मिशन दिसंबर 2014 में वैज्ञानिक समग्र तरीके से विशेष रूप से स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए शुरू किया गया है।

देश में पहली बार राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम (एनएआईपी) को वर्तमान कृत्रिम गर्भाधान क्षमता को 30% से बढ़ाकर 70% करने और किसानों के घर तक मुफ्त कृत्रिम गर्भाधान सेवाएं प्रदान करने के लिए लागू किया गया है। आज तक 7.13 करोड़ पशुओं को कवर किया गया है, 8.81 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं और इस कार्यक्रम के तहत 4.75 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं। गोजातीय आबादी के तेजी से आनुवंशिक उन्नयन को प्राप्त करने के लिए, पशुपालन और डेयरी विभाग द्वारा गोजातीय आईवीएफ तकनीक को बढ़ावा दिया जा रहा है। देश में अब 20 वीएफ प्रयोगशालाएं चलाई जा रही हैं और आज की तारीख तक, 21,068 व्यवहार्य भ्रूणों का उत्पादन किया गया है। इनमें से 11,583 भ्रूण स्थानांतरित किए गए और 1800 बछड़ों का जन्म हुआ। 90% सटीकता के साथ केवल मादा बछड़ों के उत्पादन के लिए देश में सेक्स सॉर्टेड वीर्य उत्पादन शुरू किया गया है। आज की तारीख तक, 8 वीर्य स्टेशनों पर उत्पादन सुविधा बनाई गई है और 100 लाख सेक्स सॉर्टेड वीर्य खुराक का उत्पादन किया गया है। दुनिया में पहली बार गोजातीय और भैंस नस्लों के सेक्स सॉर्टेड वीर्य का उत्पादन किया गया है।

2. राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम:

राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीडीडी) फरवरी-2014 से पूरे देश में कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य राज्य कार्यान्वयन एजेंसी (एसआईए) यानी राज्य सहकारी डेयरी संघ के माध्यम से दूध के गुणवत्तापूर्ण उत्पादन, खरीद, प्रसंस्करण और दूध एवं दूध उत्पादों के विपणन के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण/मजबूत करना है। दूध और दूध उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने और संगठित खरीद, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन की हिस्सेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से एनपीडीडी योजना को जुलाई 2021 में 2021-22 से 2025-26 तक कार्यान्वयन के लिए पुनर्गठित किया गया है।

इस योजना के तहत 17.45 लाख नए किसानों को डेयरी सहकारी समितियों की सदस्यता का लाभ दिया गया और परियोजनाओं के तहत 83.56 लाख लीटर अतिरिक्त दूध की खरीद की गई। लगभग 24.82 लाख लीटर प्रतिदिन नई दूध प्रसंस्करण क्षमता स्थापित की गई है और ग्राम स्तर के दूध संग्रह केंद्रों पर 94.12 लाख लीटर शीतलन क्षमता वाले 4193 बल्क मिल्क कूलर बनाए गए हैं। इसके अलावा, 6,022 इलेक्ट्रॉनिक दूध मिलावट परीक्षण मशीनें, दूध विश्लेषक के साथ 33,854 स्वचालित दूध संग्रह इकाई और 4017 दूध विश्लेषक दूध संग्रह स्थल पर ही दूध की जांच और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए स्थापित किए गए हैं। दूध और दूध उत्पादों में मिलावट का पता लगाने के लिए लगभग 233 डेयरी संयंत्र प्रयोगशालाओं को भी स्थापित किया गया है। दूध और दूध उत्पादों के अवशेषों, दूषित पदार्थों, भारी धातुओं, मिलावट, रासायनिक और सूक्ष्मजीवविज्ञानी गुणवत्ता का पता लगाने के लिए लगभग 10 राज्य केंद्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं।

3. पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी)

पशुपालन और डेयरी विभाग पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एलएचडीसीपी) के माध्यम से वित्तीय सहायता के जरिए राज्य सरकारों / केंद्र शासित प्रदेशों के प्रयासों की पूर्ति करता है। यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जिसका उद्देश्य पशुओं की बीमारियों के खिलाफ रोगनिरोधी टीकाकरण, पशु चिकित्सा सेवाओं की क्षमता निर्माण, रोग निगरानी और पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे को मजबूत करके पशु स्वास्थ्य के लिए जोखिम को कम करना है। प्रमुख गतिविधियों में खुरपका और मुंहपका रोग (एफएमडी), ब्रुसेलोसिस (पूर्ववर्ती राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (एनएडीसीपी) जो अब एलएचडीसीपी का घटक है), पेस्ट डेस पेटिट्स रुमिनेंट्स (पीपीआर) और क्लासिकल स्वाइन फीवर (सीएसएफ) के खिलाफ टीकाकरण, राज्य की प्राथमिकता वाले आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण विदेशी, आकस्मिक और जूनोटिक पशुओं में रोग नियंत्रण के लिए राज्यों को पशु रोग नियंत्रण के तहत सहायता (एएससीएडी) और पशु चिकित्सा अस्पतालों तथा औषधालयों-मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों (ईएसवीएचडी-एमवीयू) की स्थापना और सुदृढ़ीकरण शामिल हैं। इसके अलावा, ईएसवीएचडी-एमवीयू के तहत, केंद्र सरकार ने दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों को घर तक पशु चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने की व्यवस्था को मजबूत करने के लिए एमवीयू की खरीद और अनुकूलन के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 100% वित्तीय सहायता प्रदान की है।

4. राष्ट्रीय पशुधन मिशन

पशुधन क्षेत्र के सतत और निरंतर विकास के लिए पशुपालन और डेयरी विभाग ने राष्ट्रीय पशुधन मिशन की शुरुआत की है, जिसमें रोजगार सृजन, उद्यमिता विकास, प्रति पशु उत्पादकता में वृद्धि और इस प्रकार बड़े योजना विकास कार्यक्रमों के तहत मांस, बकरी के दूध, अंडे और ऊन के उत्पादन में वृद्धि को लक्षित किया गया है। अतिरिक्त उत्पादन घरेलू मांगों को पूरा करने के बाद निर्यात आय में मदद करेगा। एनएलएम योजना की अवधारणा असंगठित क्षेत्र में उपलब्ध उपज के लिए आगे और पीछे की कड़ी बनाने और संगठित क्षेत्र से जोड़ने के लिए उद्यमी विकसित करना है।

योजना को निम्नलिखित तीन उप-मिशन के साथ कार्यान्वित किया जाता है:

ए.) पशुधन और मुर्गी पालन के नस्ल विकास पर उप-मिशन

बी.) चारा और चारा विकास पर उप-मिशन

सी.) विस्तार और नवाचार पर उप-मिशन

5. पशुपालन अवसंरचना विकास निधि

आत्मनिर्भर भारत अभियान प्रोत्साहन पैकेज के तहत, 15,000 करोड़ रुपये की राशि के साथ पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (एएचआईडीएफ) की स्थापना की गई थी। इस योजना को व्यक्तिगत उद्यमियों, निजी कंपनियों, एमएसएमई, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) और धारा 8 कंपनियों द्वारा (i) डेयरी प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन बुनियादी ढांचे, (ii) मांस प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन बुनियादी ढांचे और (iii) पशु चारा संयंत्र, (iv) नस्ल सुधार प्रौद्योगिकी और नस्ल गुणन फार्म स्थापित करने के लिए निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए मंजूरी दी गई है।

इस योजना का उद्देश्य दूध, मांस प्रसंस्करण क्षमता और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ाना है, ताकि असंगठित ग्रामीण दूध और मांस उत्पादकों के लिए संगठित बाजार तक अधिक पहुंच, उत्पादक के लिए मूल्य प्राप्ति, घरेलू उपभोक्ता के लिए गुणवत्ता वाले उत्पादों की उपलब्धता, उद्यमियों को तैयार करना, निर्यात को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण तथा सस्ते पशु आहार और भारतीय उपभोक्ताओं को गुणवत्ता वाले प्रोटीन युक्त भोजन की उपलब्धता हो सके।

6. दुग्ध सहकारी समितियों और दुग्ध उत्पादक कंपनियों के डेयरी किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी)

पशुधन और डेयरी किसानों को 2019 के बाद पहली बार किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) की सुविधा उपलब्ध कराई गई है, जिससे वे संस्थागत ऋण सुविधा तक आसानी से और बढ़ी हुई पहुंच हासिल कर सके हैं।

हम विश्व दुग्ध दिवस मनाते हैं, इससे यह स्पष्ट है कि भारत का डेयरी क्षेत्र न केवल इसकी कृषि अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, बल्कि विकास, नवाचार और सशक्तिकरण का भी प्रतीक है। दूध उत्पादन में भारत की उपलब्धियां, सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी और डेयरी फार्मिंग में तकनीकी प्रगति ने दुनिया के लिए एक मानदंड स्थापित किया है, जो बताता है कि कैसे कोई देश अपनी अर्थव्यवस्था और अपनी जनता दोनों की मदद करने के लिए अपने पशुधन संसाधनों का स्थायी रूप से उपयोग कर सकता है।

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एमजी/एआर/एके

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